उप्र चुनाव नतीजों का कर्नाटक की सियासत पर कितना असर?

मोदी-शाह का स्पष्ट संदेश: पसंद के नेतृत्व के साथ जीत सकते हैं विधानसभा चुनाव


बेंगलूरु/दक्षिण भारत। भाजपा को पांच में से चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली जीत के गहरे सियासी मायने हैं। इससे न केवल इन राज्यों के कार्यकर्ताओं में उत्साह है, वहीं आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भी उन नेताओं को स्पष्ट संदेश है जो मौका देखकर दल बदलने की तैयारी कर रहे थे।

विश्लेषकों और स्थानीय नेताओं की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ने कर्नाटक समेत उन सभी राज्यों के नेताओं को यह संदेश दे दिया है कि वे अपनी पसंद के नेतृत्व के साथ विधानसभा चुनाव जीत सकते हैं। खासतौर से उप्र चुनाव इसकी नजीर समझा जा रहा है, जहां भाजपा ने जबरदस्त बहुमत के साथ वापसी की है।

फैसले पर पुनर्विचार
सूत्रों की मानें तो कर्नाटक में 2023 के विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा के जो नेता कांग्रेस या जद (एस) में जाने का मौका तलाश रहे थे, अब वे अपने फैसले पर जरूर पुनर्विचार करेंगे। कर्नाटक भाजपा कार्यकर्ता इस बात से उत्साहित हैं कि उप्र की तर्ज पर यहां भी उनकी पार्टी की सरकार सत्ता में वापसी करेगी।

यह कांग्रेस के लिए एक झटका है, जिसे उम्मीद थी कि उसे 2023 में सत्ता विरोधी लहर का फायदा होगा और भाजपा के कुछ नेता पाला बदलकर उसकी सदस्यता लेंगे। चूंकि कर्नाटक में 2018 के विधानसभा चुनाव बाद जद (एस), कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी, जो आपसी कलह के कारण गिर गई थी। उसके बाद येडियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, जिसे कांग्रेस छोड़कर आए विधायकों ने समर्थन दिया था।

हवा का रुख
इस संबंध में कांग्रेस के एक नेता का बयान चर्चा में है, जिन्होंने दावा किया है कि भाजपा के चार विधायक उनके संपर्क में हैं, लेकिन उक्त चुनाव नतीजों के बाद वे हवा का रुख भांपने के लिए इंतजार करना चाहते हैं।

इसी तरह कुछ विधायक जिनकी पृष्ठभूमि जद (एस) की रही है, वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामना चाहते थे, लेकिन अब वे अपना इरादा बदल सकते हैं।

बता दें कि हाल में पर्यटन मंत्री आनंद सिंह ने केपीसीसी अध्यक्ष डीके शिवकुमार के आवास पर उनसे मुलाकात की थी, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई थी।

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