मुंबई। बम्बई उच्च न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार से दहीहांडी को वर्ष २०१५ में एक साहसिक खेल के तौर पर वर्गीकृत करने और नाबालिगों को महोत्सव में हिस्सा लेने की इजाजत देने के निर्णय का आधार स्पष्ट करने के लिए कहा। न्यायमूर्ति आरएम सावंत और न्यायमूर्ति साधना जाधव की एक खंडपीठ ने यह सवाल उस याचिका पर सुनवाई करते हुए उठाया जिसमें भाजपा नेता आशीष शेलार और अन्य के खिलाफ वर्ष २०१५ में उच्च न्यायालय द्वारा दहीहांडी महोत्सव के लिए लगाई गई शर्तों एवं पाबंदियों का उल्लंघन करने के लिए अवमानना की कार्यवाही की मांग की गई थी। शेलार के अलावा अर्जी में मुम्बई भाजपा युवा इकाई के पूर्व अध्यक्ष गणेश पांडेय और राज्य सरकार के तत्कालीन प्रधान सचिव के खिलाफ भी अवमानना की कार्यवाही की मांग की गई है।याचिकाकर्ता ने सोमवार को पीठ को सूचित किया कि उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष २०१५ के अपने आदेश में पाबंदियां लगाए जाने के बाद राज्य सरकार ने उसी वर्ष ११ अगस्त को एक प्रस्ताव जारी किया और दहीहांडी को एक साहसिक खेल घोषित कर दिया। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि मानव पिरामिड की ऊंचाई २० मीटर से अधिक नहीं होगी और इसमें किसी भी नाबालिग को हिस्सा लेने की इजाजत नहीं होगी। प्रस्ताव के तहत सरकार ने ११ वर्ष से अधिक आयु के नाबालिगों को महोत्सव में हिस्सा लेने की इजाजत दी लेकिन इसके लिए उनके अभिभावकों का पत्र जरूरी किया। प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति जाधव ने आज कहा, क्या दही हांडी एक साहसिक खेल है? क्या हमारे आदेश का इसके साहसिक खेल होने की आ़ड में उल्लंघन किया गया? ऐसे साहसिक खेल में नाबालिग कैसे हिस्सा ले सकते हैं? हमें समझाइए। पीठ ने सरकार को अपने सवालों को जवाब देने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई की तारीख चार अगस्त तय कर दी।
बम्बई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा, क्या दही हांडी एक साहसिक खेल है? क्या हमारे आदेश का इसके साहसिक खेल होने की आड़ में उल्लंघन किया गया? ऐसे साहसिक खेल में नाबालिग कैसे हिस्सा ले सकते हैं?