गप्पीड़
.. राजीव शर्मा ..
बहुत प्यारा नाम है ‘ज़ोया’, जिसका उर्दू में अर्थ होता है ‘मुहब्बत’ या ‘ज़िंदगी’। अगर राजस्थान में कोई अपनी बच्ची का नाम ज़ोया रख ले तो दो दिन लोग ज़ोया’, ज़ोया’ कहेंगे, लेकिन तीसरे दिन से ‘जोवली’, ‘जोवली’ कहना शुरू कर देंगे!
अगर ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ शेखावाटी में जन्मीं होतीं तो बचपन में उनका नाम एली बाईसा होता। वे अपनी सहेलियों में एलड़ी के नाम से जानीं जातीं। शादी के बाद, उनके पति उन्हें डियर एलू कहते। आस-पड़ोस के लोग एली भाभीसा के नाम से जानते। अब जबकि वे 95 साल की हैं (ईश्वर उन्हें दीर्घायु दे) तो हर कोई कहता- ‘आली दादी, राम-राम। थारा के हालचाल हीं? कोरोना को जमानो है, अयां बारनै मतां निकळ्या करो।’
अच्छा हुआ जो ट्रंप अमेरिका में पैदा हुए, वहीं राष्ट्रपति बने और वहीं हार गए। अगर उनकी पैदाइश झुंझूनूं की होती तो गांव-गली के लोग उनका नाम ट्रंप से बदलकर टपल्यो रख देते। उनकी मां उन्हें प्यार से टप्पूड़ा बुलातीं। उनकी बीवियां उन्हें टप्पूजी कहतीं। इस उम्र में जब उनके पास राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी नहीं है तो वे गुवाड़ में बैठे चिलम पीते और ‘छग्गी पर छग्गी’ खेलते। अब तक ट्रंप खुद भूल जाते कि उनका असल नाम क्या है!
अगर बराक ओबामा सीकर की किसी ढाणी में पैदा होते तो उनका नाम बड़को भायो होता। हालांकि मिशेल ओबामा के लिए वे डियर ओबू ही कहलाते। उनके यार-दोस्त जब मिलते तो कहते- ‘अरै ओबल्या, तूं म्हान्नैं तो भूल ही गयो रै! भाया, तूं तो बडो आदमी बणगो, इब तूं म्हान्नैं क्यूं याद करैगो? एक दिन म्हारै घरां आ, तन्नैं खीर-चूरमो घालांगा।’
अगर बिल गेट्स चूरू के निवासी होते तो अपनी दौलत से ज्यादा अपने नाम के ‘सौंदर्यीकरण’ से जाने जाते। वे मोहल्लेभर में बिल्लू के नाम से मशहूर होते। जब उनकी मां को बाज़ार से सामान मंगाना होता तो वे कहतीं- ‘छोरा बिल्लूड़ा! दुकान सैं दो किलो टींडसी, आधी किलो भिंडी, एक किलो कांदा और पाव पतासा ले’के आ। और सुण, टींगरां कै सागै पान-पत्ती खाबा मतां बैठ ज्याये, नहीं तो घरां आतां ही सपीड़ खावैगो।’
बिल गेट्स अपने दफ्तर में बॉस कहलाते, लेकिन घर, मोहल्ले और रिश्तेदारों में बिल्लू ही बने रहते। हां, कहीं-कहीं लोग कुछ आदर जताने के लिए बिल्लू भायो, बिल्लू भाईजी या बिल्लूजी कह देते, पर रहते वे बिल्लू ही, बिल गेट्स नहीं। उनकी पत्नी उन्हें ‘अजी बिल्लूजी, सुणो हो के’ कहतीं। कभी-कभार बिलगेटूजी भी कह देतीं।
नाम रखने और फिर नाम के साथ थोड़ी-सी ‘कलाकारी’ करने में हम राजस्थानी किसी से पीछे नहीं हैं। हम हर नाम का ‘राजस्थानीकरण’ कर ही देते हैं! वास्तव में यह हमारा किसी व्यक्ति के प्रति विशेष प्रेम दर्शाने का तरीका है। हम हर किसी को अपना बनाना चाहते हैं। इसमें देश, धर्म, भाषा, समंदर या कोई बंधन हमें नहीं रोक पाता, क्योंकि हमारा नज़रिया इतना कलात्मक है कि रेत में भी हेत (प्यार/लगाव) ढूंढ़ ही लेते हैं।
आप मुझे राजीव के नाम से जानते हैं लेकिन मेरा एक नाम और भी है। वास्तव में मुझे वही मेरा असल नाम लगता है। मेरी मां मुझे उसी नाम से बुलाती हैं। वह बिल गेट्स के नाम (पहले शब्द) से काफी मिलता-जुलता है, जो मैं फिर किसी दिन बताऊंगा।
(यह रोचक समाचार मनोरंजन की दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है। इसको गंभीरता से नहीं लिया जाए। इसका उद्देश्य कोरोना काल में आपके चेहरे पर मुस्कान लाना है। स्वयं पढ़ें और सबको पढ़ाएं।)