नई दिल्ली/दक्षिण भारत। कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के बीच प्रवासी मजदूरों के सामने बड़ी चुनौती थी अपने घर पहुंचना। अब जबकि अर्थव्यवस्था के पहिए को दोबारा घुमाने की कोशिशें जारी हैं, तो ये लोग फिर शहरों की राह पकड़ रहे हैं।
हालांकि, इसकी वजह सिर्फ उद्योगों को शुरू करने की कोशिशभर नहीं है। दरअसल कोरोना से उपजे हालात के कारण मजदूरों की आर्थिक स्थिति भी खराब होने लगी है। इसलिए गुजारे के लिए वे फिर अपने कार्यस्थलों की ओर लौटने लगे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, अकेले बिहार की ही बात करें तो यहां से कई मजदूर हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक आदि राज्यों में स्थित अपने कार्यस्थल तक पहुंचने की कोशिशों में जुटे हैं। ये मजदूर कुछ दिन पहले जिन ट्रेनों से अपने गृहराज्य लौटे थे, अब इस बात को लेकर मशक्कत कर रहे हैं कि वापस शहर लौट चलें।
इस दौरान कई मजदूरों ने आपबीती सुनाई। एक शख्स बताते हैं कि लॉकडाउन के बाद जब शहर में खाने-पीने का संकट पैदा हो गया तो किसी तरह गांव पहुंचे। हालांकि परेशानियां गांवों में भी कम नहीं हैं और आर्थिक दिक्कतें बरकरार हैं। अब एक बार फिर इस उम्मीद में शहर जा रहे हैं कि काम-धंधे शुरू हो जाएं तो कोई राहत मिले।
बिहार के विभिन्न स्टेशनों पर ऐसे कई मजदूर ट्रेन का इंतजार या उसके बारे में पूछताछ करते मिल जाएंगे जो वापस शहर लौटना चाहते हैं ताकि परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सकें।
मजदूरों का कहना है कि लॉकडाउन में अमीर और साधन-संपन्न लोगों के लिए तो कोई खास दिक्कत नहीं है लेकिन जो लोग हमारी तरह ‘रोज कुआं खोदकर पानी पीते’ हैं वे सख्त मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। कोरोना के अलावा अब रोजी-रोटी का संकट भी मौजूद है।
इस बीच कुछ नियोक्ताओं ने मजदूरों के लिए बसों का इंतजाम भी किया, जिनकी पहल को काफी सराहा गया। विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि बिहार के पूर्णिया स्थित एक गांव में मजदूरों के लिए हरियाणा से नियोक्ता ने बस भेज दी थी।