भाषाओं में टकराव की नहीं, सहयोग की भावना हो : नायडू

भाषाओं में टकराव की नहीं, सहयोग की भावना हो : नायडू

हैदराबाद। क्षेत्रीय भाषाओं में टकराव की नहीं बल्कि सहयोग की भावना होनी चाहिए ताकि देश की सभी भाषाएं एक-दूसरे का सहयोग करते हुए समृद्घशाली हों। हिन्दी ने भारत की एकता, अखंडता और भाषाई सद्भाव बढाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। यह बात दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के १६वें सालाना दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति एम. वेकैंया नायडू ने कही।श्री सत्य सांईं निगमागम में आयोजित १६वें राज्यस्तरीय राष्ट्रभाषा विशारद एवं प्रवीण दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए नायडू ने कहा कि देश की एकता, अखंडता और समानता के लिए भाषा की बहुत अहमियत होती है। भाषाएं जो़डने का काम करती हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी देश को एकता के सूत्र में पिरोने का काम करती है। उन्होंेने कहा कि ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’’ की परिकल्पना को साकार करने के लिए अपनी मातृभाषा के साथ-साथ हिंदी को भी आत्मसात करना होगा। उन्होंने हिंदी सीखने पर बल देते हुए कहा कि भाषा को किसी पर थोपा नहीं जाना चाहिए बल्कि इस प्रकार का माहौल बनाया जाए कि सामने वाला स्वयं उस भाषा को सीखने के लिए लालायित हो। अंग्रेजी भाषा पर अपने विचार रखते हुए नायडू ने कहा कि इसे व्यवहारिक रूप से सीखना चाहिए न कि अपनी मानसिकता में धारण करना चाहिए।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्य के उप मुख्यमंत्री महमूद अली ने कहा कि हमारा देश विविध संस्कृतियों एवं भाषाओं वाला देश है। जिसे एक सूत्र में बांधने के लिए एक भाषा की जरुरत होती है और हिंदी में वह ताकत है जो देश को एकता के सूत्र में पिरो सकती है। समारोह की अध्यक्षता दक्षिण भारत मद्रास के कुलपति एच. हनुमंतप्पा ने की। इस अवसर पर खैरताबाद के विधायक चितंला रामचंद्र रेड्डी, पूर्व राज्यसभा सदस्य एच. हनुमंतप्पा, समकुलपति आरएफ नीरलकट्टी, प्रधान सचिव एस. जसराज, वी रामकृष्णैया, एम चवाकुला नरसिम्हा मूर्ति, एस सुब्रमण्यम आदि उपस्थित थे। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश के अध्यक्ष पी ओबय्या ने संस्था की गतिविधियों की जानकारी दी।

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