हैदराबाद। चिंताकिंदी मल्लेशम ने एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक मशीन बनाई, जिससे बुनकरों की समस्याएं कम हो गईं। इसके लिए उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा गया है। छठवीं कक्षा तक प़ढे मल्लेशम की यात्रा कठिनाई और दृ़ढता की एक मिसाल है, जिसकी वजह से उन्हें अब राष्ट्रीय सम्मान के अलावा मान्यता और प्रसिद्धि भी मिली। पेशे से एक बुनकर मल्लेशम ने पेटेंट लक्ष्मी असू मशीन का आविष्कार किया है। यह धागे को प्रॉसेस कर पोचमपल्ली सा़डी को करीब डे़ढ घंटे में तैयार कर सकती है, जबकि हाथ से इसे तैयार कर ने में करीब छह घंटे का समय लगता था। तेलंगाना के शारजिपेट गांव में एक गरीब बुनकर परिवार से ताल्लुक रखने वाले मल्लेशम को कक्षा ६ में ही पैसों की तंगी के चलते प़ढाई छो़डनी प़डी थी। परिवार ने उन्हें हथकरघा बुनाई की परंपरा में शामिल कर लिया और तभी उनके दिमाग में मशीन बनाने का विचार आया। वह बताते हैं कि असु नाम की इस प्रक्रिया में क़डी मेहनत लगती है और यह दर्दनाक होती है क्योंकि बुनकरों को कंधे और कोहनी में अक्सर दर्द होता है। पॉचमपल्ली तरीके से सा़डी बनाने के लिए असु प्रॉसेस जरूरी होता है। मल्लेशम का कहना है कि जब वह छोटा था, तो अपनी मां को इस दर्दनाक प्रक्रिया में बैठे हुए देखता था। तभी उसके मन में कप़डा बुनने की इस प्रक्रिया को ऑटोमैटिक बनाने का विचार आया। जब उन्होंने मशीन बनाई, तो कई बुनकरों की समस्या हल हो गई और इसके लिए भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया।
बुनकर से इंजीनियर बन गया यह शख्स, मिला पद्मश्री सम्मान
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