बनगांव/कृष्णानगर/भाषा। पश्चिम बंगाल के चुनाव में शरणार्थियों के लिए नागरिकता भाजपा के लिए अहम चुनावी मुद्दा बनकर उभरा है। ऐसे में माना जा रहा है कि मतुआ जाति के गढ़ में आने वाले नतीजे नए सीएए कानून को लागू करने से पहले अहम भूमिका निभाएंगे क्योंकि इससे जनता के मूड का अंदाजा लगेगा।
बांग्लादेश की सीमा से लगे बनगांव और कृष्णानगर विधानसभा सीटों को मतुआ जाति का गढ़ माना जाता है और यहां पर छठे चरण में 22 अप्रैल को मतदान होगा। मतुआ, राज्य की अनुसूचित जाति की आबादी का बड़ा हिस्सा है और वर्ष 1950 से ही पहले पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल में पलायन कर रहा है और इसकी बड़ी वजहों में एक धार्मिक आधार पर उत्पीड़न रहा है।
माना जाता है कि राज्य में मतुआ जाति के 30 लाख लोग हैं जो नादिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना की चार लोकसभा सीटों और 30 से 40 विधानसभा सीटों के नतीजों को प्रभावित करते हैं।
इस चुनाव में संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) को लागू करने के साथ-साथ राजनीतिक और धार्मिक पहचान एवं विकास भी निर्णायक मुद्दा बनकर उभरा है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विरोधी भाजपा समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं और स्थानीय समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से कई वादे कर रहे हैं।
भाजपा के सांसद और मतुआ ठाकुरबाड़ी गुट (प्रभावशाली सामाजिक धार्मिक गुट) के नेता सांतनु ठाकुर कहते हैं, ‘तृणमूल कांग्रेस और माकपा सरकार ने मतुआ के लिए कुछ नहीं किया। यह भाजपा है जिसने समुदाय की चिंता की। इसलिए नागरिकता का वादा किया।’
उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने सांसद में सीएए पारित कराया लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने पूरी ताकत से बंगाल में इसका विरोध किया। हम इस अन्याय के खिलाफ मतदान करेंगे।’ उनके दावे का विरोध करते हुए तृणमूल कांग्रेस की पूर्व सांसद और समुदाय की दिवंगत मातृ नेत्री बीनापानी देवी की बहू ममताबाला ठाकुर ने दावा किया कि भाजपा झूठे वादे कर शरणार्थियों को बेवकूफ बना रही है।
उन्होंने कहा, ‘मतुआ इस देश के नागरिक हैं। उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने की कोई जरूरत नहीं है।’ उल्लेखनीय है कि सीएए में 31 दिसंबर 2014 तक अफगानिस्तान, पाकिस्तान बांग्लादेश से आए हिंदु, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।
समुदाय के सूत्रों ने बताया कि समुदाय के भीतर भी अहम मुद्दा बनकर उभरा है और उनको आशंका है कि अगर राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का काम सीएए लागू करने से पहले शुरू हुआ, तो उन लोगों को विदेशी करार दिया जा सकता है जो बिना वैध दस्तावेज के भारत में दाखिल हुए हैं।
पश्चिम बंगाल के भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, ‘अधिकतर लोग धार्मिक उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश से भारत आए हैं। अब अगर हम उन्हें नागरिकता नहीं देंगे, तो वे कहां जाएंगे? सीएए हमारे लिए राजनीतिक मुद्दा नहीं है बल्कि हमारी वैचारिक प्रतिबद्धता का मूल हिस्सा है।’
उल्लेखनीय है कि अल्पसंख्यक समुदायों की तरह मतुआ में भी एक धड़े के रूप में मतदान करने की परिपाटी रही है और इसलिए सभी राजनीतिक दल 90 के दशक ही समुदाय के मतों को हासिल करने को प्रयासरत रहे हैं।