नई दिल्ली/बीजिंग/दक्षिण भारत। आखिर ऐसा क्या हुआ कि लद्दाख पर नजर जमाए खड़ी चीनी फौज को पीछे हटना पड़ा? प्रार्थनाओं से गूंजते और संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए मंत्रों का जाप करते बौद्ध मंदिरों की धरती लद्दाख पर ललचाई आंखें गड़ाए बैठे चीन को भारतीय सेना ने बहुत ‘प्रेम’ से समझा दिया कि यह 1962 का भारत नहीं है।
बता दें कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने हजारों जवानों को लाकर तनावपूर्ण महौल बनाने में जुटे चीन के सुर अब बदले-बदले-से नजर आते हैं। उसने यहां से अपनी फौज को करीब दो किमी पीछे हटा दिया है और दोनों सेनाओें में तल्खी भी काफी कम हुई है।
इस संबंध में रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा हालात में चीन दबाव बनाकर धीरे-धीरे आगे बढ़ने की रणनीति पर काम कर रहा है। खासतौर से लद्दाख का सामरिक दृष्टि से विशेष महत्व होने के कारण वह नापाक इरादे रखता है, लेकिन उसकी राह में सबसे बड़ी रुकावट बनकर खड़ी है भारतीय सेना।
जब चीनी फौज के जवान अपने आकाओं के इशारे पर माहौल को तनावपूर्ण बनाने के लिए कोई हरकत करते हैं तो भारतीय सेना के जवान उनकी आंखों में आंखें मिलाए अडिग खड़े रहते हैं कि तुम्हारी मनमानी के लिए यहां कोई गुंजाइश नहीं है।
डोकलाम याद करे चीन
डोकलाम के मामले में चीन देख चुका है कि उसके कड़े विरोध और धमकियों के बावजूद भारतीय सेना एक इंच भी पीछे नहीं हटी और चीनी फौज अपने मुखपत्र के जरिए रोज नए भड़काऊ बयान जारी करती रही, जो बेअसर साबित हुए।
विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन का यह ‘हृदयपरिवर्तन’ रातोंरात नहीं हुआ है। उसे मालूम है कि अगर भारतीय सेना से उसकी कोई बड़ी हिंसक झड़प होती है तो उसे भी नुकसान होगा। साल 1967 में चीन इसका गवाह रहा है जब उसकी हरकतें उसी पर भारी पड़ीं और भारतीय सैनिकों ने उसके 300 से ज्यादा जवानों को मार गिराया। इससे उसका यह भ्रम टूट गया कि चीन अजेय है।
चीन को स्पष्ट संदेश
हाल में लद्दाख और सिक्किम के इलाकों में दोनों देशों की सेनाएं एक बार फिर आमने—सामने आईं तो चीन ने दबाव बढ़ाने के लिए अपने जवानों की संख्या बढ़ा दी, खासतौर से लद्दाख में। इसके जवाब में भारत ने भी एलएसी पर अपने और सैनिकों को तैनात कर दिया। जब चीन ने यहां हथियार, टैंक और युद्धक वाहन तैनात किए तो भारत ने भी इन्हें तैनात कर दिया।
इससे चीन को स्पष्ट संदेश मिल गया कि भारतीय नेतृत्व उसके किसी भी दबाव में आने वाला नहीं है, अगर वह शांति की राह चलेगा तो भारत भी शांति बनाए रखेगा; इसके विपरीत अगर चीन किसी किस्म के टकराव की स्थिति पैदा करता है तो भारतीय सेना उसी की भाषा में भरपूर जवाब देगी।
हालांकि, भारत ने सदैव मर्यादा एवं शांति की नीति का पालन किया है। छह जून को दोनों देशों के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी वार्ता करेंगे। वहीं, उक्त विवाद शुरू होने के बाद 10 दौर की वार्ता हो चुकी है।
.. तो ठीक रहेगा ड्रैगन का मानसिक संतुलन
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के मामले में भारत की यह रणनीति उचित है। चीन का इतिहास रहा है कि जिस देश ने भी उसके साथ ‘नरमी’ बरती, भविष्य में उसे ही धोखा दिया। इसके बजाय, अगर उसके रवैए के अनुसार जरूरत पड़ने पर ‘सख्ती’ बरती जाती है तो चीन का ‘मानसिक संतुलन’ ठीक रहता है।
कोरोना के कारण निंदा का पात्र
वर्तमान में चीन कोरोना वायरस के कारण निंदा का पात्र बना हुआ है। चौबीसों घंटे उत्पादन करने वाले उसके कारखाने ठप्प पड़े हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मौजूदा महामारी और मंदी के लिए लगातार उसे निशाना बना रहे हैं। अमेरिकी दबाव के कारण ताइवान और साउथ चाइना सी में उसके अरमान पूरे नहीं हो रहे हैं। हांगकांग फिर सुलगने को तैयार है।
ऐसे में चीनी नेतृत्व को आशंका है कि कहीं देश में ही उसके खिलाफ आवाज न उठने लगे, इसलिए वह भारत से तनाव बढ़ाकर अपनी जनता और दुनिया का ध्यान हटाना चाहता है। विस्तारवादी मानसिकता रखने वाले चीन के खिलाफ भारत में ‘चीनी माल का बहिष्कार’ मुहिम जोर पकड़ती जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल में जब भारत को जी-7 में आमंत्रित करने की योजना बताई तो चीन भड़क उठा, चूंकि उसे भड़कना ही था।