नई दिल्ली/दक्षिण भारत/भाषा। प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर लंबे समय से हिंसक कृत्यों में शामिल होने, संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को “उकसाने” और आईएसआईएस सहित वैश्विक आतंकवादी संगठनों के साथ “संबंध” होने का आरोप लगता रहा है।
देश के सात राज्यों में की गई छापेमारी में मंगलवार को कथित तौर पर पीएफआई से जुड़े 150 से अधिक लोगों को हिरासत में लिए जाने के बाद यह प्रतिबंध लगा है। सोलह साल पुराने इस समूह के खिलाफ पांच दिन पहले ऐसी ही कार्रवाई की गई थी जिस दौरान उसके 100 से ज्यादा कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया था और दर्जनों संपत्तियों को जब्त किया गया था।
इस समूह की स्थापना 19 दिसंबर 2006 को ‘कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी’ और ‘नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट’ (एनडीएफ) के विलय से हुई थी।
एनडीएफ की स्थापना अयोध्या में विवादास्पद ढांचा विध्वंस और उसके बाद 1993 में हुए दंगों के बाद हुई थी। अधिकारियों ने कहा कि पीएफआई सीएए के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में हिंसक विरोध प्रदर्शन, जबरन धर्म परिवर्तन, मुस्लिम युवाओं के कट्टरपंथ, धनशोधन और प्रतिबंधित समूहों के साथ संबंध बनाए रखने में कथित भूमिका के लिए सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर है।
इस पर अन्य धर्मों को मानने वाले संगठनों से जुड़े लोगों की हत्या करने, प्रमुख लोगों और स्थानों को निशाना बनाने के लिए विस्फोटक इकट्ठा करने, इस्लामिक स्टेट का समर्थन करने और लोगों के बीच आतंक फैलाने के लिए सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का भी आरोप लगाया गया है।
अधिकारियों के अनुसार, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने पीएफआई के खिलाफ पहले की जांच के तहत 45 मामलों में दोषसिद्धि साबित की है और इन मामलों में 355 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया है।
पिछले साल, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष कहा था कि केंद्र सरकार पीएफआई को प्रतिबंधित करने की प्रक्रिया में हैं, जिसे झारखंड समेत कई राज्यों में पहले ही अवैध घोषित किया जा चुका है।
मेहता ने यह भी दावा किया कि पीएफआई के कई पदाधिकारी प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से जुड़े पाए गए।
जनवरी 2018 में तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि उनका मंत्रालय कड़े गैर-कानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम के तहत पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है।
दिसंबर 2019 में सीएए के विरोध और फिर हुई हिंसा के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने भी केंद्र से पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की। पीएफआई पर पिछली रामनवमी के दौरान गोवा, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में हिंसा में शामिल होने का भी आरोप लगाया गया था।
कानून प्रवर्तन एजेंसियों के अनुसार, केरल में पीएफआई के 50,000 से अधिक सदस्य और उससे सहानुभूति रखने वाले कई लोग हैं।
एजेंसी द्वारा पीएफआई पर तैयार किए गए एक दस्तावेज के मुताबिक, पीएफआई के सदस्यों को मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के खिलाफ मामूली मामलों में भी दखल देने और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये प्रेरित किया जाता है। उन्हें इस्लामी मूल्यों के संरक्षक के रूप में कार्य करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है, इस प्रकार उन्हें प्रभावी रूप से ‘नैतिकता के ठेकेदार’ में परिवर्तित किया जाता है।
इसमें कहा गया, इसके सदस्यों को मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिया जाता है और अपने गढ़ों में लाठी, चाकू या तलवार का उपयोग करके मुकाबला करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
पीएफआई पर अपने हमदर्दों से धन प्राप्त करने का भी आरोप है, जिनमें ज्यादातर खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय हैं। केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, असम और मणिपुर सहित दो दर्जन से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसकी शाखाएं हैं।
खुफिया एजेंसियों का दावा है कि पीएफआई हिंसा की कई गतिविधियों में भी शामिल रहा है और उनमें सबसे सनसनीखेज एक प्रश्न पत्र में पैगंबर मोहम्मद का कथित रूप से अपमान करने के लिए प्रोफेसर टी जे जोसेफ का हाथ काटना भी शामिल था।
पीएफआई को पहली बार 2015 में दोषी ठहराया गया था जब एक विशेष अदालत ने इस मामले में उसके 13 सदस्यों को दोषी पाया था। अदालत ने सबूतों के अभाव में 18 अन्य को बरी कर दिया। इस मामले की जांच शुरुआत में केरल पुलिस ने की थी लेकिन बाद में संप्रग सरकार ने इसे एनआईए को स्थानांतरित कर दिया था।
केरल सरकार ने 2012 में केरल उच्च न्यायालय में दिए एक हलफनामे में कहा था कि पीएफआई वास्तव में सिमी का ही एक बदला हुआ स्वरूप है और कई हत्याओं, अधिकतर माकपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की, में उसकी सक्रिय भूमिका रही है।
एनआईए की एक अन्य अदालत ने 2016 में भादंवि की विभिन्न धाराओं, शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध में पीएफआई के 21 सदस्यों को कैद की सजा सुनाई थी।
सीएए विरोधी प्रदर्शन, दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों, हाथरस गैंगरेप और एक दलित महिला की मौत में कथित साजिश और कुछ अन्य मामलों को हवा देने के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पीएफआई के “वित्तीय संपर्कों” की भी जांच कर रहा है।
ईडी ने अब तक लखनऊ में एक पीएमएलए अदालत में पीएफआई और उसके पदाधिकारियों के खिलाफ दो आरोप-पत्र दायर किए हैं।
आयकर विभाग ने मार्च 2021 में पीएफआई को कर छूट लाभ को इस आरोप में रद्द कर दिया कि उसकी गतिविधियां “वास्तविक नहीं” थीं, जैसा कि कानूनी रूप से अधिसूचित धर्मार्थ संगठन द्वारा होनी चाहिए।
ईडी जहां धनशोधन के आरोपों को लेकर पीएफआई की जांच कर रहा है वहीं, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और असम में पुलिस ने इस पर भादंवि की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप किया है जिसमें राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना और आपराधिक साजिश शामिल है।
केंद्रीय व राज्य सरकारों की एजेंसियों ने पीएफआई पर “सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ाने” का आरोप लगाया है।
पीएफआई पर हिंसक और आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने के लिए प्रशिक्षण के वास्ते एक शिविर आयोजित करने का भी आरोप है।