जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनावों को लेकर इस बार आमेर सीट पर खासी हलचल है। यहां से राजपा विधायक नवीन पिलानिया ने बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया है। बीते चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो यहां कभी कांग्रेस भारी मतों से जीता करती थी, लेकिन बाद में भाजपा ने भी यहां से कई बार बाजी मारी। वर्ष 2013 के चुनावों में किरोड़ी लाल मीणा राजपा के दम पर तीसरे मोर्चे की संभावना तलाश रहे थे। हालांकि चुनाव नतीजे उनके पक्ष में नहीं रहे।
उस समय राजपा के उम्मीदवार लालसोट, राजगढ़, सिकराय और आमेर से जीते थे, जिनमें से सिर्फ पिलानिया ही अब तक इस पार्टी में रहे। अब उन्होंने भी पार्टी को अलविदा कह दिया। इस तरह राजस्थान में राजपा का कोई मौजूदा विधायक नहीं है। बसपा में जाने के फैसले पर पिलानिया कहते हैं कि अकेले राजपा में रहकर बहुत कुछ करने की गुंजाइश नहीं थी। ऐसे में सवाल है, क्या बसपा में जाने से यह गुंजाइश पैदा होगी?
वास्तव में आमेर की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयान करती है। अगर इसके आधार पर आकलन किया जाए तो यह संभावना ज्यादा नजर आती है कि पिलानिया का फैसला पिछले चुनाव परिणामों और मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखकर लिया गया है। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में वे भले ही आमेर से जीते, लेकिन यह जीत इतनी बड़ी नहीं थी कि उसके आधार पर फिर कोई जोखिम लिया जाए।
आमेर विधानसभा सीट से कई बार ऐसे भी मौके आए जब मतदाताओं ने बहुत कम अंतर से किसी उम्मीदवार को जिताया। वर्ष 2013 के चुनावों में यहां त्रिकोणीय मुकाबले में नवीन पिलानिया जीते, लेकिन उनकी जीत का अंतर सिर्फ 329 वोट रहा। भाजपा उम्मीदवार सतीश पूनिया मामूली अंतर से हारे थे। पिलानिया पूर्व में भी आमेर से चुनाव लड़ चुके हैं। वे वर्ष 2003 और 2008 में मैदान में उतरे थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। ऐसे में आमेर छोड़कर किसी अन्य सीट पर संभावनाएं तलाशना उनके लिए आसान नहीं होता। साथ ही राजपा को लेकर प्रदेश में कोई बेहतर संभावना नजर नहीं आ रही थी।
बदलते सियासी समीकरणों के बीच बसपा में शामिल होना इस लिहाज से सुरक्षित लगा कि इससे उन्हें चर्चित पार्टी का मंच मिल जाएगा। साथ ही उसका एक परंपरागत वोटबैंक है। अगर उसका साथ मिला तो स्थिति बेहतर हो सकती है। अब देखना यह होगा कि 7 दिसंबर को आमेर का मतदाता किस उम्मीदवार को विधानसभा भेजने का फैसला लेता है। (आंकड़े: इलेक्शन्स डॉट इन से)