नई दिल्ली। भारत के इतिहास में कई वीरों की गाथाएं हैं, परंतु यह भी सत्य है कि हम पर कई बार विदेशी आक्रमण हुए और देश लहूलुहान हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस बात को बखूबी जानते थे। इसलिए वे चाहते थे कि दुनिया में भारत की साख के साथ ही धाक भी हो। इसके लिए जरूरी था कि देश अपने दम पर परमाणु परीक्षण करे और दुनिया को बता दे कि भारत शांति का पुजारी है, लेकिन हम अपनी सुरक्षा करना जानते हैं। पड़ोसी पाकिस्तान तो 1947 में बना ही नफरत की बुनियाद पर था, इसलिए वाजपेयीजी भारत के तरकश में एक ऐसा अग्निबाण चाहते थे, जिसे देख दुश्मन आगे बढ़ने की जुर्रत ही न कर सके।
वाजपेयीजी ने साहसिक निर्णय लिया और वैज्ञानिकों की टीम को परमाणु परीक्षण के लिए इजाजत दे दी। यह काम जितना बड़ा था, उसमें गोपनीयता उतना ही जरूरी थी। आकाश में अमेरिका के खुफिया उपग्रह घूम रहे थे, जिनके बारे में कहा जाता था कि वे ऊपर से ही यह पता लगाने में समर्थ थे कि धरती पर किसी शख्स की घड़ी में सुइयों की क्या स्थित है। उसके अलावा देशभर में सबकी नजरों से बचकर परमाणु परीक्षण करना बहुत मुश्किल था, पर हमें इसमें सफलता मिली। अटलजी की दृढ़ इच्छाशक्ति के सामने दुनिया की खुफिया एजेंसियां भी फेल हो गईं।
वर्ष 1998 में राजस्थान के जैसलमेर स्थित पोखरण में 11 और 13 मई को पांच परमाणु बमों का परीक्षण किया गया। इससे पूरी दुनिया में हंगामा हो गया। अमेरिका, ब्रिटेन, पाकिस्तान, चीन, फ्रांस, जापान, कनाडा आदि ने इस पर कड़ा ऐतराज जताया। अमेरिका ने प्रतिबंध लगाने की धमकियां दीं, लेकिन वाजपेयीजी नहीं झुके। वे जानते थे कि भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था को नजरअंदाज करने का साहस दुनिया का कोई देश नहीं कर सकता।
पोखरण में जहां परमाणु परीक्षण किया गया, वह पाकिस्तान से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास है। यहां आईएसआई के जासूस पकड़े जाते रहे हैं। इसके अलावा अमेरिका चौकन्ना था कि भारत अपने दम पर परमाणु शक्ति परीक्षण न कर ले। इसके लिए पूरी योजना बनाकर काम किया गया। जो विशेषज्ञ इस मिशन से जुड़े थे, उन्हें सेना की वर्दी में भेजा गया। अब्दुल कलाम, जो आगे चलकर देश के राष्ट्रपति बने, वे भी इससे प्रमुख रूप से जुड़े थे।
वाजपेयीजी के प्रोत्साहन पर काम कर रही इस पूरी टीम ने दुनिया को चौंका दिया। इसके साथ ही भारत के हाथ में वह ब्रह्मास्त्र आ गया जिसकी उसे सदियों से जरूरत थी। निश्चित रूप से देश के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व की दृढ़ इच्छाशक्ति के बिना यह नहीं हो सकता था। वाजपेयीजी इसके लिए हमेशा किए जाते हैं।
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