नई दिल्ली/भाषा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 का रोवर उतरने पर वहां पानी की मौजूदगी के बारे में चौंकाने वाली और काफी अहम जानकारी मिल सकती है। दरअसल, ताजा अध्ययनों में यह पता चला है कि इस क्षेत्र में पहले के अनुमानों से कहीं अधिक मात्रा में पानी बर्फ के रूप में हो सकता है।
चंद्रयान-1 के जरिए चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का साक्ष्य सबसे पहले जुटाने वाले इसरो की योजना अब नए मिशन के जरिए वहां जल की उपलब्धता के वितरण और उसकी मात्रा की माप कर उन प्रयोगों को आगे बढ़ाने की है।
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव काफी ठंडा और काफी संख्या में विशाल गड्ढों (क्रेटर) वाला है। दरअसल, क्रेटर कटोरे जैसी आकृति वाला एक विशाल गड्ढा होता है जो उल्का पिंड के टकराने, ज्वालामुखीय गतिविधि या विस्फोट के प्रभाव से बनता है।
वहां ऐसे स्थान भी हैं जहां निरंतर धूप खिली रहती है या वहां लगातार अंधेरा छाया रहता है। यही कारण है कि नासा ने अपने आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत 2024 में वहां अंतरिक्षयात्रियों को भेजने की इच्छा जताई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 22 जुलाई को जीएसएलवी मार्क-III (थ्री)-एम 1(वन) रॉकेट के जरिए आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया था।
इसके साथ चंद्रयान-2 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के लिए 48 दिनों का अपना ऐतिहासिक सफर शुरू किया। यह वहां पानी के लिए अपनी खोज करेगा। मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) में सहायक प्राध्यापक सुदीप भट्टाचार्य ने कहा, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उत्तरी ध्रुव की तुलना में कहीं अधिक छाया है और वहां क्रेटर जैसे स्थायी रूप से कुछ अंधकार वाले क्षेत्र होने की भी संभावना है।
उन्होंने कहा, इसलिए वहां बर्फ के रूप में पानी होने की कहीं अधिक संभावना है और वहां कुछ अन्य तत्व भी मौजूद होंगे, जिनका हम दक्षिणी ध्रुव पर पता लगाएंगे। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने अपने अध्ययन में चंद्रमा पर मौजूद क्रेटर को बुध ग्रह पर मौजूद क्रेटर से समानता रखने वाला पाया है।
‘नेचर जियोसाइंस’ जर्नल में प्रकाशित अपने पत्र में उन्होंने चंद्रमा के सामान्य क्रेटरों के अंधेरे वाले क्षेत्रों के अंदर स्थायी रूप से बर्फ की मोटी परत होने का साक्ष्य मिलने की बात कही है। शोधार्थियों ने अपने अध्ययन में लिखा है कि नासा के लुनार रिकोनाइसेंस आर्बिटर (एलआरओ) डेटा के जरिए चंद्रमा के करीब 12,000 क्रेटर के बारे में बुध ग्रह की तरह ही जांच की गई, जिससे वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ऐसा बर्फ की मोटी परत की मौजूदगी के चलते है।
भट्टाचार्या ने बताया कि चंद्रयान-2 लैंडर संभवत: ऐसा पहला उपकरण होगा जो इस क्षेत्र में (चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर) उतरेगा। नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के शोधार्थियों ने इस बात का जिक्र किया है कि इस धुर दक्षिणी क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता ‘क्रेटरों’ की मौजूदगी है, जिनमें से कुछ तक सूर्य का प्रकाश कभी नहीं पहुंचा है।
स्थायी रूप से वहां अंधेरा छाये रहने के परिणामस्वरूप एलआरओ ने सौर मंडल में इन क्रेटरों के अंदर सर्वाधिक ठंडा और न्यूनतम तापमान पाया। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक पेपर में नासा वैज्ञानिकों ने कहा है कि वहां का तापमान शून्य से 223 डिग्री सेल्सियस नीचे है। भट्टाचार्या ने इस बात का जिक्र किया कि चंद्रमा की सतह और वायुमंडलीय संरचना, भौतिक स्वभाव तथा भूकंपीय गतिविधियों की माप के लिए लैंडर और रोवर में कुल पांच तरह के औजार हैं।