‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘स्वदेशी’ की मुहिम का दिख रहा असर
.. राजीव शर्मा ..
भुवनेश्वर/दक्षिण भारत। छत्तीसगढ़ के अशोक चक्रधारी इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में हैं। आखिर क्यों न हों, उन्होंने दीपावली से पहले एक ऐसा दीपक बनाया है जो वॉट्सऐप, फेसबुक और ट्विटर पर ‘जादुई’ दीपक के नाम से मशहूर हो गया।
‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘स्वदेशी’ की मुहिम से इस दीपक की देशभर में इतनी मांग बढ़ गई है कि अब अशोक पूरा दिन व्यस्त रहते हैं। उन्होंने ग्राहकों के ऑर्डर पूरे करने के लिए कुछ और साथियों को भी अपने काम से जोड़ा है।
दरअसल अशोक ने जो दीपक बनाया है, वह अपने आकार और खूबियों के कारण देखते ही देखते इंटरनेट पर छा गया। इसका आकार ऐसा है कि जब दीपक में तेल कम होने लगता है तो जरूरत के अनुसार अपने आप भर जाता है। इसलिए इसे नाम मिला जादुई दीपक।
अशोक चक्रधारी यहां कोंडागांव जिले की मसौरा ग्राम पंचायत के कुम्हार पारा इलाके में रहते हैं। प्रचार-प्रसार से दूर वे इसी गांव में मिट्टी के नए-नए प्रयोग करते रहे हैं, जिन्हें आसपास के इलाकों में काफी सराहना भी मिली।
अब दीपावली से पहले अशोक द्वारा इस खास दीपक की तस्वीरें सामने आईं तो जिसने भी देखा, वह उनकी मेहनत और प्रतिभा की तारीफ किए बिना नहीं रहा। अशोक के पास दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरु, हैदराबाद, भोपाल, जयपुर, जोधपुर, वाराणसी, लखनऊ, देहरादून, शिमला और कई गांव-शहरों से फोन आ रहे हैं। लोगों में इस दीपक के आकर्षण के साथ ‘वोकल फॉर लोकल’ का असर दिखाई दे रहा है।
कैसे काम करता है यह दीपक?
यह दीपक विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित है। यह दो भागों में बंटा हुआ है। इसका निचला हिस्सा मजबूत आधार देता है। यह पकड़ने में आसान है, पास में ही खूबसूरत तरीके से बत्ती जलाने का स्थान स्थापित किया गया है।
वहीं, इसका ऊपरी भाग एक छोटी मटकी जैसा है। इसे दीपक का ऊर्जा केंद्र कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें तेल भरा जाता है। दोनों हिस्सों को एक नलकी से जोड़ा गया है जिससे जरूरत के मुताबिक तेल बाहर आता है।
जब इस दीपक को काम में लेना हो तो निचले भाग में उसी तरह बत्ती रखी जाती है जैसे सामान्य दीपक में रखते हैं। फिर मटकी वाले भाग में तेल भरकर इसे उलटा रख दिया जाता है। बत्ती जलाने के बाद जब दीपक के निचले भाग में तेल कम होने लगता है तो उसकी आपूर्ति ऊपर वाली मटकी से होने लगती है। इस तरह यह दीपक कई घंटों तक लगातार प्रकाश दे सकता है।
सोशल मीडिया में इसका प्रचार होने से पहले अशोक रोज करीब 30 दीपक बनाया करते थे। अब उनके पास विदेशों से भी ऑर्डर आ रहे हैं, तो उन्हें समय पर पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाकर रोज 100 दीपक किया गया है। हालांकि यह संख्या भी मांग के अनुसार काफी कम है, इसलिए अशोक ने करीब दर्जनभर साथियों को इस काम से जोड़ रखा है।
अशोक बताते हैं कि उनका जीवन बहुत संघर्षमय रहा है। वे पिछले चार दशकों से मिट्टी के बर्तन और प्रतिमाएं बनाने का काम रहे हैं। उनके माता-पिता का वर्षों पहले निधन हो गया। उधर, आर्थिक मोर्चे पर परिवार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अशोक कहते हैं कि लोगों का प्लास्टिक के सामान की ओर रुझान होने से मिट्टी के बर्तनों को लेकर आकर्षण कम हो गया। अगर कोई खरीदता भी है तो पूरी कीमत नहीं देना चाहता।
ऐसे में कई परिवारों ने मिट्टी के बर्तन बनाने का काम छोड़ दिया, लेकिन अशोक निराश नहीं हुए और तमाम अभावों के बावजूद इसी में जुटे रहे तथा लगन से प्रयोग करते रहे। उनकी वर्षों की मेहनत का परिणाम है यह ‘जादुई दीपक’, जो इस दीपावली कई घरों में उजाला करेगा। अशोक चक्रधारी और ऐसे अनेक धुन के धनी लोगों के प्रयास यह साबित करते हैं कि नए प्रयोग, सोशल मीडिया के सकारात्मक इस्तेमाल और स्वदेशी की भावना से हम अपने उद्योगों को सशक्त बनाएंगे तो देश में जरूर समृद्धि आएगी।