नई दिल्ली/भाषा। जम्मू-कश्मीर में छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाने का आग्रह करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र बहाल रहे, यह भाजपा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और इसमें सरकार जरा-भी लीपापोती नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार वहां शांति, कानून का शासन तथा आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने को लेकर कटिबद्ध है।
लोकसभा में शाह दो प्रस्ताव लेकर आए जिसमें से एक वहां राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाने और दूसरा जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 5 और 9 के तहत जो आरक्षण का प्रावधान है, उसमें भी संशोधन करके कुछ और क्षेत्रों को जोड़ने का प्रावधान शामिल है।
कांग्रेस के मनीष तिवारी ने दोनों प्रस्तावों को एक साथ पेश करने का विरोध किया। इस पर शाह ने कहा कि उन्हें अलग-अलग प्रस्ताव पेश करने में कोई परेशानी नहीं है, वह केवल समय बचाना चाहते हैं। इसके बाद दोनों प्रस्ताव एक साथ पेश किए गए।
शाह ने पहले जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने का प्रस्ताव रखते हुए कहा, जम्मू-कश्मीर में अभी विधानसभा अस्तित्व में नहीं है, इसलिए मैं विधेयक लेकर आया हूं कि छह माह के लिए राष्ट्रपति शासन को बढ़ाया जाए। उन्होंने कहा, चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन, केंद्र सरकार और सभी राजनीतिक दलों से बात करके निर्णय लिया है कि इस साल के अंत में ही वहां चुनाव कराना संभव हो सकेगा।
उन्होंने कहा कि कुछ समय पहने रमजान और आने वाले दिनों में अमरनाथ यात्रा का विषय भी है। इसके साथ वहां की 10 प्रतिशत आबादी वाले गुर्जर एवं बकरवाल समुदाय के लोग पहाड़ पर चले जाते हैं और अक्तूबर में ही वे वापस आते हैं। ऐसे में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाना जरूरी है।
गृह मंत्री ने कहा कि पिछले एक साल के अंदर जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद को जड़ों से उखाड़ फेंकने के लिए इस सरकार ने बहुत से कार्य किए हैं। उन्होंने कहा, जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र बहाल रहे, यह भाजपा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसमें सरकार जरा भी लीपापोती नहीं करेगी। वहां शांति, कानून का शासन तथा आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने को लेकर (सरकार) कटिबद्ध हैं।
अमित शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में कई सालों से पंचायत के चुनाव नहीं कराए जाते थे, लेकिन हमारी सरकार ने पिछले एक साल में वहां चार हजार से अधिक पंचायतों में चुनाव कराए और 40 हजार से अधिक पंच-सरपंच आज लोगों की सेवा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पहले कई बार जम्मू-कश्मीर में हमने रक्त रंजित चुनाव देखे हैं। सबको इस पर मलाल होता था। इस बार 40 हजार पदों के लिए चुनाव हुआ पर एक भी व्यक्ति की जान नहीं गई। संसद के चुनाव में भी हिंसा नहीं हुई है। शाह ने कहा कि यह दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बेहतर है।
उन्होंने कहा कि पहली बार जम्मू-कश्मीर की जनता यह महसूस कर रही है कि जम्मू और लद्दाख भी राज्य का हिस्सा हैं। वर्षों से लंबित मसले देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने पिछले एक साल में निपटा दिए। गृह मंत्री ने कहा कि दूसरे प्रस्ताव में जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 5 और 9 के तहत जो आरक्षण का प्रावधान है, उसमें थोड़ा संशोधन कर कुछ नए क्षेत्रों को जोड़ने का प्रस्ताव लेकर आया हूं।
शाह ने कहा कि जिसके तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे क्षेत्रों के लोगों के लिए जो आरक्षण है, उसी के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय सीमा में रहने वालों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए। इस दौरान आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने एक मार्च 2019 को प्रख्यापित जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन अध्यादेश 2019 का निरानुमोदन करने का सांविधिक संकल्प प्रस्तुत किया।
मनीष तिवारी ने कहा कि यह अच्छा होता कि जम्मू-कश्मीर में एक चुनी हुई सरकार होती क्योंकि ऐसी सरकार का लोगों का समर्थन होता है। ऐसे में अगर आतंकवाद एवं अन्य विषयों पर समाधान के लिए मजबूती से पहल करनी होती है तब एक चुनी हुई सरकार का होना जरूरी है। जम्मू-कश्मीर से जुड़े आरक्षण संबंधी विधेयक पर तिवारी ने कहा कि उन्हें विधेयक की भावना पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन यह जम्मू कश्मीर विधानसभा के अधिकार क्षेत्र का विषय है ।