नई दिल्ली/भाषा। देश में गर्मी बढ़ने के साथ बिजली की मांग में इजाफा हुआ है। दूसरी तरफ, रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते आयातित कोयला महंगा होने के मद्देनजर ईंधन की कमी से कुछ बिजलीघरों के उत्पादन पर असर पड़ा है। उत्पादन में कमी के चलते कई राज्यों में बिजली कटौती की जा रही है। इससे औद्योगिक गतिविधियों के साथ आम जनजीवन पर भी असर पड़ रहा है।
देश में कोयला और बिजली संकट को लेकर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड के पूर्व निदेशक (विपणन) एसएन प्रसाद से पांच सवाल और उनके जवाब-
सवाल : बिजली उत्पादन घटने के लिए कोयला आपूर्ति में कमी को जिम्मेदार माना जा रहा है। आप क्या इससे सहमत हैं?
जवाब : घरेलू स्तर पर कोयला आपूर्ति बिजली संकट का कारण नहीं है। देश में कोयला उत्पादन और उपभोक्ताओं (बिजली और अन्य क्षेत्र) को इसकी आपूर्ति में लगातार वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2021-22 में उपभोक्ताओं को 66.3 करोड़ टन कोयले की आपूर्ति की गई थी, जो एक रिकॉर्ड है। बिजली संकट का बड़ा कारण आयातित कोयला और गैस आधारित संयंत्रों में ईंधन की कमी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर कोयले और अन्य ईंधन के दाम बढ़े हैं। इससे बिजली संयंत्र कोयला आयात करने से बच रहे हैं।
घरेलू स्तर पर बात की जाए तो कोयला क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। कोल इंडिया का उत्पादन वित्त वर्ष 2021-22 में 62.26 करोड़ टन पर पहुंच गया। सिंगरेनी और निजी उपयोग वाली कोयला खदानों का उत्पादन भी बढ़ा है। इसके अलावा, सरकार ने क्षेत्र के लिए नियमों को उदार बनाया है और कारोबार सुगमता को बढ़ाया है। इससे खदानों में उत्पादन बढ़ा है।
मौजूदा बिजली संकट का एक कारण पारा चढ़ने से बिजली की मांग का अचानक बढ़ना भी है। इसका एक कारण गर्मी के साथ-साथ हर घर में बिजली पहुंचना भी है। साथ ही आज एयर कंडीशनर (एसी) और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का उपयोग भी काफी बढ़ा है। इसके अलावा, बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की वित्तीय स्थिति खराब होने से भी आपूर्ति प्रभावित हुई है। गर्मी से पनबिजली संयंत्रों में भी समस्या उत्पन्न होती है। कोल इंडिया के पास अब भी करीब छह करोड़ टन कोयला है। सिंगरेनी (सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड) के पास चार करोड़ टन से अधिक कोयला भंडार होने का अनुमान है। अगर कुछ समस्या है तो वह बुनियादी ढांचे की हो सकती है।
सवाल : क्या कोयले की आपूर्ति में कमी का कारण कोयला, बिजली और रेल मंत्रालयों में तालमेल का अभाव तो नहीं?
जवाब: मेरे हिसाब से ऐसा नहीं है। ढांचागत सुविधाओं की कमी से जरूर कुछ समस्या है। मालगाड़ी और यात्री ट्रेन एक ही पटरी पर चलेंगी तो समस्या होना स्वाभाविक है। मालगाड़ियों में भी कोयले के अलावा अन्य सामान को भी जाना है। ऐसे में सरकार प्राथमिकता तय करती है कि जरूरत क्या है। हालांकि, मालगाड़ियों के लिए अलग गलियारे का निर्माण कार्य तेजी से जारी है। इसके पूरी तरह से चालू होने से समस्या दूर होगी।
एक चीज और महत्वपूर्ण है और वह है कोयला उत्पादक कंपनियों का बिजली कंपनियों पर बकाया। कोल इंडिया का लगभग 12,000 करोड़ रुपये बिजली उत्पादक कंपनियों पर बकाया है। वहीं, बिजली उत्पादक कंपनियां कहती हैं कि वितरण कंपनियां पैसा नहीं दे रही हैं, हम कहां से दें। इससे भी कुछ समस्या पैदा होती है।
सवाल : क्या कोयला उत्पादन को लेकर हाल के वर्षों में सरकार की कोयला नीति में बदलाव हुए हैं? क्या ये बदलाव ठीक हैं?
जवाब : सरकार कोयला उत्पादन बढ़ाने को लेकर कई स्तरों पर काम कर रही है। इसमें निजी कंपनियों को वाणिज्यिक खनन की अनुमति देना आदि शामिल है। यह कदम बिल्कुल सही है। इसे बहुत पहले उठाया जाना चाहिए था। वाणिज्यिक खनन से कोल इंडिया के लिए बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे अंतत: कोयला उत्पादन बढ़ेगा।
साथ ही खदान विकास एवं परिचालक (एमडीओ) व्यवस्था बड़ी खदानों में लागू की गई है। ऐसी करीब 15 खदानों की पहचान की गई है, जिन्हें एमडीओ के जरिये विकसित किया जाएगा। इसमें कोल इंडिया चीजों को सुगम बनाने वाली भूमिका में होगी, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ेगी।
एक चीज जरूर है, हमें देखना है कि कोयला ले जाकर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में बिजली पैदा करें या फिर कोयला खदानों के आसपास स्थित संयंत्रों को ज्यादा से ज्यादा कोयला देकर अधिक बिजली उत्पादन कर उन राज्यों को दें। इस बारे में निर्णय करने की जरूरत है। पहले औसतन कोयला ढुलाई 1,100 से 1,200 किलोमीटर तक होती थी। इससे परिवहन लागत ज्यादा आती थी, लेकिन कोयला की व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाकर ढुलाई को 700 किलोमीटर के स्तर पर लाया गया है।
इसमें और कमी किए जाने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि 100 से 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बिजलीघरों को कोयले की पर्याप्त आपूर्ति की जाए और फिर वहां से उत्पादित बिजली दूसरी जगह ले जाई जाए। सरकार ने कोयला व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाकर इस दिशा में कदम उठाया है। साथ ही मेरे हिसाब से जो संयंत्र ज्यादा कुशल नहीं हैं, उनकी जगह आधुनिक एवं अधिक दक्ष बिजलीघरों को कोयले की आपूर्ति में प्राथमिकता देने की जरूरत है।
सवाल : क्या आपको लगता है कि कोयला क्षेत्र में अनुसंधान पर अधिक जोर देने की जरूरत है?
जवाब : शोध निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। अभी सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (सीएमपीडीआई) खदानों में संभावनाओं, भंडार आदि पर काम करता है। इसके अलावा ‘कोल बेड मिथेन’ पर काम चल रहा है। झरिया और रानीगंज में इस पर काम जारी है। कोल इंडिया के पास जो जमीन है, वहां नवीकरणीय ऊर्जा से बिजली उत्पादन की क्षमता विकसित करने पर भी ध्यान दिया जा रहा है।
सवाल : मांग के अनुसार कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कोल इंडिया क्या कर सकती है?
जवाब : इस दिशा में काम 2016 से चल रहा है। उस समय आयातित कोयले में मिश्रण के लिए कोयला उपलब्ध कराने समेत निर्यात पर भी गौर किया गया। दुनिया के दूसरे देशों में खदानें लेने को लेकर कदम उठाए गए हैं। ये सब चीजें हो रही हैं। कोल इंडिया ने अपने बुनियादी ढांचे को काफी मजबूत किया है और स्थिति पहले से काफी बेहतर है।