बेंगलूरु/दक्षिण भारत। केंद्र सरकार ने कर्नाटक उच्च न्यायालय को बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 या उसके नियमों में किसी भी भाषा को अनिवार्य करने का कोई जिक्र नहीं है।
केंद्र सरकार ने मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी की खंडपीठ को हलफनामे में जानकारी प्रस्तुत की, जो संस्कृत भारती (कर्नाटक) ट्रस्ट और अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रही है।
इसके साथ ही सभी डिग्री छात्रों के लिए कन्नड़ सीखना अनिवार्य करने वाली कर्नाटक राज्य सरकार को झटका लगा है।
क्या कहता है हलफनामा?
शिक्षा मंत्रालय के तहत उच्च शिक्षा विभाग के अवर सचिव द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि एनईपी-2020 को स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए नागरिकों तक आसान पहुंच प्रदान करने के लिए व्यापक शैक्षिक प्रणाली प्राप्त करने के वास्ते डिज़ाइन किया गया है।
विशेष रूप से, पैरा 22.10 में कहा गया है कि उच्च शिक्षण संस्थान शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा/स्थानीय भाषा का प्रयोग करेंगे और/या द्विभाषी रूप में पेशकश करेंगे। पैरा 23.6 में परिकल्पना है कि सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में सभी स्तरों पर छात्रों और शिक्षकों के लिए एक समृद्ध विविधतापूर्ण शैक्षिक सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराया जाएगा।
टीचिंग- लर्निंग ई-कंटेंट सभी राज्यों द्वारा सभी क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ एनसीईआरटी, जीईटी, सीबीएसई, एनआईओएस और अन्य निकायों / संस्थानों द्वारा विकसित किया जाना जारी रहेगा और दीक्षा प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया जाएगा।
एक रिपोर्ट के अनुसार, छात्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने अदालत से अपील की कि वह केंद्र सरकार की दलीलों के आधार पर राज्य सरकार को निर्देश जारी करे कि छात्रों को उनकी पसंद की भाषाओं में पढ़ाई करने की अनुमति दी जाए। हालांकि, अदालत ने मामले को लेकर राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगते हुए सुनवाई 4 अप्रैल तक स्थगित कर दी।
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