धौलपुर/वार्ता। राजस्थान में धौलपुर जिले के मंचकुंड जंगल में दुर्लभ काली गिलहरियां दिखी है और इसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नए शोध को जन्म दिया है।
छोटे स्तनधारी जंतुओं पर शोध कर रहे डॉ. दाऊ लाल बोहरा ने बताया कि ये भारत ही नहीं एशिया में आनुवांशिक स्तर पर एक नई उप प्रजाति अथवा टाइप्स हो सकती है। इस पर शोध जारी है। वतर्मान में काली गिलहरियों की संख्या धौलपुर में 10 से 15 के लगभग बताई जा रही है। विशेषज्ञों की माने तो काली गिलहरी उत्तरी अमरीका, ब्रिटेन और भारत के केरल में नजर आती हैं्। डॉ. बोहरा ने कहा कि काली गिलहरी का धौलपुर में पाया जाना आश्र्चर्यचकित घटना है।
काली गिलहरी का पाया जाना रंग परिवर्तन के लिए मेलानाइजेशन (काला रंजकता) उत्तरदायी है। उन्होंने बताया कि यह परिवर्तन एक लाख जंतुओं में एक बार होता है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी न होकर उसी के साथ समाप्त भी हो जाता है। भारत ही नहीं शिया में आंशिक स्वर एरसाथ समाप्त हो जाता है। भारत ही नहीं एशिया में आनुवंशिक स्तर पर यह एक उप प्रजाति हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के लिए धौलपुर में पाई जाने वाली गिलहरी का रंग बदलना शोध का विषय है। पीढ़ी दर पीढ़ी न होकर उसी के साथ समाप्त हो जाता है रंग, केरल के बाद अब धौलपुर में काली गिलहरी पाया जाना आश्र्चर्यजनक है। काले रंग के होना सरोवर के आसपास की पहाड़ियों से जो पानी आता है, उसमें सल्फर की मात्रा अधिक होना भी माना जा रहा है।