नेताजी का ‘बंगला प्रेम’, चुनाव हारे पर नहीं छूटा सरकारी आवास का मोह
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। नेताओं का सरकारी बंगले से मोह जगजाहिर है। चुनाव हारने या अन्य किसी कारणवश बतौर विधायक/सांसद जनप्रतिनिधि न रहने की सूरत में संबंधित व्यक्ति को बंगला खाली करना पड़ता है लेकिन ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जब ‘माननीय’ किसी न किसी वजह का हवाला देकर बंगले में विराजमान रहना चाहते हैं। ऐसे मामलों में अदालत भी सख्ती दिखा चुकी है।
हालांकि ताजा-तरीन मामला इससे थोड़ा अलग है, जब अदालती सख्ती के बजाय दूसरा ‘फॉर्मूला’ काम कर गया। दरअसल बंगले के मोह के वशीभूत कई पूर्व सांसदों ने नियमानुसार इन्हें खाली नहीं किया तो उन्हें चेतावनी दी गई कि जल्द ही पानी-बिजली के कनेक्शन काटे जाएंगे। इसके बाद धड़ाधड़ बंगले खाली होने लगे।
एक रिपोर्ट के अनुसार, कनेक्शन काटे जाने की चेतावनी के बाद ऐसे 50 प्रतिशत बंगले खाली हो चुके हैं। ये पूर्व सांसद गैर-कानूनी ढंग से इन बंगलों में कब्जा जमाए बैठे थे। इस साल लोकसभा चुनाव में शिकस्त मिलने के बावजूद इनका सरकारी बंगले के प्रति ‘मोह’ कम नहीं हुआ था। रिपोर्ट में बताया गया है कि अवैध तरीके से बंगलों पर काबिज इन पूर्व सांसदों की तादाद कम होकर 109 तक आ गई है। हालांकि अब इनसे भी बंगले खाली करवाना बड़ी चुनौती है।
इस संबंध में अधिकारियों का कहना है कि आवास समिति ने एक सप्ताह की मोहल्लत दी थी। इसके अलावा नए सांसदों को बंगले आवंटित करने की प्रक्रिया तेजी से जारी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस व्यवस्था का जिक्र किया था, जिसका काफी प्रभाव हुआ। उम्मीद है कि आने वाले कुछ दिनों में 90 प्रतिशत से ज्यादा अवैध कब्जे हट जाएंगे।
बता दें कि पूर्व सांसदों ने जब नियमानुसार बंगले खाली नहीं किए तो संसदीय समिति ने सोमवार को चेतावनी जारी की थी कि उनके बिजली-पानी के कनेक्शन काटे जाएंगे। इसके बाद ऐसे पूर्व सांसदों में हड़कंप मच गया और बंगले खाली होने की प्रक्रिया में तेजी आई। लोकसभा आवास समिति ने 300 सांसदों को बंगलों का आवंटन कर दिया है लेकिन अभी नए सांसदों को कुछ दिन और अस्थायी आवास में ही रहने की व्यवस्था करनी होगी। चूंकि पूर्व सांसदों द्वारा खाली किए गए बंगलों में रंग-रोगन करवाना होगा।
क्या कहते हैं नियम?
पूर्व सांसदों के लिए आवास संबंधी स्पष्ट नियम हैं। इनके मुताबिक लोकसभा भंग होने के एक माह की अवधि में उन्हें आवास खाली करना होता है। हालांकि इसके बाद भी कई पूर्व सदस्य बंगले का मोह छोड़ नहीं पाते और विभिन्न कारण गिनाकर काबिज रहना चाहते हैं। इससे नए सदस्यों को आवास आवंटन में दिक्कत आती है और अनावश्यक विलंब होता है।