कर्मवीरों का कमाल: सरकार से नहीं ली कोई मदद, ग्रामीणों ने रुपए इकट्ठे कर खुद बनाया पुल

कर्मवीरों का कमाल: सरकार से नहीं ली कोई मदद, ग्रामीणों ने रुपए इकट्ठे कर खुद बनाया पुल

मेहनत से गांव का मुकद्दर बदलने वाले नायकों को सोशल मीडिया कर रहा सलाम

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

दिसपुर/दक्षिण भारत। फिल्म ‘नया दौर’ के उस दृश्य को कौन भूल सकता है जब ‘साथी हाथ बढ़ाना’ के आह्वान पर ग्रामीण एकजुट हो गए और सड़क बना दी। अपनी मेहनत से मुकद्दर बदलने की वह कहानी भले ही फिल्मी हो लेकिन असल ज़िंदगी में ऐसे नायकों की कमी नहीं है।

असम के एक ग्रामीण इलाके में लोगों को पुल के अभाव में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इसके बाद उन्होंने जो कर दिखाया, वह अपने आप में एक मिसाल है। न कहीं से सरकारी मदद ली और न किसी मददगार का इंतजार किया। बस, ‘साथी हाथ बढ़ाना’ की तर्ज पर एक-दूसरे की ताकत बने और एक शानदार पुल खड़ा कर दिया। आज सोशल मीडिया ऐसे नायकों को सलाम कर ​रहा है।

बरसात मेंं बढ़ जाती थीं मुसीबतें
जानकारी के अनुसार, घटना असम के कामरूप जिले की है। यहां जलजली नदी पर पुल की जरूरत थी। पुल नहीं होने से लोगों को ज्यादा समय लगता था और आवागमन में काफी समस्याएं होती थीं। यही नहीं, बाहर से भी लोगों को यहां पहुंचने में मशक्कत करनी पड़ती थी।

बरसात के दिनों में जब नदी उफान पर होती तो मुसीबतें और बढ़ जातीं। आखिरकार ग्रामीणों ने तय किया कि वे अपनी समस्या खुद सुलझाएंगे और इसके लिए खुद ही पैसा इकट्ठा करेंगे।

फिर क्या था, आसपास के करीब 10 गांवों ने इसके लिए रकम जोड़ी, जो एक करोड़ रुपए तक पहुंच गई। करीब 7,000 ग्रामीणों ने इसमें योगदान दिया। साल 2018 में पुल का निर्माण शुरू हुआ जो अब पूरा हो चुका है। पुल की लंबाई करीब 335 मीटर बताई गई है।

खुद हालात बदलने की ठानी
पुल बनने के बाद ग्रामीणों को कई सुविधाएं हो गई हैं। अब इसके जरिए लोग आसानी से आवागमन कर सकते हैं। राशन, सब्जी, दवाई और जरूरी सामान पुल के रास्ते घरों तक ले जाया जा सकता है। पुल बनने से अब किसी बच्चे की पढ़ाई नहीं रुकेगी जो मानसून के दौरान बाधित होती थी। .. और यह सब मुमकिन हुआ है उन ग्रामीणों की हिम्मत और पक्के इरादे से जिन्होंने किसी मददगार की राह देखने के बजाय खुद हालात बदलने की ठानी और कामयाब हुए।

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