लगातार खिसकते जनाधार और पार्टी में आंतरिक कलह के बीच राहुल गांधी कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर निकल पड़े हैं। इस यात्रा के समय को लेकर सवाल जरूर उठाए जा सकते हैं, चूंकि पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव होना है। इस संबंध में भी कयासों का बाजार गरम है कि राहुल ही दोबारा अध्यक्ष बनेंगे या गांधी परिवार के विश्वस्त व्यक्ति को पार्टी की बागडोर सौंपी जाएगी। वैसे यह पहला मौका नहीं है, जब कोई नेता इतनी लंबी यात्रा पर निकले हैं। महात्मा गांधी, चंद्रशेखर की यात्राएं प्रसिद्ध रही हैं। लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली थी।
इसमें कोई संदेह नहीं कि ये यात्राएं जनता के बीच चर्चा पाती हैं, मीडिया का ध्यान आकर्षित करती हैं। हालांकि यह कहना जल्दबाजी होगी कि यात्राएं जनाधार बढ़ाने में कितनी कारगर साबित होंगी। अब राहुल के सामने चुनौती होगी कि वे जनता तक प्रभावी ढंग से अपनी बात पहुंचाएं। उन्हें अपनी छवि जमीन से जुड़े नेता की बनानी होगी, जिसके लिए एकमात्र उपाय जनता से जुड़ाव है। उन्हें धरातल पर मौजूद मुद्दों को समझना होगा। इस दौरान जनता उनसे तीखे सवाल कर सकती है, जिसके लिए उनकी समझ होनी जरूरी है।
राहुल के बारे में आम धारणा है कि वे शानो-शौकत के माहौल में पले-बढ़े हैं, जिन्हें मालूम नहीं कि आम जनता किन तकलीफों का सामना कर रही है। जबकि मोदी आम जनता में से एक हैं, जो न केवल उन समस्याओं से परिचित हैं, बल्कि उन्हें महसूस किया है, जिया है। मोदी ने आरएसएस और भाजपा में संगठनकर्ता के तौर पर विभिन्न राज्यों में काम किया, स्थानीय लोगों के बीच रहे हैं। इसलिए वे जहां कहीं जाते हैं, उनसे बेहतर ढंग से संवाद स्थापित कर लेते हैं।
राहुल को आम जनता से घुलना-मिलना होगा, उनसे संवाद करना होगा, असल मुद्दों को उठाना होगा। हालांकि इन सबके बावजूद यह ख्वाब नहीं पालना चाहिए कि एक यात्रा से उन्हें बहुत बड़ी कामयाबी मिल जाएगी। राजनीति धैर्यवान लोगों के लिए है। कांग्रेस को धैर्य रखना होगा, लेकिन उसके साथ रणनीति में परिवर्तन करना होगा।
उसे इस बात पर मनन करना होगा कि कभी देश पर एकछत्र राज करने के बावजूद आज उसका जनाधार क्यों सिकुड़ रहा है, बड़े-बड़े नाम जिन्होंने अपने जीवन के कई वर्ष इस पार्टी को दिए, वे छोड़कर क्यों जा रहे हैं ...? कई सवाल है, जिनके जवाब एसी कक्ष में बैठकर गूगल पर ढूंढ़ने से नहीं मिलेंगे। इनके जवाब दूर-दराज के उस किसान की झोपड़ी में हैं जो आजादी के इतने वर्षों बाद भी ग़रीब है, उस नौजवान की आंखों में हैं जिसने कई रातें जागकर पढ़ाई की, लेकिन आज वह बेरोजगार है, उस बुजुर्ग के थरथराते हाथों में हैं जिसे अस्पताल में न तो अच्छा इलाज मिल रहा है और न समय पर दवाई।
देश में इतने मुद्दे हैं, जिन्हें प्रभावी ढंग से उठाने के लिए मजबूत विपक्ष होना चाहिए। निस्संदेह कांग्रेस इन्हें उठाने में सफल नहीं हुई है। जब उसके नेता जनता के पास जाते हैं तो वह उनसे ही इनके जवाब मांग लेती है, क्योंकि देश पर सबसे ज्यादा शासन तो इसी पार्टी ने किया है। राहुल इस पर क्या कहेंगे, यह उन्हें तय करना होगा। यह यात्रा जम्मू-कश्मीर में संपन्न होने तक दर्जनभर राज्यों से होकर निकलेगी। जहां यात्रा नहीं पहुंचेगी, वहां सहायक यात्रा निकालकर लोगों को जोड़ने पर काम होगा।
यात्रा इस दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगले साल कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। फिर लोकसभा चुनावों में भी ज्यादा समय नहीं बचेगा। कुल मिलाकर कांग्रेस की यह यात्रा उसके लिए 2024 के महारण की तैयारी है, जिसमें उसे पूरी ताकत झोंकनी होगी। वह इसमें कितनी कामयाब होगी, यह तो समय ही बताएगा।