चेन्नई/दक्षिण भारत। मद्रास उच्च न्यायालय ने एक ईसाई महिला का हिन्दू धर्म में परिवर्तन करने के लिए विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) द्वारा आयोजित ‘शुद्धि समारोह’ को सही ठहराया है। साथ ही न्यायालय ने अनुसूचित जाति के अंतर्गत जूनियर स्नातक शिक्षक के पद पर महिला की नियुक्ति को भी वैध माना है।
ज्ञातव्य है कि महिला की नियुक्ति यह कहकर रोक दी गई थी कि धर्म परिवर्तन कराने के बाद कोई तब तक अनुसूचित जाति नहीं माना जाता जब तक समाज उसे उस रूप में स्वीकार न कर ले। इसलिए, उन्हें इसके तहत फायदा नहीं दिया जा सकता। इस मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश आर सुरेश कुमार ने कहा विश्व हिंदू परिषद हिन्दू धर्म के सबसे प्रतिष्ठित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त संगठनों में से है जो लगातार हिन्दू धर्म की महानता और समृद्धि और हिंदू रीति-रिवाजों का देश में प्रसार कर रहा है, उसने 1 नवंबर, 1998 को ‘शुद्धि सतंगु’ (धार्मिक पूजा) किया था।
उसके बाद याचिकाकर्ता डेजी फ्लोरा से ईसाई धर्म से बदलकर हिन्दू धर्म की ए मेगलई हो गईं। पूजा होने के बाद यह घोषणा की गई कि उनका धर्म ईसाई से बदलकर हिन्दू हो गया है। न्यायाधीश कुमार ने सरकार के उस आदेश का भी जिक्र किया जिसमें धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों को भी अनुसूचित जाति के तौर पर फायदे देने की बात कही गई है।
ज्ञातव्य है कि मेगलई ईसाई परिवार में पैदा हुई थीं और बाद में वनावन (अनुसूचित जाति) से शादी कर ली थी। इसके बाद उन्हें अनुसूचित जाति होने का प्रमाणपत्र मिल गया था। जब उन्होंने जूनियर स्नातक शिक्षक के लिए आवेदन किया तो उनके धर्म परिवर्तन के बाद अनुसूचित जाति बनने का हवाला देते हुए फायदा नहीं दिया गया।
हालांकि उच्च न्यायालय ने वर्ष 2005 में उनकी नियुक्ति का आदेश दे दिया था लेकिन विभाग द्वारा इसके बाद भी इस महिला को नियुक्ति पत्र नहीं सौंपा गया था। न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान राज्य अतिरिक्त महाधिवक्ता नर्मदा संपथ ने दलील दी कि धर्म परिवर्तन कराने से कोई तब तक अनुसूचित जाति नहीं हो जाता जब तक समाज उसे स्वीकार न ले।
इस पर न्यायालय ने कहा कि आसपास के लोगों की गवाही से यह साबित होता है कि महिला को समाज ने स्वीकार कर लिया है। वह हिन्दू रीति रिवाजों का पालन करती रही हैं। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के हिंदू आदि द्रविडर समुदाय का हिस्सा होने के दावे पर शक नहीं किया जा सकता। महिला अपना प्रशिक्षण पूरा कर चुकी हैं और धर्म के आधार पर उनकी नियुक्ति नहीं रोकी जानी चाहिए। न्यायालय ने शिक्षा विभाग को तत्काल महिला को जूनियर स्नातक शिक्षक के रूप में नियुक्त करने का आदेश दिया।
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