नई दिल्ली/दक्षिण भारत। कहते हैं कि कई बार इतिहास स्वयं को दोहराता है। कालचक्र जब घूमता हुआ दोबारा खास बिंदु तक पहुंचता है तो कुछ ऐसा होता है जिससे इतिहास बदल जाता है और कई बार दुनिया का नक्शा भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शुक्रवार सुबह जब अचानक लेह पहुंचे और सैन्य अधिकारियों के साथ वार्ता करते और थलसेना, वायुसेना एवं आईटीबीपी के वीर जवानों को संबोधित करते हुए उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हुईं तो एक बार फिर इतिहास की कुछ झलकियां साकार हो गईं।
दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी 1971 में लेह का दौरा किया था और उन्होंने जवानों को संबोधित कर उनका हौसला बढ़ाया था। इतिहास गवाह है, उसी साल पाकिस्तान से जोरदार जंग छिड़ी और भारतीय सेना ने वह कर दिखाया जिसे दुनिया कभी नहीं भूल पाएगी।
उस युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए और भारतीय सेना के शौर्य से स्वतंत्र बांग्लादेश का उदय हुआ। पाकिस्तानी फौज के करीब 93,000 जवानों के साथ उसके लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया था।
उस हार के बाद पाकिस्तान ने चीन से नजदीकियां बढ़ाईं और आतंकवाद को परवान चढ़ाया। अब एक बार फिर कालचक्र घूमा है। साल है 2020 और प्रधानमंत्री एक बार फिर लेह पहुंचे हैं। यह कदम जवानों का हौसला बढ़ाने के साथ ही दुश्मन के लिए एक ललकार भी है। तो क्या कालचक्र यह संकेत दे रहा है कि इस बार मोदी के आह्वान पर भारतीय सेना एक बार फिर शत्रु का संहार कर उसके टुकड़े कर देगी?
प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में साफ कह चुके हैं कि भारत मित्रता निभाना जानता है तो ‘जवाब’ देना भी जानता है। प्रधानमंत्री जब शुक्रवार को लेह पहुंचे तो जवानों ने ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ जैसे उद्घोष के साथ उनका स्वागत किया।
बता दें कि मोदी के लेह दौरे पर सीधे कोई हमला न करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इंदिरा गांधी के लेह दौरे का जिक्र करते हुए उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की। साथ ही उन्होंने लिखा, ‘जब वे (इंदिरा गांधी) लेह गई थीं तो पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया गया था। देखते हैं वे (मोदी) क्या करेंगे?’
बता दें कि गलवान घाटी में शहीद हुए जवानों को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नमन करने और अपने संबोधन में उनके साहस की तारीफ करने के उलट चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस पूरे मामले पर चुप्पी साध रखी है। अब तक चीन ने अपनी जनता को न तो यह बताया कि गलवान में उसके कितने जवान हताहत हुए और न ही सार्वजनिक रूप से उन्हें श्रद्धांजलि दी। इससे चीनी जनता में खासा आक्रोश है और वहां सोशल मीडिया पर यूजर्स यह मुद्दा उठा रहे हैं। कई पूर्व चीनी सैनिक अपनी सरकार से नाराज हैं और आशंका जताई गई है कि वे सड़कों पर उतर सकते हैं।