नई दिल्ली/भाषा। केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को खत्म करने के लिए औपचारिक वार्ता पर गतिरोध बने रहने के बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि सरकार मुद्दे का समाधान करने के लिए विभिन्न किसान संगठनों के साथ अनौपचारिक चर्चा कर रही है, लेकिन ‘किसानों के कंधे पर बंदूक रख कर चलाने वाले लोगों’ से बात करने का कोई मतलब नहीं है।
मंत्री ने साथ ही उम्मीद जताई कि साल समाप्त होने से पहले कोई समाधान निकाल लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार कृषक समुदाय की सभी वाजिब चिंताओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने किसानों को गुमराह करने के लिए विपक्षी पार्टियों को जिम्मेदार ठहराया और उन पर आरोप लगाया कि वे सुधार प्रक्रिया पर अपने रुख में बदलाव कर रही हैं तथा मुद्दे को राजनीतिक रंग दे रही हैं।
तोमर, खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश के साथ करीब 40 किसान संघों से बातचीत में केंद्र का नेतृत्व कर रहे हैं। तोमर ने एक साक्षात्कार में कहा कि तीनों नए कृषि कानून किसानों के लिए लाभकारी हैं और सरकार लिखित में यह आश्वासन देने को तैयार है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तथा मंडी प्रणाली जारी रहेगी।
हजारों की संख्या में किसान, जिनमें से ज्यादातर पंजाब एवं हरियाणा से हैं, दिल्ली की सीमाओं पर पिछले तीन हफ्ते से अधिक समय से नए कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। गतिरोध को दूर करने के लिए तीनों केंद्रीय मंत्रियों और 40 किसान संघों के बीच कम से कम पांच दौर की औपचारिक वार्ता हुई है, लेकिन किसानों के संघ इन कानूनों को पूरी तरह से वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
गतिरोध और आगे की राह के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए तोमर ने कहा, ‘हम किसानों के संघों के साथ निरंतर चर्चा कर रहे हैं … कुल मिलाकर, हमारी कोशिश उनके साथ वार्ता के जरिए एक समाधान तक पहुंचने की है। हम वार्ता के लिए अब भी तैयार है। मैं उम्मीद करता हूं कि वार्ता के जरिए हम एक समाधान तक पहुंचने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘अनौपचारिक वार्ता जारी है। मुझे उम्मीद है कोई रास्ता निकलेगा।’ यह पूछे जाने पर कि क्या उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित की जाने वाली समिति वार्ता करेगी और समाधान निकालेगी या फिर सरकार अपनी कोशिशें जारी रखेंगी, तोमर ने कहा कि सरकार ने किसान नेताओं के साथ बातचीत के लिए अपने दरवाजे खुले रखे हैं और आगे के कदम के लिए शीर्ष न्यायालय के आदेश का इंतजार करेगी।
उन्होंने कहा, ‘यह विषय न्यायालय में विचाराधीन है। न्यायालय के आदेश के बाद, हम उसका अध्ययन करेंगे और कोई निर्णय लेंगे… हम न्यायालय के निर्देश का इंतजार करेंगे।’ मंत्री ने कहा कि किसानों के बारे में चिंतित किसान संघों को कृषक समुदाय की समस्याएं उठानी चाहिए ताकि सरकार एक समाधान तलाश सके। साथ ही, उन्होंने किसान संगठनों से यह भी कहा कि इन कानूनों को निरस्त करने या वापस लेने पर जोर नहीं दें, जिन्हें किसानों के फायदे के लिए लागू किया गया है।
किसान संघों द्वारा सरकार से अन्य किसान संघों/संगठनों के साथ समानांतर वार्ता नहीं करने और प्रदशनकारी किसानों को बदनाम नहीं करने के लिए कहे जाने के विषय पर तोमर ने कहा, ‘किसानों के कल्याण की चिंता कर रहे किसान नेताओं को किसानों की समस्याओं के बारे में चर्चा करनी चाहिए। यह मायने क्यों रखना चाहिए कि क्या इन कानूनों को वापस लिया जाएगा या नहीं?’
उन्होंने कहा कि सरकार को यदि इन कानूनों के प्रावधानों पर आपत्तियों के बारे में सफलतापूर्वक सहमत कर लिया जाता है तो केंद्र इन कानूनों में बदलाव करने पर विचार कर सकता है। वास्तविक किसान नेताओं के साथ बातचीत करने संबंधी उनकी हालिया टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर मंत्री ने कहा, ‘जब मैं वास्तविक कहता हूं तो मेरा मतलब उन लोगों से है जो सचमुच में किसानों के बारे में चिंतित हैं। उन लोगों से बात करने का कोई मतलब नहीं है जो किसानों के कंधे पर बंदूक रख कर चलाना चाहते हैं।’
उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की समस्या का हल करने के लिए मौजूद है लेकिन जब तक कोई खास समस्याएं नहीं बताई जाएंगी, तब तक सरकार समाधान की पेशकश कैसे कर सकती है। यह पूछे जाने पर कि सरकार एमएसपी के बारे में आश्वासन कैसे देने की योजना बना रही है, तोमर ने कहा, ‘हम लिखित में देंगे कि इस तारीख तक जिस तरह से एमएसपी जारी है, वह भविष्य में भी जारी रहेगी। इस बारे में किसी को भी संदेह नहीं होना चाहिए।’
उन्होने कहा कि एमएसपी प्रणाली एक प्रशासनिक फैसला है और हर चीज के लिए कानून नहीं हो सकता है। तोमर ने इस बात का जिक्र किया कि जब इरादे सही हों तो समाधान भी निश्चित रूप से निकलता है। उन्होंने कहा कि केंद्र की (नरेंद्र) मोदी सरकार ने स्पष्ट इरादे के साथ तीनों कृषि कानूनों को लागू किया और इसके नतीजे भी अच्छे होंगे।
यह पूछे जाने पर कि क्या किसानों का मुद्दा 2020 की समाप्ति से पहले सुलझ जाएगा, उन्होंने कहा, ‘‘हां। मुझे पूरी उम्मीद है…हर किसी का अपना एजेंडा है। मेरा एजेंडा किसान है। मुझे बताइए कि कृषि कानूनों का कौन सा प्रावधान किसानों को नुकसान पहुंचा रहा है, मुझे समझाइए जरा। हम चर्चा के लिए तैयार हैं।’
अकाली दल के इस आरोप पर कि ‘भाजपा ही असली टुकड़े-टुकड़े गैंग है और हिंदू-मुसलमान को बांटना चाहती थी और अब हिंदू-सिख को बांटना चाहती है’, तोमर ने कहा, ‘राजनीतिक दलों को किसानों की आड़ में राजनीति नहीं करनी चाहिए। ये वही पार्टियां हैं जिन्होंने चुनावों के दौरान इन सुधारों का समर्थन किया था।’
उन्होंने कहा, ‘2019 के आम चुनाव के लिए कांग्रेस के घोषणा पत्र में, पंजाब विधानसभा चुनाव घोषणा पत्र में, चाहे वह कांग्रेस हो या अकाली दल या आम आदमी पार्टी, सभी ने सुधारों की बात कही। अब वे अपना रुख बदल रहे हैं।’
यह पूछे जाने पर कि क्या ये प्रदर्शन मोदी-विरोधी हैं या इन कानूनों पर किसानों की वाजिब चिंताओं को लेकर हैं, तोमर ने कहा, ‘प्रदर्शन में किसान हैं। कृषि मंत्री होने के नाते मैं उन्हें किसान मानता हूं। हम कृषि के दृष्टिकोण से उन पर गौर कर रहे हैं। मेरी कोशिश किसान नेताओं से बात करने की है ताकि हम उनकी समस्याओं को दूर कर सकें।’
मंत्री ने कहा कि पिछले पांच दौर की वार्ता में सरकार ने किसान संघों के नेताओं से कानूनों के प्रावधानों पर अपनी आपत्तियां बताने को कहा था लेकिन उन्होंने खण्डवार चिंताएं साझा नहीं की और इसलिए केंद्र ने कुछ संशोधनों का सुझाव देते हुए एक मसौदा प्रस्ताव भेजा था।’