नई दिल्ली/भाषा। पोत परिवहन मंत्री मनसुख मंडाविया ने बुधवार को विपक्ष के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि सरकार देश के प्रमुख बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपने जा रही है। इसके साथ ही उन्होंने जोर दिया कि बंदरगाहों का निजीकरण नहीं होगा और सरकार कर्मचारियों के कल्याण का ध्यान रखेगी।
मंडाविया ने राज्यसभा में महापत्तन प्राधिकरण विधेयक 2020 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि कई विपक्षी सदस्यों का आरोप है कि इस विधेयक के जरिए सरकार बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक का निजीकरण से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि विगत में भी पूर्व पोत परिवहन मंत्री ऐसा आश्वासन दे चुके हैं और एक बार फिर वह जोर दे रहे हैं कि बंदरगाहों का निजीकरण नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि सरकार ने बंदरगाहों को पीपीपी मॉडल (सार्वजनिक निजी भागीदारी) के तहत विकसित करने का फैसला किया है और इसी प्रक्रिया के तहत कोलकाता बंदरगाह का कायाकल्प किया गया है। उन्होंने कहा कि पहले कोलकाता बंदरगाह घाटे में था लेकिन सरकार के प्रयासों के बाद अब वह लाभ की स्थिति में है और पेंशन सहित अन्य देनदारी भी खत्म कर दी गई है। मंत्री के जवाब के बाद सदन में मत विभाजन हुआ। तत्पश्चात सदन ने विधेयक को 44 के मुकाबले 84 मतों से पारित कर दिया। यह विधेयक लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है।
मंडाविया ने कहा कि विधेयक के संबंध में स्थायी समिति की ज्यादातर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है और बंदरगाहों के प्रबंधन के लिए प्रस्तावित बोर्डों में विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व होगा। उन्होंने कहा कि इसमें राज्य सरकार का भी प्रतिनिधित्व होगा और संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा।
उन्होंने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पहले की सरकार में ‘मित्र’ होते थे लेकिन इस सरकार में कोई ‘मित्र’ नहीं है तथा देश की जनता उसकी मित्र है। मंडाविया ने कहा कि 1963 में बंदरगाह ट्रस्ट कानून लागू हुआ था और उस समय देश में सिर्फ बड़े बंदरगाह ही थे। उन्होंने कहा कि लेकिन अब छोटे बंदरगाह भी बन गए हैं और उन दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा भी है।
मंडाविया ने कहा कि बड़े बंदरगाहों को सक्षम बनाने और उनकी व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए यह विधेयक लाया गया है। उन्होंने कहा कि नई व्यवस्था में फैसला करने के लिए बंदरगाह प्रबंधन को मंत्री से संपर्क नहीं करना होगा और वे अपने स्तर पर जरूरी फैसले कर सकेंगे।
इससे पूर्व विधेयक पर हुई चर्चा में विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार इस विधेयक के जरिए बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है। विपक्ष का आरोप था कि विधेयक के प्रावधानों में बंदरगाहों के प्रबंधन के लिए 13 सदस्यीय बोर्ड का प्रस्ताव किया गया है जिसके सात सदस्य गैर-सरकारी होंगे। ऐसी स्थिति में निर्णय लेने का अधिकार निजी क्षेत्र को मिल जाएगा और इससे देश की सुरक्षा भी प्रभावित हो सकती है।