कांग्रेस अब ‘भाई-बहन की पार्टी’ बनकर रह गई है: नड्डा

नड्डा ने कहा कि जो परिवारिक पार्टियां हैं, उनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता पाना होता है


नई दिल्ली/दक्षिण भारत। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गुरुवार को लोकतांत्रिक शासन के लिए वंशवादी राजनीतिक दलों के खतरे पर आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस अब ‘भाई-बहन की पार्टी’ बनकर रह गई है।

नड्डा ने कहा कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल महत्वपूर्ण उपकरण है। अगर वह स्वस्थ हो तो प्रजातंत्र स्वस्थ है। अगर वो अस्वस्थ है तो प्रजातंत्र अस्वस्थ है। इससे धीरे-धीरे प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर आघात पहुंचने लगता है।

नड्डा ने कहा कि पार्टी का स्वास्थ्य कैसा है, उसके सिस्टम कैसे हैं, यह सब बहुत महत्वपूर्ण है। इस महत्व को समझते हुए हमें ये ध्यान रखना होगा कि हमारे लोकतांत्रिक मूल्य क्या हैं, नेताओं के बीच संबंध क्या हैं, संगठन की विचार प्रक्रिया क्या है।

नड्डा ने कहा कि जो परिवारिक पार्टियां हैं, उनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता पाना होता है। इनकी कोई विचारधारा नहीं है। इनके कार्यक्रम भी लक्ष्यविहीन होते हैं।

नड्डा ने कहा कि उड़ीसा में बीजू जनता दल, आंध्रप्रदेश में वाईएसआरसीपी, तेलंगाना में टीआरएस, तमिलनाडु में करुणानिधि परिवार, महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी, ये सब परिवार की पार्टियां हैं। कांग्रेस भी अब न तो राष्ट्रीय रह गई है, न भारतीय और न ही प्रजातांत्रिक रह गई है। यह भी भाई-बहन की पार्टी बनकर रह गई है।

नड्डा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, हरियाणा में आईएनएलडी, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बिहार में राजद, पश्चिम बंगाल में दीदी-भतीजे की पार्टी है, झारखंड में बाबूजी के बुजुर्ग होने के बाद बेटे ने पार्टी संभाल ली।

नड्डा ने कहा कि रीजनल पार्टियों को किसी भी तरह से सत्ता में आना होता है, इसलिए ये ध्रुवीकरण करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। फिर ध्रुवीकरण चाहे जाति के आधार पर करें, या धर्म के। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को ताक पर रख दिया जाता है और सत्ता को पाने के लिए ध्रुवीकरण किया जाता है।

नड्डा ने कहा कि क्षेत्रीय पार्टियों में धीरे-धीरे कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है। अब उन क्षेत्रीय पार्टियों में विचारधारा किनारे हो गई और परिवार सामने आ गए। इस तरह से क्षेत्रीय पार्टियां, परिवारवादी पार्टियों में बदल गई हैं।

About The Author: Dakshin Bharat