कोलकाता/दक्षिण भारत। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने राम मंदिर आंदोलन से जुड़े कोठारी बंधुओं के परिवार से मुलाकात कर श्रद्धांजलि अर्पित की। अपने फेसबुक पेज पर 12 नवंबर को एक पोस्ट में उन्होंने कोठारी बंधुओं को नमन करते हुए कहा, ‘साल 1990 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन, (तत्कालीन मुख्यमंत्री) मुलायम सिंह यादव की पुलिस द्वारा की गई क्रूर गोलीबारी में 16 कारसेवकों ने अयोध्या में वीरगति प्राप्त की थी। प्राण उत्सर्ग करने वालों में कोठारी बंधु राम और शरद कोठारी, कोलकाता के थे जो उस समय सिर्फ 22 और 20 साल के थे।’
राम माधव ने लिखा, ‘उनकी वीरगति ने माता-पिता और बहन सहित कई लोगों को अयोध्या में राम मंदिर के लिए काम जारी रखने के लिए प्रेरित किया। उनके माता-पिता ने 1991 और 1992 में अयोध्या में दो कारसेवाओं में भाग लिया था। उन्होंने संघ परिवार के संगठनों में आखिरी सांस तक इस आशा के साथ सक्रिय रूप से काम किया था कि उनके दो बेटों का बलिदान व्यर्थ न जाए।’
राम माधव कहते हैं, ‘कोठारी बंधुओं के माता-पिता आज नहीं हैं; लेकिन कई अन्य लोगों के साथ उन दो युवकों के बलिदान का जवाब मिल गया है। राम मंदिर एक वास्तविकता बनने जा रहा है। परिवार में शेष एकमात्र बहन पूर्णिमा कोठारी, मंदिर के लिए कारसेवा करने का अवसर चाहती हैं। आज कोठारी बंधुओं का बलिदान दिवस है। मैं इसलिए कोलकाता पहुंचा और उनके घर जाकर मैंने इन युवा बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी।’
बता दें कि कोठारी बंधुओं की इकलौती बहन पूर्णिमा कोठारी ने अयोध्या पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद कहा, ‘मैं आज भी अपने भाइयों के उस बलिदान को जी रही हूं।’ कोलकाता निवासी राम कोठारी और शरद कोठारी ने 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या में तत्कालीन बाबरी ढांचे पर भगवा झंडा फहराया था और दो नवंबर, 1990 को अयोध्या में पुलिस की गोली से उनकी मौत हुई। बाबरी ढांचे पर भगवा झंडा फहराने की जो तस्वीरें मीडिया में आईं, उनमें राम कोठारी गुंबद के सबसे ऊपर हाथ में भगवा झंडा थामे खड़े थे और शरद कोठारी उनके बगल में खड़े थे।
मीडिया के अनुसार, इसके बाद दो नवंबर, 1990 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन कारसेवक एक बार फिर बाबरी मस्जिद की ओर कूच करने के लिए हनुमान गढ़ी मंदिर के पास जमा हुए। इस बार पुलिस ने उन्हें काबू में करने के लिए गोलियां चलाईं। प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक, हनुमान गढ़ी के पास हुई इस गोलीबारी में 16 लोग मारे गए, जिसमें राम और शरद कोठारी भी शामिल थे।
पूर्णिमा ने बताया, ‘मैं मानती हूं कि जब किसी परिवार से कोई बलिदान होता है, तो उस बलिदान को पूरा परिवार जीता है। मैंने अपनी आंखों से यही देखा है कि मेरे माता-पिता ने अपने बच्चों के बलिदान को अपनी सारी उम्र जिया। मेरी मां जब गुजरी, तो मेरे भाइयों को गुजरे 25 साल हो गए थे, लेकिन वह लगातार उस बलिदान को जी रही थीं।’ उनके पिता का 2002 में और मां का 2016 में देहांत हुआ।
कोठारी बंधुओं का परिवार मूल रूप से बीकानेर का रहने वाला था और दोनों भाइयों को बीकानेर से बहुत लगाव था। इस बारे में पूर्णिमा ने बताया, ‘पिताजी ने बीकानेर में सॉफ्ट ड्रिंक की छोटी फैक्टरी खोली थी। दोनों भाई आपस में बहस करते थे कि तुम कलकत्ता रहना, मैं बीकानेर जाऊंगा। दोनों को बीकानेर बहुत पसंद था। दोनों बीकानेर में जाकर रहना चाहते थे।’
उन्होंने बताया कि दोनों भाई बहुत छोटी उम्र से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। उस समय कारसेवा के लिए संघ के पदाधिकारियों ने यह नियम बनाया था कि एक परिवार से एक व्यक्ति ही कारसेवा में जाएगा। पूर्णिमा बताती हैं, ‘राम ने कहा कि राम के काम में राम तो जाएगा। छोटे ने कहा कि राम जहां जाएगा, वहां लक्ष्मण भी जाएगा। ऐसा करके इन्होंने पदाधिकारियों और घर वालों दोनों को निरुत्तर कर दिया था।’