राजस्थान: विधानसभा चुनाव में दोनों दलों का खेल बिगाड़ने की तैयारी में जुटे बागी

राजस्थान: विधानसभा चुनाव में दोनों दलों का खेल बिगाड़ने की तैयारी में जुटे बागी

bjp and congress

जयपुर। इन दिनों राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस को विधानसभा चुनाव लड़ने के साथ ही अपने बागियों को काबू में करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। टिकटों की घोषणा के साथ ही नए-नए बागी सामने आ रहे हैं। प्रदेश और शीर्ष नेतृत्व पर्दे के पीछे इन्हें मनाने की कोशिश कर चुका है लेकिन कई बागी यह तय कर चुके हैं कि यदि हमें टिकट नहीं मिला तो दूसरों का खेल बिगाड़ने की भरपूर कोशिश करेंगे। बागियों में कुछ बड़े चेहरे भी हैं जो काफी पहले से आलाकमान से टक्कर लेते रहे हैं।

बागियों की बहार
प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दोनों बागियों के विरोध का सामना कर रही हैं। अब तक दोनों पार्टियों ने जो टिकट बांटे हैं, उनमें शीर्ष नेतृत्व ने सामाजिक समीकरण को खासी तवज्जो दी है। यदि बागी मैदान में उतरे तो कई जगह ये समीकरण धराशायी हो सकते हैं। राजस्थान में ऐसी कई सीटें हैं जहां पिछली बार बागी खेल बिगाड़ चुके हैं। कुछ सीटों पर तो इनकी वजह से हार-जीत का अंतर बेहद कम रहा।

अब तक दोनों दलों के सामने एक दर्जन से ज्यादा बागी सामने आ चुके हैं। जयपुर में किशनपोल से टिकट न मिलने पर पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल ने कांग्रेस से मिले पदों से इस्तीफा दे दिया। सीकर से वाहिद चौहान की नाराजगी से कांग्रेस चिंतित है। इसी प्रकार बीकानेर पश्चिम से बीडी कल्ला और बीकानेर पूर्व से गोपाल गहलोत कांग्रेस से खफा हैं। अगर ये निर्दलीय लड़ते हैं या पार्टी लाइन से हटकर किसी को समर्थन देते हैं तो कांग्रेस के लिए मुसीबत हो सकती है।

कांग्रेस तारा नगर में सीएस बैद, मसूदा में ब्रह्मदेव कुमावत, सलूंबर में रेशम मीणा, रतनगढ़ में पूसाराम गोदारा, अजमेर दक्षिण में ललित भाटी के तीखे तेवरों से चिंतित है। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे रामकिशोर सैनी भाजपा में चले गए। उन्हें भाजपा ने बांदीकुई से टिकट दे दिया है।

पार्टी छोड़ने का मौसम
उधर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए भी बागी चुनौती खड़ी कर रहे हैं। वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे सुरेंद्र गोयल ने टिकट न मिलने पर पार्टी छोड़ दी और निर्दलीय लड़ने का ऐलान कर दिया। वे जैतारण से विधायक हैं। वहीं नागौर से भाजपा विधायक हबीबुर्रहमान को जब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने रास्ता बदला और कांग्रेस में शामिल हो गए। वहां से उन्हें टिकट मिल गया है। हालांकि स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता उनसे काफी नाराज बताए जा रहे हैं। हबीबुर्रहमान पहले कांग्रेस में रह चुके हैं।

चुनावी मौसम में पार्टी छोड़ने के खेल में दौसा सांसद हरीश मीणा भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया और टिकट पा गए। उन्हें देवली-उनियारा से कांग्रेस का टिकट मिल गया है। चर्चा है कि यहां से सामाजिक समीकरण अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस हरीश मीणा को अपने पाले में लाई है। यहां पांच साल से टिकट की आस लगाए कांग्रेस के दूसरे नेताओं को निराशा मिली है।

इनसे कांग्रेस-भाजपा परेशान
राजस्थान में भाजपा के प्रदेश नेतृत्व से नाराज चल रहे सांगानेर विधायक घनश्याम तिवाड़ी अपनी अलग पार्टी भारत वाहिनी बना चुके हैं। पिछली बार भारी मतों से जीतने वाले तिवाड़ी को इस बार बेहद कड़े मुकाबले से गुजरना होगा। सांगानेर में मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार हैं। काफी दिनों से प्रचार में जुटे तिवाड़ी खासतौर से भाजपा के लिए चुनौती पैदा कर सकते हैं।

भाजपा से बगावत कर निर्दलीय जीते खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बना ली। नागौर और शेखावाटी के कुछ इलाकों में अच्छा प्रभाव रखने वाले बेनीवाल से कांग्रेस और भाजपा दोनों का मुकाबला है। चर्चा है कि वे दोनों ही पार्टियों को नुकसान पहुंचाएंगे। उन्होंने अपने उम्मीदवार उतारने शुरू कर दिए हैं। पार्टी ने नवलगढ़ से प्रतिभा सिंह को टिकट दिया है जो कभी कांग्रेस में थीं। इस बार भी उनका मुकाबला डॉ. राजकुमार शर्मा से होगा, जो यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं। पिछली बार शर्मा निर्दलीय खड़े हुए थे और जीते थे।

यहां तगड़ा मुकाबला
भाजपा छोड़कर कांग्रेस में गए मानवेंद्र सिंह इस बार सीधे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मुकाबला करेंगे। हालांकि झालरापाटन उनके लिए नया क्षेत्र होगा। चर्चा है कि कांग्रेस ने सिंह के भाजपा से मनमुटाव और स्थानीय समीकरणों के आधार पर टिकट दिया है। उन्हें कांग्रेस का परंपरागत वोट और राजपूतों के वोट मिलने की संभावना जताई जा रही है।

दोनों ओर बागी
शेखावाटी की रतनगढ़ सीट बागियों की हलचल के बाद सुर्खियों में है। यहां बसपा छोड़कर भाजपा में आए अभिनेष म​हर्षि को टिकट मिल गया है। वहीं अपना टिकट कटने से नाराज भाजपा से मंत्री रहे राजकुमार रिणवां निर्दलीय लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। बागियों की नाराजगी किसका खेल बिगाड़ेगी, यह 11 दिसंबर को साफ हो जाएगा।

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