दुर्भाग्यपूर्ण है कि गुजारा भत्ते के लिए मां को अपने बेटे के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़े

दुर्भाग्यपूर्ण है कि गुजारा भत्ते के लिए मां को अपने बेटे के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़े

नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने एक व्यक्ति द्वारा अपनी मां को मासिक खर्चा देने के आदेश के खिलाफ दायर याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक विधवा मां को अपने बेटे और बहू के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाना प़डे। उत्तर-पश्चिम दिल्ली के एक निवासी अनिल कुमार ने एक निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी जिसे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मनोज जैन ने खारिज कर दिया। निचली अदालत ने घरेलू हिंसा के एक मामले में कुमार को आदेश दिया था कि वह अपनी मां २,५०० रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता का भुगतान करे। अदालत ने कहा कि पुत्र और उसके परिवार ने इस आदेश को बहुत ही हलके में लिया। अदालत ने कहा, यह वास्तव में काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि घरेलू हिंसा के मामले में विभिन्न राहतों की गुहार लगाते हुए एक विधवा मां अपने बेटे, बहू और पोतों के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाती हैं। उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि उन्होंने चीजों को बहुत हल्के में लिया और ऐसा लगता है कि जैसे वह यह अहसास कराना हैं कि (मां को) २,५०० रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देकर बहुत रहम का काम कर रहे हैं। अदालत ने महसूस किया कि अपनी मां को गुजारा भत्ते की राशि का भुगतान नहीं करके अदालत का आदेश नहीं मान बेटे ने घृष्टता की है। मां ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक शिकायत दायर की थी और मासिक गुजारा भत्ता और उत्तर पश्चिमी दिल्ली में अपनी संपत्ति अंतरिम राहत की मांग की थी। इसके बाद निचली अदालत ने बेटे को संपत्ति का निपटारा नहीं करने और मां को मासिक २,५०० रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था।

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