अमेरिका में मोदी का भव्य स्वागत बाइडेन के लिए जरूरी या मजबूरी?

प्रधानमंत्री मोदी न केवल ट्रंप के मित्र रहे हैं बल्कि उनके साथ अमेरिका और भारत में राजनीतिक मंच भी साझा कर चुके हैं


नई दिल्ली/वॉशिंगटन/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल में अमेरिका यात्रा से स्वदेश आए हैं। वहां उनका भव्य स्वागत हुआ। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता गंवाने के बाद सियासी हलकों में यह चर्चा थी कि जो बाइडेन का रुख भारत के लिए कुछ बदला-बदला हो सकता है और संभवत: वे मोदी का उस गर्मजोशी से स्वागत न करें जैसा कि उनके पूर्ववर्ती ट्रंप के शासनकाल में हुआ था।

हालांकि ये तमाम बातें सिर्फ चर्चा तक ही सीमित रहीं क्योंकि वास्तविकता इससे अलग थी। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बाइडेन प्रशासन उन लोगों के साथ 'बदले' जैसी भावना के साथ काम कर रहा है ​जो ट्रंप के करीबी समझे जाते रहे हैं। लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री का दौरा दोनों देशों के बीच संबंधों को और प्रगाढ़ करने वाला रहा है।

सत्ता में आने के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रेट्स और अमेरिकन डीप स्टेट को जोरदार झटका दिया था। पूरे शासनकाल में ट्रंप और शासन तंत्र के दिग्गज चेहरों के बीच छत्तीस का आंकड़ा ही चलता रहा। इससे वे उनकी आंखों की किरकिरी बने हुए थे। 

फिर चुनाव हुए, ट्रंप ने सत्ता गंवाई और बाइडेन ने कुर्सी संभाली। इसके बाद उन्होंने एक-एक कर उन लोगों को झटका देना शुरू कर दिया जिनकी ट्रंप से घनिष्ठता समझी जाती थी। इसका पहला निशाना नेतन्याहू बने। बाइडेन ने जेसीपीओए को पुनर्जीवित करने में समय नहीं लगाया। चुनाव के समय बाइडेन ने नेतन्याहू के लगभग खिलाफ प्रचार किया था।

दूसरा निशाना मोहम्मद बिन सलमान थे। चूंकि सऊदी अरब मुस्लिम देशों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ट्रंप का अब्राहम समझौता यहूदियों और मुसलमानों को एक जगह लाने की बात करता था। यह ट्रंप के लिए एक प्रमुख भू-राजनीतिक जीत थी जिसे मोहम्मद बिन सलमान ने सुगम बनाया। इसके जवाब में बाइडेन ने जमाल खसोगी और 9/11 मामले को लेकर सऊदी क्राउन प्रिंस को घेरने की कोशिश की थी।

यूएई के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल-नाहयान भी बाइडेन के एजेंडे में शामिल थे। बाइडेन प्रशासन ने यूएई को एफ-35 जेट की 23 अरब डॉलर की बिक्री को लगभग रद्द कर दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी न केवल ट्रंप के मित्र रहे हैं बल्कि उनके साथ अमेरिका और भारत में राजनीतिक मंच भी साझा कर चुके हैं। निश्चित रूप से यह बाइडेन और उनकी पार्टी को पसंद नहीं आया होगा। 

भारत की रूस के साथ मित्रता जगजाहिर है, जबकि डेमोक्रेट उसके राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से चिढ़ते हैं। एस 400 खरीद मामले में बाइडेन ने तुर्की को आंखें दिखाईं तो वह इस सौदे से पीछे हट गया था। हालां​कि भारत के मामले में अमेरिका का यह दांव काम नहीं आया और सरकार अपने रुख पर अडिग रही।

इस तरह मोदी अमेरिका गए तो बाइडेन के लिए वे भारत के प्रधानमंत्री के अलावा ट्रंप के दोस्त और रूस के सहयोगी भी थे। बाइडेन पूर्व की भांति नाराजगी के संकेत दे सकते थे लेकिन उन्होंने इसके उलट, बहुत मैत्रीभाव से मुलाकात की। इसे अमेरिका की मजबूरी कहा जाए या भारत की कूटनीतिक सफलता, यह विश्लेषण का विषय हो सकता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना महामारी के दौरान उपजे हालात में तमाम शिकायतों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बरकरार है। देश की अर्थव्यवस्था में निरंतर सुधार दिखाई दे रहा है। साथ ही एशिया में भारत ही है जो चीन के उभार को चुनौती दे सकता है। भारत के रूस के अलावा ऑस्ट्रेलिया, जापान और ताइवान के साथ भी अच्छे संबंध हैं। 

ऐसे में बाइडेन प्रशासन का सख्त रुख उसके लिए भी नुकसानदेह साबित होता। इसे मोदी से ज्यादा भारत का अपमान माना जाता। बाइडेन निजी तौर पर मोदी के लिए चाहे जो धारणा रखें, लेकिन बतौर राष्ट्रपति अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए उन्हें खुले दिल से मोदी का स्वागत करना ही था, उन्होंने यही किया।

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