गंभीर हृदय रोग से पीड़ित बच्चे की डॉक्टरों ने बचाई जान

गंभीर हृदय रोग से पीड़ित बच्चे की डॉक्टरों ने बचाई जान

चेन्नई। शहर के एमआईओटी अस्पताल ने हृदय रोग से पीि़डत एक १५ वर्ष के बच्चे की जान बचाने में सफलता पाई है। इस बच्चे में जटिल एरोटिक डिसेक्शन नामक बीमारी थी। इस प्रकार की बीमारी का देश में पहली बार सफलतापूर्वक इलाज किया गया है। शहर के प्रतिष्ठित एमआईओटी अस्पताल ने पहली बार इतनी छोटी उम्र के किसी मरीज पर इस प्रकार का ऑपरेशन किया है। सोमवार को एमआईओटी अस्पताल के डॉक्टरों ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान इस बात की जानकारी दी। अस्पताल के कार्डियोथोरेसिक सर्जरी विभाग के निदेशक डॉ विजित के चेरियन ने इस बात की जानकारी दी। डॉक्टरों के अनुसार १५ वर्ष के भरत को इसी वर्ष मई महीने में केरल के विजाग से चेन्नई लाया गया था।जब इस ल़डके को एमआईओटी अस्पताल में भर्ती करवाया गया तो उसमें एरोटिक डिसेक्शन नामक गंभीर बीमारी पाई गई। उन्होंने बताया कि एरोटिक हृदय में रक्त पहुंचाने वाली एक प्रमुख धमनी होती है और डिसेक्शन एक ऐसी स्थिति हैं जिसमें एरोटिक धमनी से बहने वाला रक्त इससे रिसकर हृदय की अंदरुनी धमनियों में फैलने लगता है। इसके कारण हृदय में धीरे-धीरे रक्त का थक्का जमने का डर होता है जिससे मरीज की मौत भी हो सकती है। इस रोग का प्रमुख लक्षण यह होता है कि रोगी समय-समय पर बेहोश होने लगता है या उसकी जांघों में दर्द होने लगता है।चिकित्सकों के अनुसार हृदय रोग होने के बावजूद इस प्रकार की बीमारी में मरीज के सीने में दर्द या सांस लेने की तकलीफ नहीं होती जिसके कारण अक्सर डॉक्टरों को ऐसा लगता है कि मरीज किसी नस संबंधी रोग से पीि़डत हैं क्योंकि इस प्रकार के लक्षण अक्सर नस रोग से पीि़डत रोगियों में ही देखे जाते हैं। सौ में से कोई एक मामला ही ऐसे होता है जिसमंें इस प्रकार के लक्षणों वाले कोई रोगी नस रोग से संबंधित किसी रोग के बदले ऐरोटिक डिसेक्शन नामक बीमारी से पीि़डत हांे। हालांकि इस रोग में मरीज के पेट के निचले हिस्से में काफी दर्द होता है जिससे इसका पता लगाया जा सकता है कि मरीज नस संबंधी किसी रोग से पीि़डत नहीं है या नहीं है।डॉक्टरों का कहना है कि इतनी कम उम्र में भरत को यह रोग होने का कारण पता नहीं चल सका है क्योंकि इस प्रकार की स्थिति पैदा होने पर मरीजों में हृदय संबंधी अन्य लक्षण भी दिखाई देते हैं। एमआईओटी अस्पताल के डॉक्टरों ने भरत के सीने में सही ढंग से काम करने वाले एरोटा को हटाकर एक स्टेंट लगाया गया है ताकि उससे रक्त के रिसाव को कम किया जा सके। डॉ चेरियन ने कहा कि इस प्रकार के रोग में अक्सा सर्जिकल ढंग से क्षतिग्रस्त एरोटा की मरम्मत करना ही सबसे अच्छा उपाय होता है। हालांकि इस मामले में ऐसा करना मुमकिन नहीं था क्योंकि एरोटा की मरम्मत करने की स्थिति में मरीज की जान जाने का खतरा अधिक होता है।इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए एमआईओटी अस्पताल के डॉक्टरों की एक टीम ने भरत नामक इस ल़डके के हृदय के एरोटा को हटाने और उसके स्थान पर एक स्टेंट लगाने का कार्य शुरु किया। २३ मई को यह सर्जरी की गई। एमआईओटी अस्पताल के इंटरवेंशनल रेडियोलोजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ के मुरली के नेतृत्व में डॉक्टरों के एक टीम ने लगभग ढाई घंटे तक ऑपरेशन किया और भरत की समस्या दूर कर दिया। डॅा मुरली ने इस अवसर पर पत्रकारों से बातचीत के दौरान बताया कि अब भरत लगभग एक किलोमीटर तक पैदल चल सकता है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि भरत देश में इस प्रकार की बीमारी से उबरने वाला सबसे कम उम्र का मरीज है।

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