नई दिल्ली/भाषा/दक्षिण भारत। लद्दाख की गलवान घाटी में सोमवार रात चीनी सैनिकों के साथ ‘हिंसक टकराव’ के दौरान भारतीय सेना के एक अधिकारी और दो जवान शहीद हो गए। सेना ने यह जानकारी दी। इसे चीन की सीमा पर लगभग 45 साल बाद, भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों की शहादत की संभवत: पहली घटना माना जा रहा है। इससे पहले 1975 में अरुणाचल प्रदेश में तुलुंग ला में हुए संघर्ष में चार भारतीय जवान शहीद हो गए थे।
सेना ने कहा कि चीन को भी नुकसान हुआ है। हालांकि कितना नुकसान हुआ है यह अभी स्पष्ट नहीं है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि दोनों ओर से कोई गोलीबारी नहीं हुई। सेना ने एक संक्षिप्त बयान में कहा, ‘गलवान घाटी में तनाव कम करने की प्रक्रिया के दौरान सोमवार रात हिंसक टकराव हो गया। इस दौरान भारतीय सेना का एक अधिकारी और दो जवान शहीद हो गए।’ एक रिपोर्ट के अनुसार, इस टकराव के दौरान दोनों तरफ के सैनिकों के बीच जमकर लाठी-डंडे चले।
गौरतलब है कि बीते पांच हफ्तों से गलवान घाटी में बड़ी संख्या में भारतीय और चीनी सैनिक आमने-सामने खड़े थे। यह घटना भारतीय सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे के उस बयान के कुछ दिन बाद हुई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि दोनों देशों के सैनिक गलवान घाटी से पीछे हट रहे हैं।
भारतीय और चीनी सेना के बीच पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलतबेग ओल्डी में तनाव चल रहा है। बड़ी संख्या में चीनी सैनिक वास्तविक सीमा पर पैंगोंग झील सहित कई भारतीय क्षेत्रों में आ गए थे। भारत ने इसका कड़ा विरोध करते हुए चीनी सैनिकों को इलाके में शांति बहाल करने के लिए तुरंत पीछे हटने के लिए कहा। दोनों देशों के बीच इस विवाद को सुलझाने के लिए बीते कुछ दिनों में कई बार बातचीत हो चुकी है।
चीन को कितना नुकसान?
उधर, चीन को भी नुकसान की खबरें हैं। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, चीन के कम से कम पांच जवान मारे गए हैं। वहीं, 11 जवान घायल हुए हैं। उनमें से तीन जवानों के गंभीर रूप से घायल होने की बात कही गई है। चीन ‘चोरी के साथ ही सीनाजोरी’ पर भी उतर आया है। उसके विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने नया पैंतरा चलते हुए भारत पर ही आरोप लगा दिया कि उसके सैनिकों ने सीमा पार की। चीनी प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा कि चीन और भारत दोनों द्विपक्षीय मुद्दों को बातचीत के माध्यम से सुलझाने और सीमा क्षेत्रों में तनाव कम करने एवं शांति कायम करने में योगदान देने पर सहमत हुए हैं।
चीन की चुप्पी, झूठ का सहारा
ये पंक्तियां लिखे जाने तक चीन ने आधिकारिक रूप से अपने जवानों के मारे जाने पर कोई बयान नहीं दिया था। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अपने हताहतों की असल तादाद बताना नहीं चाहता, चूंकि इससे उसके नेतृत्व के खिलाफ आवाजें उठ सकती हैं। साथ ही चीनी नागरिकों के मन में बनाई ‘सर्वशक्तिमान’ की छवि भी धूमिल हो सकती है। इसलिए मामले पर चीनी मीडिया (जो कि सरकार द्वारा नियंत्रित है) ने भी चुप्पी साधे रखी। जब भारत में यह खबर सोशल मीडिया पर आई तो चीनी सरकार के मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने अपने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का झूठे आरोपों से भरा बयान वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया।