नई दिल्ली/दक्षिण भारत। उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के पैनल के अनुसार, तीनों कृषि कानूनों, जिनकी वजह से 333 दिनों तक बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए, 86 प्रतिशत किसानों द्वारा समर्थित थे। पैनल का विचार था कि कृषि कानूनों को निरस्त करना 'खामोश' बहुमत के लिए अनुचित है।
पैनल को तीन कृषि अधिनियमों की जांच के लिए नियुक्त किया गया था और उसकी राय थी कि राज्यों को केंद्र सरकार से उचित मंजूरी के बाद अधिनियमों को लागू करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।
नवंबर 2021 में, किसानों के सालभर के विरोध प्रदर्शन के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी। गुरु पर्व के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था कि किसानों का एक वर्ग कई दौर की बातचीत के बावजूद कृषि कानूनों के लाभों से खुद को जोड़ नहीं पाया।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) संरचना को मजबूत करने के लिए केंद्र ने एक कृषि समिति का गठन किया। बाद में, केंद्र ने एसकेएम की मांगों को पूरा करने का लिखित आश्वासन दिया जिसमें एमएसपी समिति का गठन, मामलों की वापसी, मुआवजा और बिजली बिलों को रद्द करना शामिल था।
केंद्र ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन 29 नवंबर को संसद में कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए विधेयक पारित किया और बाद में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी। इस 'जीत' से उत्साहित किसानों ने दिल्ली की सीमाओं - सिंघू, टिकरी और गाज़ीपुर के क्षेत्र को खाली कर दिया और अपने गृह राज्यों को लौटने लगे। एसकेएम ने कहा कि वह 15 जनवरी को स्थिति की समीक्षा करेगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि केंद्र ने उसकी मांगों को पूरा किया है या नहीं।