भोपाल/दक्षिण भारत। मध्य प्रदेश में एक बार फिर बिजली का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है। चुनावी मौसम में अघोषित बिजली कटौती से जहां जनता नाराज है, वहीं सरकार की भी चिंता बढ़ गई है क्योंकि 15 साल पहले मध्य प्रदेश में बिजली एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बना था और उससे तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कुर्सी हिल गई थी।
अब लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा बिजली और सड़क जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठा रही है। ऐसे में मप्र सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ के सख्त रुख के बाद मुख्य सचिव ने कलेक्टरों और संभागीय कमिश्नरों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की और निर्देश दिए कि अघोषित बिजली कटौती के मामले में संबंधित अधिकारी-कर्मचारी पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
एक रिपोर्ट के अनुसार, अघोषित बिजली कटौती मामले में अब तक सरकार 387 अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी कर चुकी हैं। इनमें से 217 नौकरी से हटा दिए गए हैं। इसके अलावा 142 को निलंबित किया गया है। लापरवाही के आरोप में 28 कर्मचारियों को नोटिस थमाए गए हैं। बताया गया है कि ज्यादातर कर्मचारी आउटसोर्स से हैं।
बता दें कि हरदा, सीधी, खंडवा, आगर, शाजापुर आदि कई जिलों से शिकायतें आ रही थीं कि यहां अघोषित बिजली कटौती हो रही है। इसके पीछे कई कर्मचारियों की लापरवाही भी सामने आई है। खंडवा में ही एक सब इंजीनियर, सर्किल इंचार्ज, परीक्षण सहायक और चार लाइनमैन निलंबित किए गए हैं। आठ आउटसोर्स कर्मचारी नौकरी से हटाए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि मप्र में साल 2003 में तत्कालीन दिग्विजय सरकार की विदाई में बिजली कटौती ने अहम भूमिका निभाई थी। तब राजधानी भोपाल में भी बिजली कटौती हो रही थी। भाजपा ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया और कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार गई। डेढ़ दशक बाद कांग्रेस ने मप्र की सत्ता में वापसी की है। ऐसे में बिजली का मुद्दा उसके लिए फिर चुनौती साबित हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि यदि स्थिति नहीं संभाल सकते तो कुर्सी छोड़ दो। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार को स्थिति संभालना नहीं आ रहा है, बल्कि आउटसोर्स कर्मचारियों को नौकरी से हटाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व अपनी संभावित हार से बौखला गया है।