जयपुर/दक्षिण भारत। राजस्थान की तीन विधानसभा सीटों सुजानगढ़, सहाड़ा और राजसमंद के उपचुनाव नतीजों के साथ ही भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का सियासी कद बढ़ सकता है। प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद पूनिया के लिए यह पहला उपचुनाव था। उनके नेतृत्व में भाजपा उपचुनाव में राजसमंद विधानसभा सीट पर अपना कब्जा बरकरार रख सकी है।
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के पिछले कार्यकाल में प्रदेश में 8 सीटों पर उपचुनाव हुए। उनमें से भाजपा सिर्फ दो सीटें जीत सकी। अगर तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो पूनिया का प्रदर्शन शानदार कहा जा सकता है। चूंकि पार्टी को उक्त में से राजसमंद पर जीत मिली। अगर यह उसके हाथ से निकल जाती तो पूनिया के नेतृत्व पर कई सवाल उठते।
पार्टी के इस प्रदर्शन से पूनिय की साख मजबूत होगी और आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व उन्हें और जिम्मेदारी दे सकता है।
राजसमंद में यह रहा वोटों का समीकरण
राजसमंद से भाजपा उम्मीदवार दीप्ति माहेश्वरी ने कुल 74,704 वोट प्राप्त किए। इनमें 296 पोस्टल वोट थे। दीप्ति को कुल वोटों का 49.74 प्रतिशत यानी करीब आधा हिस्सा प्राप्त हुआ। उधर, कांग्रेस के तनसुख बोहरा 69,394 मतों के साथ कुल वोटों का 46.21 प्रतिशत पाने में सफल रहे। यहां 5,310 वोटों के अंतर से दीप्ति विजयी घोषित हुईं।
दीप्ति माहेश्वरी भाजपा की दिवंगत वरिष्ठ नेता किरण माहेश्वरी की बेटी हैं। उनकी इस जीत से जहां सियासी पारी का आगाज हुआ है, वहीं प्रदेशाध्यक्ष पूनिया के कार्यकाल का यह पहला उपचुनाव रहा जिसमें वे पार्टी के लिए यह सीट बचाने में कामयाब रहे। यह भी जानना जरूरी है कि चुनाव नतीजों से किसी को फायदा या घाटा नहीं हुआ है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपना गढ़ बचाने में सफल रही हैं।
राजे के राज में ऐसा प्रदर्शन
जब वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री थीं तो साल 2014 से 2018 के बीच हुए उपचुनावों में भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा, बल्कि उसे 8 में से 6 पर हार का सामना करना पड़ा था। इनमें 6 विधानसभा और 2 लोकसभा सीटों के उपचुनाव भी थे।
भाजपा सिर्फ कोटा उत्तर और धौलपुर जीत पाई, जबकि कांग्रेस ने सूरजगढ़, वैर, नसीराबाद जैसी सीटें जीतकर उसके सामने कड़ी चुनौती पेश की। इसके बाद अजमेर व अलवर लोकसभा तथा मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को शिकस्त का सामना करना पड़ा।
.. तो दुगुनी हो जाती भाजपा की खुशी
सतीश पूनिया के सामने यह भी चुनौती थी कि वे इस चलन को बदलें। हालांकि कांग्रेस को मिलीं 2 सीटों में से किसी एक पर भाजपा जीत जाती तो इससे भाजपा की खुशी दुगुनी हो जाती। बहरहाल यह माना जा सकता है कि राजस्थान के आगामी चुनावी ‘रण’ के लिए भाजपा को और मजबूती से तैयारी करनी होगी। अगर पूनिया के नेतृत्व में 2023 के नतीजे भाजपा के अनुकूल आते हैं तो उनके समर्थक उन्हें ‘बड़ी’ भूमिका में देखना चाहेंगे।