पर्सनल लॉ से ऊपर हैं पॉक्सो और आईपीसी: कर्नाटक उच्च न्यायालय

उसने दो अलग-अलग मामलों में टिप्पणी की


बेंगलूरु/दक्षिण भारत। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि पॉक्सो और आईपीसी पर्सनल लॉ से ऊपर हैं। उसने दो अलग-अलग मामलों में टिप्पणी की कि विवाह की आयु के मामले में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) मुस्लिम पर्सनल लॉ से ऊपर हैं।

इसके साथ ही उसने पहले मामले में दावे को खारिज कर दिया कि ‘मुस्लिम कानून के तहत, विवाह के लिए युवावस्था को ध्यान में रखा जाता है और 15 साल की आयु में यौवन शुरू हो जाता है तथा इसलिए बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम की धारा नौ और 10 के तहत’ कोई अपराध नहीं बनता।

न्यायमूर्ति राजेंद्र बदामीकर ने फैसले में कहा, ‘पॉक्सो अधिनियम विशेष कानून है और यह पर्सनल लॉ से ऊपर है। पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन गतिविधि के लिए स्वीकार्य आयु 18 वर्ष है।’

बता दें कि न्यायालय ने 27 वर्षीय मुस्लिम शख्स की याचिका पर फैसला सुनाया है। बताया गया कि युवक की 'पत्नी' की उम्र 17 साल है और वह गर्भवती है। जब वह जांच के लिए अस्पताल गई तो वहां चिकित्सा अधिकारी ने पुलिस को इसकी सूचना दे दी। इसके बाद उक्त शख्स के खिलाफ बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम और पॉक्सो के तहत मामला दर्ज हुआ। 

हालांकि न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका स्वीकार कर ली।

इसी तरह न्यायमूर्ति बदामीकर ने एक और मामले में 19 वर्षीय आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी। उस पर पॉक्सो अधिनियम के अलावा आईपीसी के तहत भी आरोप हैं।

मामले के अनुसार, आरोपी इस साल 6 अप्रैल को 16 वर्षीया किशोरी को कथित रूप से बहला-फुसलाकर अपने साथ मैसूरु ले गया। वहां उसने दो बार दुष्कर्म किया। मामले में चिक्कमगलूरु की निचली अदालत में आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है।

उसके वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत याचिका पेश की। साथ ही यह तर्क दिया कि ‘दोनों पक्ष मुसलमान हैं, इसलिए यौवन शुरू होने की उम्र को ध्यान में रखा जाना चाहिए।’

हालांकि यहां आरोपी को झटका लगा। न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम और आईपीसी, पर्सनल लॉ से ऊपर हैं। उसने कहा कि याचिकाकर्ता पर्सनल लॉ की आड़ में नियमित जमानत का अनुरोध नहीं कर सकता। न्यायालय की ये टिप्पणियां सोशल मीडिया पर चर्चा में हैं।
 

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