नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देश के नाम संदेश दिया। इस दौरान उन्होंने विजयादशमी की बधाई दी और कहा कि यह असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है। साथ ही यह एक तरह से संकटों पर धैर्य की जीत का पर्व भी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज आप सभी बहुत संयम के साथ जी रहे हैं, मर्यादा में रहकर पर्व, त्योहार मना रहे हैं, इसलिए, जो लड़ाई हम लड़ रहे हैं, उसमें जीत भी सुनिश्चित है। पहले, दुर्गा पंडाल में मां के दर्शनों के लिए इतनी भीड़ जुट जाती थी – एकदम, मेले जैसा माहौल रहता था, लेकिन इस बार ऐसा नही हो पाया। पहले, दशहरे पर भी बड़े-बड़े मेले लगते थे, लेकिन इस बार उनका स्वरूप भी अलग ही है। रामलीला का त्योहार भी, उसका बहुत बड़ा आकर्षण था, लेकिन उसमें भी कुछ-न-कुछ पाबंदियां लगी हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले, नवरात्र पर गुजरात के गरबा की गूंज हर तरफ़ छाई रहती थी, इस बार, बड़े-बड़े आयोजन सब बंद हैं। अभी, आगे और भी कई पर्व आने वाले हैं। अभी ईद है, शरद पूर्णिमा है, वाल्मीकि जयंती है, फिर, धनतेरस, दिवाली, भाई-दूज, छठी मैया की पूजा है, गुरु नानक देवजी की जयंती है – कोरोना के इस संकट काल में, हमें संयम से ही काम लेना है, मर्यादा में ही रहना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब हम त्योहार की बात करते हैं, तैयारी करते हैं, तो सबसे पहले मन में यही आता है कि बाजार कब जाना है। क्या-क्या खरीदारी करनी है? ख़ासकर, बच्चों में तो इसका विशेष उत्साह रहता है – इस बार, त्योहार पर नया क्या मिलने वाला है? त्योहारों की ये उमंग और बाजार की चमक, एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। लेकिन इस बार जब आप खरीदारी करने जाएं तो ‘वोकल फॉर लोकल’ का अपना संकल्प अवश्य याद रखें। बाजार से सामान खरीदते समय, हमें स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देनी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि त्योहारों के इस हर्षोल्लास के बीच में लॉकडाउन के समय को भी याद करना चाहिए। लॉकडाउन में हमने समाज के उन साथियों को और करीब से जाना है, जिनके बिना हमारा जीवन बहुत ही मुश्किल हो जाता – सफाई कर्मचारी, घर में काम करने वाले भाई-बहन, लोकल सब्जी वाले, दूध वाले, सिक्योरिटी गार्ड्स, इन सबका हमारे जीवन में क्या रोल है, हमने अब भली-भांति महसूस किया है। कठिन समय में, ये आपके साथ थे, हम सबके साथ थे। अब अपने पर्वों में अपनी खुशियों में भी, हमें इनको साथ रखना है। मेरा आग्रह है कि जैसे भी संभव हो, इन्हें अपनी खुशियों में जरुर शामिल करिए। परिवार के सदस्य की तरह करिए, फिर आप देखिए, आपकी खुशियां, कितनी बढ़ जाती हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें अपने उन जांबाज़ सैनिकों को भी याद रखना है, जो इन त्योहारों में भी सीमाओं पर डटे हैं। भारत माता की सेवा और सुरक्षा कर रहें हैं। हमें उनको याद करके ही अपने त्योहार मनाने हैं। हमें घर में एक दीया, भारत माता के इन वीर बेटे-बेटियों के सम्मान में भी जलाना है। मैं अपने वीर जवानों से भी कहना चाहता हूं कि आप भले ही सीमा पर हैं, लेकिन पूरा देश आपके साथ हैं, आपके लिए कामना कर रहा है। मैं उन परिवारों के त्याग को भी नमन करता हूँ जिनके बेटे-बेटियां आज सरहद पर हैं। हर वो व्यक्ति जो देश से जुड़ी किसी-न-किसी जिम्मेदारी की वजह से अपने घर पर नहीं है, अपने परिवार से दूर है – मैं हृदय से उसका आभार प्रकट करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज जब हम लोकल के लिए वोकल हो रहे हैं तो दुनिया भी हमारे लोकल प्रोडक्ट्स की फैन हो रही है। हमारे कई लोकल प्रोडक्ट्स में ग्लोबल होने की बहुत बड़ी शक्ति है। जैसे एक उदाहरण है- खादी का। लम्बे समय तक खादी, सादगी की पहचान रही है, लेकिन हमारी खादी आज ईको-फ्रेंडली फैब्रिक के रूप में जानी जा रही है। स्वास्थ्य की दृष्टि से ये बॉडी फ्रेंडली फैब्रिक है, आल वेदर फैब्रिक है और आज खादी फैशन स्टेटमेंट तो बन ही रही है। खादी की पॉपुलरिटी तो बढ़ ही रही है, साथ ही दुनिया में कई जगह, खादी बनाई भी जा रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मैक्सिको में एक जगह है ‘ओहाका। इस इलाके में कई गांव ऐसे हैं, जहां स्थानीय ग्रामीण खादी बुनने का काम करते है। आज यहां की खादी ‘ओहाका खादी’ के नाम से प्रसिद्ध हो चुकी है। ओहाका में खादी कैसे पहुंचीं ये भी कम रोचक नहीं है। दरअसल मैक्सिको के एक युवा मार्क ब्राउन ने एक बार महात्मा गांधी पर एक फिल्म देखी। ब्राउन ये फिल्म देखकर बापू से इतना प्रभावित हुए कि वो भारत में बापू के आश्रम आए और बापू के बारे में और गहराई से जाना-समझा। तब ब्राउन को अहसास हुआ कि खादी केवल एक कपड़ा ही नहीं है बल्कि ये तो एक पूरी जीवन पद्धति है। इससे किस तरह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता का दर्शन जुड़ा है, ब्राउन इससे बहुत प्रभावित हुए। यहीं से ब्राउन ने ठाना कि वो मैक्सिको में जाकर खादी का काम शुरू करेंगे। उन्होंने मैक्सिको के ओहाका में ग्रामीणों को खादी का काम सिखाया, उन्हें प्रशिक्षित किया और आज ‘ओहाका खादी’ एक ब्रांड बन गया है। इस प्रोजेक्ट की वेबसाइट पर लिखा है ‘द सिंबॉल आफ धर्मा इन मोटिवेशन’।
इस वेबसाइट में मार्क ब्राउन का बहुत ही दिलचस्प इंटरव्यू भी मिलेगा। वे बताते हैं कि शुरू में लोग खादी को लेकर संदेह में थे, परंतु आख़िरकार, इसमें लोगों की दिलचस्पी बढ़ी और इसका बाज़ार तैयार हो गया। ये कहते हैं, ये राम-राज्य से जुड़ी बातें हैं जब आप लोगों की जरूरतों को पूरा करते है तो फिर लोग भी आपसे जुड़ने चले आते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दिल्ली के कनॉट प्लेस के खादी स्टोर में इस बार गांधी जयंती पर एक ही दिन में एक करोड़ रुपए से ज्यादा की खरीदारी हुई। इसी तरह कोरोना के समय में खादी के मास्क भी बहुत पॉपुलर हो रहे हैं। देशभर में कई जगह सेल्फ हेल्प ग्रुप्स और दूसरी संस्थाएं खादी के मास्क बना रहे हैं। यूपी में, बाराबंकी में एक महिला हैं – सुमन देवीजी। उन्होंने सेल्फ हेल्प ग्रुप की अपनी साथी महिलाओं के साथ मिलकर खादी मास्क बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे उनके साथ अन्य महिलाएँ भी जुड़ती चली गईं, अब वे सभी मिलकर हजारों खादी मास्क बना रही हैं। हमारे लोकल प्रॉडक्ट्स की खूबी है कि उनके साथ अक्सर एक पूरा दर्शन जुड़ा होता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब हमें अपनी चीजों पर गर्व होता है, तो दुनिया में भी उनके प्रति जिज्ञासा बढ़ती है। जैसे हमारे आध्यात्म ने, योग ने, आयुर्वेद ने, पूरी दुनिया को आकर्षित किया है। हमारे कई खेल भी दुनिया को आकर्षित कर रहे हैं। आजकल, हमारा मलखम्ब भी अनेक देशों में प्रचलित हो रहा है। अमेरिका में चिन्मय पाटणकर और प्रज्ञा पाटणकर ने जब अपने घर से ही मलखम्ब सिखाना शुरू किया था, तो उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि इसे इतनी सफलता मिलेगी। अमेरिका में आज कई स्थानों पर, मलखम्ब ट्रेनिंग सेंटर चल रहे हैं। बड़ी संख्या में अमेरिका के युवा इससे जुड़ रहे हैं, मलखम्ब सीख रहे हैं। आज जर्मनी हो, पोलैंड हो, मलेशिया हो, ऐसे करीब 20 अन्य देशो में भी मलखम्ब खूब पॉपुलर हो रहा है। अब तो, इसकी विश्व चैंपियनशिप शुरू की गई है, जिसमें कई देशों के प्रतिभागी हिस्सा लेते हैं। भारत में तो प्रचीन काल से कई ऐसे खेल रहे हैं, जो हमारे भीतर, एक असाधारण विकास करते हैं। हमारे माइंड, बॉडी बैलेंस को एक नए आयाम पर ले जाते हैं। लेकिन संभवतः, नई पीढ़ी के हमारे युवा साथी, मलखम्ब से उतना परिचित ना हों। आप इसे इन्टरनेट पर जरूर सर्च करिए और देखिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे देश में कितनी ही मार्शल आर्ट्स हैं। मैं चाहूंगा कि हमारे युवा-साथी इनके बारे में भी जाने, इन्हें सीखें और, समय के हिसाब से इनोवेट भी करें। जब जीवन में बड़ी चुनौतियां नहीं होती हैं, तो व्यक्तित्व का सर्वश्रेष्ठ भी बाहर निकल कर नहीं आता है। इसलिए अपने आप को हमेशा चैलेंज करते रहिए।
कहा जाता है ‘लर्निंग इज ग्रोइंग। आज मैं आपका परिचय एक ऐसे व्यक्ति से कराऊंगा जिसमें एक अनोखा जुनून है। ये जुनून है दूसरों के साथ रीडिंग और लर्निंग की खुशियों को बांटने का। ये हैं पोन मरियप्पन, ये तमिलनाडु के तुतुकुड़ी में रहते हैं। तुतुकुड़ी को पर्ल सिटी यानी मोतियों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। यह कभी पांडियन साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। यहां रहने वाले मेरे दोस्त पोन मरियप्पन हेयर कटिंग के पेशे से जुड़े हैं और एक सलून चलाते हैं। बहुत छोटासा सलून है। उन्होंने एक अनोखा और प्रेरणादायी काम किया है। अपने सलून के एक हिस्से को ही पुस्तकालय बना दिया है। यदि व्यक्ति सलून में अपनी बारी का इंतज़ार करने के दौरान वहां कुछ पढ़ता है, और जो पढ़ा है उसके बारे में थोड़ा लिखता है, तो पोन मरियप्पनजी उस ग्राहक को डिस्काउंट देते हैं – है न मजेदार!
प्रधानमंत्री ने कहा कि आपको ये जानकार खुशी होगी कि पूरे भारत में अनेक लोग हैं जिन्हें ज्ञान के प्रसार से अपार खुशी मिलती है। ये वो लोग हैं जो हमेशा इस बात के लिए तत्पर रहते हैं कि हर कोई पढ़ने के लिए प्रेरित हो। मध्य प्रदेश के सिंगरौली की शिक्षिका उषा दुबेजी ने तो स्कूटी को ही मोबाइल लाइब्रेरी में बदल दिया। वे प्रतिदिन अपने चलते-फिरते पुस्तकालय के साथ किसी न किसी गांव में पहुंच जाती हैं और वहां बच्चों को पढ़ाती हैं। बच्चे उन्हें प्यार से किताबों वाली दीदी कह कर बुलाते है। इस साल अगस्त में अरुणाचल प्रदेश के निरजुली के रायो विलेज में एक सेल्फ हेल्प लाइब्रेरी बनाई गई है। दरअसल, यहां की मीना गुरुंग और दिवांग होसाई को जब पता चला कि कस्बे में कोई लाइब्रेरी नहीं है तो उन्होंने इसकी फंडिंग के लिए हाथ बढ़ाया। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि इस लाइब्रेरी के लिए कोई मेंबरशिप ही नहीं है। कोई भी व्यक्ति दो हफ्ते के लिए किताब ले जा सकता है। पढ़ने के बाद उसे वापस करना होता है। ये लाइब्रेरी सातों दिन, चौबीसों घंटे खुली रहती है। आस-पड़ोस के अभिभावक यह देखकर काफी खुश हैं कि उनके बच्चे किताब पढ़ने में जुटे हैं। खासकर उस समय जब स्कूलों ने भी आनलाइन क्लासेज शुरू कर दी हैं।
वहीं चंडीगढ़ में एक एनजीओ चलाने वाले संदीप कुमारजी ने एक मिनी वैन में मोबाइल लाइब्रेरी बनाई है, इसके माध्यम से गरीब बच्चों को पढ़ने के लिए मुफ्त में पुस्तकें दी जाती हैं। इसके साथ ही गुजरात के भावनगर की भी दो संस्थाओं के बारे में जानता हूं जो बेहतरीन कार्य कर रही हैं। उनमें से एक है ‘विकास वर्तुल ट्रस्ट’। यह संस्था प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए बहुत मददगार है। यह ट्रस्ट 1975 से काम कर रहा है और ये 5,000 पुस्तकों के साथ 140 से अधिक मैग्जीन उपलब्ध कराता है। ऐसी एक संस्था ‘पुस्तक परब’ है। ये इनोवेटिव प्रोजेक्ट है जो साहित्यिक पुस्तकों के साथ ही दूसरी किताबें निशुल्क उपलब्ध कराते हैं। इस लाइब्रेरी में आध्यात्मिक, आयुर्वेदिक उपचार, और कई अन्य विषयों से सम्बंधित पुस्तकें भी शामिल हैं। यदि आपको इस तरह के और प्रयासों के बारे में कुछ पता है तो मेरा आग्रह है कि आप उसे सोशल मीडिया पर जरूर साझा करें। ये उदाहरण पुस्तक पढ़ने या पुस्तकालय खोलने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि, यह उस नए भारत की भावना का भी प्रतीक है जिसमें समाज के विकास के लिए हर क्षेत्र और हर तबके के लोग नए-नए और इनोवेटिव तरीके अपना रहे हैं।
गीता में कहा गया है – न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्र मिह विद्यते.. अर्थात् ज्ञान के समान, संसार में कुछ भी पवित्र नहीं हैं। मैं ज्ञान का प्रसार करने वाले, ऐसे नेक प्रयास करने वाले, सभी महानुभावों का हृदय से अभिनंदन करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ ही दिनों बाद सरदार वल्लभ भाई पटेलजी की जन्म जयंती 31 अक्टूबर को हम सब, ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के तौर पर मनाएंगे। ‘मन की बात’ में, पहले भी हमने सरदार पटेल पर विस्तार से बात की है। हमने उनके विराट व्यक्तित्व के कई आयामों पर चर्चा की है। बहुत कम लोग मिलेंगे जिनके व्यक्तित्व में एक साथ कई सारे तत्व मौजूद हों – वैचारिक गहराई, नैतिक साहस, राजनैतिक विलक्षणता, कृषि क्षेत्र का गहरा ज्ञान और राष्ट्रीय एकता के प्रति समर्पण भाव। क्या आप सरदार पटेल के बारे में एक बात जानते हैं जो उनके सेंस आफ ह्यूमर को दर्शाती हैं। जरा उस लौह-पुरुष की छवि की कल्पना कीजिए जो राजे-रजवाड़ों से बात कर रहे थे, पूज्य बापू के जन-आंदोलन का प्रबंधन कर रहे थे, साथ ही, अंग्रेजों से लड़ाई भी लड़ रहे थे, और इन सब के बीच भी, उनका सेंस आफ ह्यूमर पूरे रंग में होता था। बापू ने सरदार पटेल के बारे में कहा था – उनकी विनोदपूर्ण बातें मुझे इतना हंसाती थी कि हंसते-हंसते पेट में बल पड़ जाते थे, ऐसा दिन में एक बार नहीं, कई-कई बार होता था। इसमें हमारे लिए भी एक सीख है, परिस्थितियां कितनी भी विषम क्यों न हो, अपने सेंस आफ ह्यूमर को जिंदा रखिए, यह हमें सहज तो रखेगा ही, हम अपनी समस्या का समाधान भी निकाल पाएंगे। सरदार साहब ने यही तो किया था!
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरदार पटेल ने अपना पूरा जीवन देश की एकजुटता के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने, भारतीय जनमानस को, स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा। उन्होंने आजादी के साथ किसानों के मुद्दों को जोड़ने का काम किया। उन्होंने, राजे-रजवाड़ों को हमारे राष्ट्र के साथ एक करने का काम किया। वे विविधिता में एकता के मंत्र को हर भारतीय के मन में जगा रहे थे।
आज हमें अपनी वाणी, अपने व्यवहार, अपने कर्म से हर पल उन सब चीजों को आगे बढ़ाना है जो हमें ‘एक’ करे, जो देश के एक भाग में रहने वाले नागरिक के मन में, दूसरे कोने में रहने वाले नागरिक के लिए सहजता और अपनत्व का भाव पैदा कर सके।
हमारे पूर्वजों ने सदियों से ये प्रयास निरंतर किए हैं। अब देखिए, केरल में जन्मे पूज्य आदि शंकराचार्यजी ने, भारत की चारों दिशाओं में चार महत्वपूर्ण मठों की स्थापना की- उत्तर में बद्रिकाश्रम, पूर्व में पूरी, दक्षिण में शृंगेरी और पश्चिम में द्वारका। उन्होंने श्रीनगर की यात्रा भी की, यही कारण है कि, वहां एक ‘शंकराचार्य हिल’ है। तीर्थाटन अपने आप में भारत को एक सूत्र में पिरोता है। ज्योर्तिलिंगों और शक्तिपीठों की शृंखला भारत को एक सूत्र में बांधती है। त्रिपुरा से ले कर गुजरात तक, जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक स्थापित, हमारे, आस्था के केंद्र, हमें ‘एक’ करते हैं। भक्ति आन्दोलन पूरे भारत में एक बड़ा जन-आन्दोलन बन गया, जिसने, हमें भक्ति के माध्यम से एकजुट किया। हमारे नित्य जीवन में भी ये बातें कैसे घुल गई हैं, जिसमें एकता की ताकत है। प्रत्येक अनुष्ठान से पहले विभिन्न नदियों का आह्वान किया जाता है – इसमें सुदूर उत्तर में स्थित सिन्धु नदी से लेकर दक्षिण भारत की जीवनदायिनी कावेरी नदी तक शामिल है। अक्सर, हमारे यहाँ लोग कहते हैं, स्नान करते समय पवित्र भाव से, एकता का मंत्र ही बोलते हैं:
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
इसी प्रकार सिखों के पवित्र स्थलों में ‘नांदेड़ साहिब’ और ‘पटना साहिब’ गुरुद्वारे शामिल हैं। हमारे सिख गुरुओं ने भी, अपने जीवन और सद्कार्यों के माध्यम से एकता की भावना को प्रगाढ़ किया है। पिछली शताब्दी में, हमारे देश में, डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर जैसी महान विभूतियां रहीं हैं, जिन्होंने हम सभी को संविधान के माध्यम से एकजुट किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वैसे, ऐसी ताकतें भी मौजूद रही हैं जो निरंतर हमारे मन में संदेह का बीज बोने की कोशिश करते रहते हैं, देश को बांटने का प्रयास करते हैं। देश ने भी हर बार, इन बद-इरादों का मुंहतोड़ जवाब दिया है। हमें निरंतर अपनी क्रिएटीविटी से, प्रेम से, हर पल प्रयासपूर्वक अपने छोटे से छोटे कामों में, ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के खूबसूरत रंगों को सामने लाना है, एकता के नए रंग भरने हैं, और हर नागरिक को भरने हैं। इस सन्दर्भ में, मैं आप सबसे एक वेबसाइट देखने का आग्रह करता हूं – ekbharat.gov.in (एक भारत डॉट गव डॉट इन)। इसमें, नेशनल इंटीग्रेशन की हमारी मुहिम को आगे बढ़ाने के कई प्रयास दिखाई देंगे। इसका एक दिलचस्प कॉर्नर है – आज का वाक्य। इस सेक्शन में हम, हर रोज एक वाक्य को, अलग-अलग भाषाओं में कैसे बोलते हैं, यह सीख सकते हैं। आप इस वेबसाइट के लिए सहयोग भी करें। जैसे, हर राज्य और संस्कृति में अलग-अलग खान-पान होता है। यह व्यंजन स्थानीय स्तर के ख़ास तत्वों यानी, अनाज और मसालों से बनाए जाते हैं। क्या हम इन लोकल फूड की रेसिपर को लोकल तत्वों के नामों के साथ, ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ वेबसाइट पर शेयर कर सकते हैं? यूनिटी और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है!
प्रधानमंत्री ने कहा, साथियो, इस महीने की 31 तारीख़ को मुझे केवड़िया में ऐतिहासिक स्टेच्यू आफ यूनिटी पर हो रहे कई कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर मिलेगा। आप लोग भी जरूर जुड़िएगा।
31 अक्तूबर को हम ‘वाल्मीकि जयंती’ भी मनाएंगे। मैं, महर्षि वाल्मीकि को नमन करता हूं और इस खास अवसर के लिए देशवासियों को हार्दिक शुभकामनायें देता हूं। महर्षि वाल्मीकि के महान विचार करोड़ों लोगों को प्रेरित करते हैं, शक्ति प्रदान करते हैं। वे लाखों-करोड़ों ग़रीबों और दलितों के लिए, बहुत बड़ी उम्मीद हैं। उनके भीतर आशा और विश्वास का संचार करते हैं। वो कहते हैं – किसी भी मनुष्य की इच्छाशक्ति अगर उसके साथ हो, तो वह कोई भी काम बड़ी आसानी से कर सकता है। ये इच्छाशक्ति ही है, जो कई युवाओं को असाधारण कार्य करने की ताकत देती है। महर्षि वाल्मीकि ने सकारात्मक सोच पर बल दिया – उनके लिए, सेवा और मानवीय गरिमा का स्थान, सर्वोपरि है। महर्षि वाल्मीकि के आचार, विचार और आदर्श आज न्यू इंडिया के हमारे संकल्प के लिए प्रेरणा भी हैं और दिशा-निर्देश भी हैं। हम, महर्षि वाल्मीकि के प्रति सदैव कृतज्ञ रहेंगें कि उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के मार्गदर्शन के लिए रामायण जैसे महाग्रंथ की रचना की।
31 अक्तूबर को भारत की पूर्व-प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधीजी को हमने खो दिया। मैं आदरपूर्वक उनको श्रद्धांजलि देता हूं। प्रधानमंत्री ने कहा, आज, कश्मीर का पुलवामा पूरे देश को पढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज देशभर में बच्चे अपना होमवर्क करते हैं, नोट्स बनाते हैं, तो कहीं-न-कहीं इसके पीछे पुलवामा के लोगों की कड़ी मेहनत भी है। कश्मीर घाटी, पूरे देश की, करीब-करीब 90% पेंसिल स्लेट, लकड़ी की पट्टी की मांग को पूरा करती है, और उसमें बहुत बड़ी हिस्सेदारी पुलवामा की है। एक समय में, हम लोग विदेशों से पेंसिल के लिए लकड़ी मंगवाते थे, लेकिन अब हमारा पुलवामा, इस क्षेत्र से देश को आत्मनिर्भर बना रहा है। वास्तव में, पुलवामा के ये पेंसिल स्लेट्स स्टेट्स के बीच के गैप को कम कर रहे हैं। घाटी की चिनार की लकड़ी में हाई मॉश्चर कॉन्टेंट और सॉफ्टनेस होती है, जो पेंसिल के निर्माण के लिए उसे सबसे सूटेबल बनाती है। पुलवामा में, उक्खू को पेंसिल विलेज के नाम से जाना जाता है। यहां पेंसिल स्लेट निर्माण की कई इकाइयां हैं, जो रोजगार उपलब्ध करा रही हैं और इनमें काफ़ी संख्या में महिलाएं काम करती हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पुलवामा की अपनी यह पहचान तब स्थापित हुई है, जब, यहां के लोगों ने कुछ नया करने की ठानी, काम को लेकर रिस्क उठाया, और ख़ुद को उसके प्रति समर्पित कर दिया। ऐसे ही कर्मठ लोगों में से एक है – मंजूर अहमद अलाई। पहले मंजूर भाई लकड़ी काटने वाले एक सामान्य मजदूर थे। मंजूर भाई कुछ नया करना चाहते थे ताकि उनकी आने वाली पीढ़ियां ग़रीबी में न जिएं। उन्होंने, अपनी पुस्तैनी जमीन बेच दी और एप्पल वुडन बॉक्स यानी सेब रखने वाले लकड़ी के बक्से बनाने की यूनिट शुरू की। वे अपने छोटे से बिजनेस में जुटे हुए थे, तभी मंजूर भाई को कहीं से पता चला कि पेंसिल निर्माण में पॉपुलर वुड यानी चिनार की लकड़ी का उपयोग शुरू किया गया है। ये जानकारी मिलने के बाद, मंजूर भाई ने अपनी उद्यमिता का परिचय देते हुए कुछ फेूस पेंसिल मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स को पॉपुलर वुडन बॉक्स की आपूर्ति शुरू की। मंजूरजी को ये बहुत फायदेमंद लगा और उनकी आमदनी भी अच्छी ख़ासी बढ़ने लगी। समय के साथ उन्होंने पेंसिल स्लेट मैन्यूफैक्चरिंग मशीनरी ले ली और उसके बाद उन्होंने देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों को पेंसिल स्लेट की सप्लाई शुरू कर दी। आज, मंजूर भाई के इस बिजनेस का टर्नओवर करोड़ों में है और वे लगभग दो-सौ लोगों को आजीविका भी दे रहे हैं। आज ‘मन की बात’ के जरिए समस्त देशवासियों की ओर से, मैं मंजूर भाई समेत, पुलवामा के मेहनतकश भाई-बहनों को और उनके परिवार वालों को, उनकी प्रशंसा करता हूं – आप सब, देश के यंग माइंड्स को शिक्षित करने के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान टेक्नोलॉजी बेस्ड सर्विस डिलिवरी के कई प्रयोग हमारे देश में हुए हैं, और अब ऐसा नहीं रहा कि बहुत बड़ी टेक्नोलॉजी और लॉजिस्टिक्स कंपनीज ही यह कर सकती हैं। झारखण्ड में ये काम महिलाओं के सेल्फ हेल्प ग्रुप्स ने करके दिखाया है। इन महिलाओं ने किसानों के खेतों से सब्जियां और फल लिए और सीधे, घरों तक पहुंचाए। इन महिलाओं ने ‘आजीविका फार्म फ्रेंश’ नाम से एक ऐप बनवाया जिसके जरिए लोग आसानी से सब्जियां मंगा सकते थे। इस पूरे प्रयास से किसानों को अपनी सब्जियां और फलों के अच्छे दाम मिले, और लोगों को भी फ्रेश सब्जियां मिलती रहीं। वहां ‘आजीविका फार्म फ्रेश’ ऐप का आइडिया बहुत पॉपुलर हो रहा है। लॉकडाउन में इन्होंने 50 लाख रुपए से भी ज्यादा के फल-सब्जियां लोगों तक पहुँचाई हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि क्षेत्र में नई सम्भावनाएं बनता देख, हमारे युवा भी काफी संख्या में इससे जुड़ने लगे हैं। मध्यप्रदेश के बड़वानी में अतुल पाटीदार अपने क्षेत्र के 4 हजार किसानों को डिजिटल रूप से जोड़ चुके हैं। ये किसान अतुल पाटीदार के ई-प्लेटफॉर्म के जरिए, खेती के सामान, जैसे खाद, बीज, पेस्टीसाइड, फंगीसाइड आदि की होम डिलिवरी पा रहे हैं, यानी किसानों को घर तक, उनकी जरूरत की चीज़ें मिल रही हैं। इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आधुनिक कृषि उपकरण भी किराए पर मिल जाते हैं। लॉकडाउन के समय भी इस डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए किसानों को हज़ारों पैकेट डिलिवरी किए गए, जिसमें कपास और सब्जियों के बीज भी थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इन दिनों महाराष्ट्र की एक घटना पर मेरा ध्यान गया। वहां एक कंपनी ने मक्के की खेती करने वाले किसानों से मक्का ख़रीदा। कंपनी ने किसानों को इस बार, मूल्य के अतिरिक्त बोनस भी दिया। किसानों को भी एक सुखद आश्चर्य हुआ। जब उस कंपनी से पूछा, तो उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने जो नए कृषि क़ानून बनाए हैं, अब उसके तहत किसान भारत में कहीं पर भी फ़सल बेच पा रहे हैं और उन्हें अच्छे दाम मिल रहे हैं, इसलिए उन्होंने सोचा कि इस एक्स्ट्रा प्रोफिट को किसानों के साथ भी बांटना चाहिए| उस पर उनका भी हक़ है और उन्होंने किसानों को बोनस दिया है। साथियो, बोनस अभी भले ही छोटा हो, लेकिन ये शुरुआत बहुत बड़ी है। इससे हमें पता चलता है कि नए कृषि-क़ानून से जमीनी स्तर पर, किस तरह के बदलाव किसानों के पक्ष में आने की संभावनाएं भरी पड़ी हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज ‘मन की बात’ में देशवासियों की असाधारण उपलब्धियां हमारे देश, हमारी संस्कृति के अलग-अलग आयामों पर, आप सबसे बात करने का अवसर मिला। हमारा देश प्रतिभावान लोगों से भरा हुआ है। अगर आप भी ऐसे लोगों को जानते हैं तो उनके बारे में बात कीजिए, लिखिए और उनकी सफलताओं को शेयर कीजिए। आने वाले त्योहारों की आपको और आपके पूरे परिवार को बहुत-बहुत बधाई। लेकिन एक बात याद रखिए और त्योहारों में, ज़रा विशेष रूप से याद रखिये- मास्क पहनना है, हाथ साबुन से धोते रहना है, दो गज की दूरी बनाए रखनी है।