.. राजीव शर्मा ..
अहमदाबाद/दक्षिण भारत। क्या रेगिस्तानी इलाके में खेती को मुनाफे का सौदा बनाया जा सकता है? हममें से ज्यादातर का जवाब ‘नहीं’ में होगा, लेकिन गुजरात के किसान ईश्वर पिंडोरिया ने इस अवधारणा को बदलने में सफलता पाई है। उन्होंने आधुनिक तकनीक का प्रशिक्षण लिया और आज कच्छ के रन में खजूर की खेती कर रहे हैं।
इससे पहले, ईश्वर पिंडोरिया इजरायल गए जहां कम पानी में बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के गुर सीखे। जी हां, वही इजरायल जो कृषि क्षेत्र में आविष्कारों और क्रांतिकारी बदलावों के लिए जाना जाता है। इजरायल से कृषि के प्रशिक्षण ने उनकी दुनिया ही बदल दी।
एक साक्षात्कार में ईश्वर पिंडोरिया बताते हैं कि बचपन में उनका सपना पायलट बनना था। उन्होंने इसके लिए बड़ौदा का रुख किया लेकिन बाद में पारिवारिक परिस्थितियां ऐसी बनीं कि पायलट बनने का ख्वाब अधूरा ही रह गया और उन्हें अपने पिता का कारोबार संभालने के लिए वापस गांव लौटना पड़ा।
ईश्वर पिंडोरिया की खेती में रुचि थी और वे इस क्षेत्र में काम करना चाहते थे। हालांकि उन्होंने कारोबार को पूरी तरह नहीं छोड़ा। वे खेती में नए प्रयोग कर उसे मुनाफे वाले कारोबार में तब्दील करना चाहते थे। लेकिन यह कैसे हो? साल 2003 में उन्हें एक दोस्त ने सलाह दी कि अगर वे खेती करना चाहते हैं कि इजरायल के अनुभवों से लाभ उठाएं, क्योंकि उस देश ने कृषि क्षेत्र में बहुत कीर्तिमान कायम किए हैं।
ईश्वर पिंडोरिया अपने दोस्त की सलाह मानकर इजरायल गए। क्षेत्रफल में भारत की तुलना में बहुत छोटा और विषम मौसमी एवं जलवायु स्थितियों के बावजूद इस देश ने वैज्ञानिक खेती के दम पर वह कर दिखाया, जो कई बड़े-बड़े देश नहीं कर पाए।
ईश्वर पिंडोरिया ने इजरायल से ऐसी तकनीकें सीखने को तरजीह दी जिससे कच्छ के रन में खेती कर सकें। उन्होंने वापस आकर यहां खजूर की खेती शुरू की। शुरुआत में चीजें जल्दी सही नहीं हुईं और मेहनत भी बहुत ज्यादा करनी पड़ी। उन्हें कई बार नुकसान उठाना पड़ा लेकिन वे अपने हर अनुभव से सीखते रहे और एक समय ऐसा आया जब खजूर के पेड़ों पर भरपूर फल आने लगे।
अब आसपास के इलाकों में ईश्वर पिंडोरिया के खेत से खजूर जाने लगे। इन फलों में ऐसी मिठास थी कि धीरे-धीरे लोगों की मांग बढ़ने लगी। ऐसे में उन्होंने अपने खेत में और पौधे लगाए। ईश्वर पिंडोरिया ने इजरायल के अलावा अमेरिका व अन्य देशों से कृषि मशीनें मंगवाईं और तकनीक का भरपूर इस्तेमाल करने लगे।
कच्छ के रन में उगे इन खजूरों की मिठास गुजरात के विभिन्न जिलों से होते हुए देश के अन्य राज्यों और फिर विदेशों तक जा पहुंची। अब ईश्वर पिंडोरिया यूरोप के कई देशों में खजूर भेजते हैं। वे बताते हैं कि उनके खेत के खजूर का आकार सामान्य खजूर से बड़ा होता है और वे ज्यादा स्वादिष्ट हैं। वैज्ञानिक खेती का यही फायदा है, आप कम जगह या विषम परिस्थितियों में भी ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
ईश्वर पिंडोरिया को खेती में मिली यह कामयाबी इतनी आसान नहीं थी। इसके लिए उन्हें बहुत धैर्य के साथ मेहनत करनी पड़ी। खजूर के पौधे तुरंत फल नहीं देते। इसके लिए लंबे समय तक उनकी परवरिश करनी पड़ती है। यह सब एक निवेश की तरह होता है। यदि कहीं कोई कमी रह जाती है तो उसका असर उत्पादन पर हो सकता है।
ईश्वर पिंडोरिया अब सिर्फ खजूर की खेती नहीं करते। जब अन्य फलों की मांग होने लगी तो वे आम, अनार, जामुन की खेती भी करने लगे। उन्होंने एक ब्रांड बनाया है जिसका नाम हेमकुंड फार्म फ्रेश है। हर साल देश-विदेश से कई किसान उनके यहां वैज्ञानिक खेती के तरीके सीखने आते हैं। वहीं, स्वयं ईश्वर पिंडोरिया ने खेती से जुड़ीं वैज्ञानिक बातें सीखने का सिलसिला जारी रखा है। वे इसके लिए देश-विदेश के कृषि वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और किसानों के अनुभवों का अध्ययन करते रहते हैं।
ईश्वर पिंडोरिया बताते हैं कि खेती में सबसे ज्यादा संतुष्टि और मानसिक शांति है। यह आपको प्रकृति से जोड़ती है। आप प्रकृति की सेवा करते हैं और वह आपको प्रतिफल जरूर देती है।