नई दिल्ली/भाषा। हेलीकॉप्टर हादसे में जिंदगी और मौत से एक हफ्ते तक लड़ने वाले वायु सेना के ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ने सिंतबर में अपने स्कूल के छात्रों को प्रोत्साहित करते हुए एक पत्र में कहा था, औसत दर्जे का होने में कोई बुराई नहीं है। इसके कुछ हफ्ते पहले ही उन्हें शौर्य चक्र से नवाज़ा गया था।
वायु सैनिक का बुधवार सुबह बेंगलूरु के एक सैन्य अस्पताल में निधन हो गया। आठ दिसंबर को हुए हेलीकॉप्टर हादसे में वह गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। कुन्नूर के पास हुए हादसे में प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सशस्त्र बलों के 11 अन्य कर्मियों की जान चली गई थी।
इस हादसे में ग्रुप कैप्टन अकेले शख्स थे जो जीवित बच पाए थे। मगर आज उनका भी निधन हो गया।
उन्हें तेजस हलके लड़ाकू विमान में पिछले साल बड़ी तकनीकी खामी आने पर सुरक्षित तरीके से विमान को उतारने के लिए इस साल अगस्त में शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। उनके पिता कर्नल (सेवानिवृत्त) केपी सिंह ने सेना वायु सुरक्षा प्रभाग (एएडी) में सेवा दी है।
सिंह ने चंडी मंदिर के आर्मी पब्लिक स्कूल के प्राधानचार्य को लिखे एक पत्र में छात्रों से कहा, औसत दर्जे का होने में कोई बुराई नहीं है। स्कूल में सभी बेहतरीन नहीं हो सकते हैं और सभी 90 फीसदी से ज्यादा अंक हासिल नहीं कर सकते हैं। अगर आप ऐसा करते हैं ये जबर्दस्त उपलब्धि है और इसकी सराहना की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो यह न सोचें कि आप औसत दर्जे के हैं। आप स्कूल में औसत दर्जे के हो सकते हैं लेकिन यह जीवन में आने वाली चीजों का कोई पैमाना नहीं है।
सिंह ने कहा था, आप अपने शौक को पहचानिए। यह कला, संगीत, ग्राफिक डिजाइन, साहित्य आदि हो सकता है। आप जो भी काम करें, पूरी लगन से करें और अपना सर्वश्रेष्ठ दें। कभी भी यह सोचकर सोने नहीं जाएं कि मैं और कोशिश कर सकता था।
उन्होंने कहा कि वह स्कूल में औसत छात्र थे और 12वीं कक्षा में उनके मुश्किल से प्रथम श्रेणी के अंक आए थे लेकिन उनमें विमानों के लिए जुनून था।
उन्होंने कहा, इस वर्ष 15 अगस्त को, मुझे 12 अक्टूबर, 2020 को वीरता के एक कार्य के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था।
सिंह ने कहा था, मैं इस प्रतिष्ठित पुरस्कार का श्रेय उन सभी को देता हूं, जिनसे मैं वर्षों से स्कूल, एनडीए और उसके बाद वायु सेना में जुड़ा रहा हूं। मेरा मानना है कि मेरा उस दिन का कार्य मेरे शिक्षकों के मार्गदर्शन का नतीजा है। सिंह ने यह पत्र 18 सितंबर को लिखा था।
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