संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द परिभाषित नहीं : दीक्षित

संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द परिभाषित नहीं : दीक्षित

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने ’’अल्पसंख्यक’’ शब्द को संविधान में परिभाषित नहीं बताकर एक नई बहस को जन्म दे दिया। दीक्षित ने यहां कहा कि संविधान में ’’अल्पसंख्यक’’ शब्द को परिभाषित ही नहीं किया गया है, इसलिए यह निर्विवाद नहीं है। हालांकि, वर्तमान राजनीतिक दौर में इस शब्द को परिभाषित किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वर्ष १९७६ में आपातस्थिति के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने संविधान में समाजवादी और पंथ निरपेक्षता शब्द जु़डवा दिए थे। यह संशोधन संसद में विपक्ष की नामौजूदगी में कराया गया था, क्योंकि देश के प्रमुख विपक्षी नेता उस समय जेल में थे। उनका कहना था कि उस समय सभा अपने स्वरुप में नहीं थी। इन दोनों शब्दों को परिभाषित भी नहीं किया गया था। परम्पराओं के अनुसार, विधि निर्माण में प्रयुक्त शब्दों को परिभाषित किया जाना चाहिए। अल्पसंख्यक शब्द भी परिभाषित नहीं है, इसलिए इसको निर्विवाद नहीं कहा जा सकता।चालीस वर्षों से अधिक का राजनीतिक अनुभव रखने वाले और ३० से अधिक किताबों के लेखक दीक्षित को संविधान का मर्मज्ञ भी माना जाता है। उन्होंने कहा कि संविधान सभा के अंतिम भाषण में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और डॉ. भीमराव अम्बेडकर दोनों ने कहा है कि संविधान की सफलता या विफलता उन व्यक्तियों पर निर्भर करती है जिन्हें जनता चुनेगी। लेकिन, देश की सबसे ब़डी विधानसभा उत्तर प्रदेश के सदन में राज्यपाल पर कागज के गोले फेंके गए।उनका कहना था कि सभा की स्थापना ऋग्वैदिक काल से ही इस देश में है। इससे स्पष्ट है कि विचार विनिमय का क्रम भारत से ही शुरु हुआ। सभा की शक्ति मजबूत होने से राज्य व्यवस्था चुस्त दुरुस्त रहती है। उन्होंने कहा कि महाभारतकाल में सभा की शक्ति घटने की वजह से ही चीरहरण हुआ। जुआ खेला गया। भीष्म और विदुर जैसे लोगों की मौजूदगी में यह घटनाएं हुईं जिसका परिणाम महाभारत रहा। इसलिए सभा का मजबूत होना जरुरी है।दीक्षित ने कहा कि सभी का कर्तव्य है कि सभा को हर हाल में मजबूत किया जाए। राज्यपाल पर कागज के गोले फेंकने की उन्होंने भी निंदा की थी। निंदा को कम नहीं आंका जाना चाहिए। वर्ष १९६८ में लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान भी विपक्षी सदस्यों ने ऐसा किया था। लोकसभा अध्यक्ष ने निंदा प्रस्ताव पारित कर दिया था। इसके बाद विपक्षी सांसद उच्चतम न्यायालय गए लेकिन न्यायालय ने सदन की व्यवस्था में हस्तक्षेप से साफ इन्कार कर दिया था। उत्तर प्रदेश विधानसभा में इस तरह की हरकत करने वाले विधायकों को स्वयं गौर करना होगा

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