नई दिल्ली/दक्षिण भारत। भारत से कई युद्धों में मात खाने के बाद पाकिस्तान को समझ में आ गया कि वह खुले मैदान की जंग में कहीं नहीं टिकता। इसके बाद उसने युवाओं को जिहाद के नाम पर भड़काकर आतंकवाद को परवान चढ़ाना शुरू किया। मुंबई पर 26/11 का आतंकी हमला पाक की ऐसी ही एक नापाक चाल थी, जिसमें कई बेगुनाह लोगों की जानें गईं और हमारे जांबाज सैनिक भी शहीद हुए।
भारत मां के उन वीर सपूतों में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन का नाम सदैव याद रखा जाएगा जिन्होंने आम नागरिकों की रक्षा करते हुए पाकिस्तानी आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया और इसी दौरान वे वीरगति को प्राप्त हो गए। संदीप उन्नीकृष्णन का परिवार केरल से है, लेकिन बाद में वे बेंगलूरु आ गए थे। उनके पिता के. उन्नीकृष्णन इसरो में अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। मेजर संदीप की माता का नाम धनलक्ष्मी है।
15 मार्च, 1977 को जन्मे संदीप उन्नीकृष्णन ने बेंगलूरु से स्कूली पढ़ाई की थी। वे एक होशियार विद्यार्थी होने के साथ ही अच्छे खिलाड़ी भी थे। स्कूली दिनों से ही उनका ख्वाब था कि वे सेना में भर्ती हों और देश की सेवा करें। साल 1995 में उनका यह ख्वाब हकीकत में तब्दील हो गया और वे राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के लिए चुन लिए गए।
वे 12 जुलाई, 1999 को बिहार रेजिमेंट की सातवीं बटालियन में बतौर लेफ्टिनेंट नियुक्त हुए। उन्होंने जम्मू-कश्मीर, राजस्थान सहित कई स्थानों पर सेवाएं दीं। संदीप उन्नीकृष्णन 2007 में एनएसजी के लिए चुने गए। उन्होंने सेना के कई महत्वपूर्ण अभियानों में भाग लिया था।
26 नवंबर, 2008 की रात पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मुंबई की कई प्रतिष्ठित इमारतों पर हमला किया। उन्होंने होटल ताज में कई लोगों को बंधक बना रखा था। मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की टीम को ऑपरेशन ब्लैकटॉर्नेडो के तहत यह जिम्मेदारी सौंपी गई कि वे लोगों को छुड़ाएं और आतंकियों का खात्मा करें। मेजर के नेतृत्व में उनकी टीम ने बहुत बहादुरी से आतंकियों का मुकाबला किया और उन्हें एक-एक कर ढेर करते गए।
इस कार्रवाई के दौरान मेजर संदीप को मालूम हुआ कि तीसरी मंजिल पर आतंकी घात लगाकर बैठे हैं। उन्होंने कुछ महिलाओं को एक कमरे में भी बंधक बना रखा था। मेजर संदीप बंधकों को बचाने पहुंच गए। जब कमरे का दरवाजा तोड़ा गया तो आतंकियों ने गोलीबारी कर दी। इससे कमांडो सुनील यादव घायल हो गए। फिर आतंकियों के साथ मेजर संदीप की मुठभेड़ हुई। इस दौरान उन्हें पीछे से गोली लगी और वे गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्होंने 28 नवंबर, 2008 को मातृभूमि की रक्षा करते हुए आखिरी सांस ली। मुठभेड़ के दौरान उन्होंने अपने साथी से कहा था, ‘ऊपर मत आना, मैं इन सबको देख लूंगा’।
आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान मेजर संदीप के दाएं हाथ में भी गोली लगी थी, लेकिन उन्होंने आतंकियों का पीछा करना जारी रखा और उन्हें ढूंढ़-ढूंढ़कर मार गिराया। जो लोग उस रोज आतंकियों द्वारा बंधक बनाए गए थे, मेजर संदीप को याद करते हुए उनकी आंखें नम हो जाती हैं। देश के इस वीर सपूत को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। मेजर संदीप की शहादत के बाद माता-पिता को दस्तावेजों के जरिए पता चला कि उनका बेटा अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अनाथालयों, मंदिरों और परोपकार के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को दान कर देता था।