भोपाल। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं। उसके अलावा इस बार लोकसभा चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे, पर कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई में खींचतान मची है। इस बीच चर्चा है कि मौजूदा हालात कहीं कांग्रेस को एक बार फिर सत्ता से दूर न कर दें। पिछले दिनों जिस तरह का घटनाक्रम सामने आया, उसके बाद कहा जा रहा है कि कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई अनियंत्रित हो रही है, जहां हर कोई अपनी मर्जी चलाना चाहता है। महत्वपूर्ण बैठकें छोड़ जाना, वरिष्ठ नेताओं पर अनावश्यक टिप्पणी करना और संगठन का इन घटनाओं को मूक होकर देखना – ये लक्षण कांग्रेस के लिए शुभ संकेत नहीं दे रहे।
बेकाबू हो रहा घमासान
कांग्रेस अपने अंदर मचे घमासान को काबू में नहीं कर पा रही। वहीं गुटबाजी अभी से दिखाई दे रही है, जिसके ठीक होने के कोई संकेत नहीं मिल रहे। पार्टी नेता मीडिया के सामने मुस्कुराकर एकजुटता की बात भले ही करें लेकिन संगठन में घमासान की खबरें देर-सबेर बाहर आ ही जाती हैं। पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया के साथ कांग्रेस नेताओं की अभ्रदता के चर्चे थे। वे रीवा पहुंचे तो उन्हें कमरे में बंद कर दिया गया। हालांकि बात इससे कहीं आगे बताई जा रही है। बाद में हड़कंप मचा और छह लोगों का निष्कासन हुआ, जिनकी एक बड़े नेता से काफी घनिष्ठता रही है।
सबकुछ ठीक तो नहीं है
यह मामला ठंडा पड़ता कि तुरंत ही एक और घटना ने पार्टी में मची कलह को सामने ला दिया। उज्जैन से महिला नेत्री नूरी खान सोशल मीडिया के माध्यम से ज्योतिरादित्य सिंधिया पर आरोप लगा चुकी हैं। उन्होंने सिंधिया पर ‘सामंती’ सोच का आरोप लगाया था। हालांकि बाद में वे अपने बयान से पलट गईं। उन्होंने वह पोस्ट भी हटा दी। वे दिग्विजय सिंह की करीबी मानी जाती हैं। तब से कार्यकर्ताओं में इस बात की चर्चा है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
थोड़े दिन की शांति, फिर नया विवाद
कांग्रेस में कमलनाथ के साथ अन्य नेताओं का टकराव नई बात नहीं है। हाल में उनकी बैठक से मीनाक्षी नटराजन चली गई थीं। संगठन में अंदरखाने काफी उठापटक चली। कहीं कुछ दिनों बाद ही जिलाध्यक्ष बदल दिया, तो कहीं महिला नेत्री खफा हो गईं। इसके अलावा उज्जैन में प्रचार अभियान समिति के कई नेता नदारद रहे। पार्टी का मीडिया विभाग नेताओं की व्यस्तता को वजह बताकर इसका स्पष्टीकरण देने की कोशिश कर रहा है।
कुछ दिनों की शांति के बाद अचानक फिर कोई विवाद सामने आ जाता है। पार्टी में गुटबाजी का हाल यह है कि एक गुट के कार्यकर्ता को दूसरे गुट के नेता महत्व नहीं देते। वरिष्ठ नेताओं के पास इन सबके लिए वक्त नहीं है और सख्त फैसलों से इस बात का डर है कि चुनाव सिर पर हैं, कहीं संगठन में बड़ी फूट न पड़ जाए। कांग्रेस में मची यह खींचतान कहीं चुनावी नैया डुबो न दे!
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