प्रयागराज/भाषा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सांसद आजम खान के बेटे और स्वार विधानसभा सीट से विधायक मोहम्मद अब्दुल्ला आजम खान की विधानसभा से सदस्यता सोमवार को अवैध घोषित कर दी। न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी ने नवाब काजिम अली खान की चुनाव याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया।
अदालत ने इस चुनाव याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि अब्दुल्ला आजम खान ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जब नामांकन पत्र दाखिल किया तो उस समय उनकी आयु 25 वर्ष नहीं थी। इस तरह वह विधानसभा चुनाव लड़ने के पात्र नहीं थे। मोहम्मद अब्दुल्ला आजम खान को रामपुर जिले की 34 स्वार विधानसभा सीट से 11 मार्च, 2017 को विधायक चुना गया था। उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था।
स्वार सीट से अब्दुल्ला खान से चुनाव हारने वाले बसपा उम्मीदवार नवाब काजिम अली खान ने अदालत का रुख किया था। उनका आरोप था कि प्रतिवादी अब्दुल्ला आजम खान का जन्म एक जनवरी, 1993 को हुआ था, इसलिए नामांकन दाखिल करने के दिन 25 जनवरी, 2017 को वह 25 वर्ष की आयु से काफी कम थे।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया था कि मोहम्मद अब्दुल्ला के शैक्षणिक प्रमाणपत्र, पासपोर्ट और वीजा में भी इसी जन्मतिथि का उल्लेख है, लेकिन बाद में लखनऊ स्थित जन्म एवं मृत्यु पंजीयक कार्यालय से एक जन्म प्रमाणपत्र जारी कराया गया जिसमें अब्दुल्ला का जन्म 30 सितंबर, 1990 दिखाया गया।
संपूर्ण तथ्यों पर गौर करने के बाद अपने 49 पेज के निर्णय में अदालत ने कहा कि शैक्षणिक प्रमाणपत्रों के अलावा, उनकी मां ने अपनी सर्विस बुक में अब्दुल्ला के जन्म का उल्लेख 1993 किया है जो कि अपने आप में एक प्रमाण है।
अदालत ने रजिस्ट्रार जनरल, उच्च न्यायालय को इस निर्णय से निर्वाचन आयोग और उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष को अवगत कराने का निर्देश दिया। स्वार सीट से चार बार विधायक रहे काजिम अली ने अपनी दलील में अब्दुल्ला के हाईस्कूल के प्रमाणपत्र का हवाला दिया जिसमें उसकी जन्म तिथि एक जनवरी, 1993 है।
इससे पूर्व, सुनवाई के दौरान अब्दुल्ला की मां और तत्कालीन राज्यसभा सदस्य ताजीन फातिमा ने इस बात का समर्थन किया था कि उनके बेटे का जन्म 30 सितंबर, 1990 को हुआ था जिसे उनके सर्विस रिकॉर्ड से सिद्ध किया जा सकता है क्योंकि उन्होंने 1990 में मातृत्व अवकाश लिया था। हालांकि अदालत ने उनकी यह दलील नहीं मानी।
उल्लेखनीय है कि सभी गवाहों के बयान दर्ज करने और सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अपना फैसला 27 सितंबर, 2019 को सुरक्षित रख लिया था।