चेन्नई/दक्षिण भारत। यहां किलपॉक में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्यश्री तीर्थ भद्रसूरीश्वरजी ने कहा कि आगम में सब कुछ है लेकिन प्राकृत का अभ्यास नहीं होने के कारण हम आगम, ग्रंथ नहीं पढ सकते हैं। महापुरुषों ने चौबीस तीर्थंकर परमात्मा के स्तवन के माध्यम को मोक्ष की प्राप्ति का साधन बता दिया। मोक्ष की साधना की प्रथम भूमिका परमात्मा के प्रति प्रीति बताई है। परमात्मा के साथ सम्बंध जोड़ने से बाद में वे कभी आपका साथ नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने कहा संसार में जहां तक स्वार्थ है वहां तक साथ है। सम्बंध में जहां अहम और स्वार्थ टकराया, रिलेशनशिप टूट जाती है। आनन्दघन महाराज कहते हैं ऋषभ जिनेश्वर ही मेरे प्रीतम है। जीवन में कितनी भी आपत्ति, राग, द्वेष, मोह का तूफान आ जाए ये प्रीतम आपको कभी भूलेंगे नहीं। आप उन्हें भूल जाओगे लेकिन वे कभी नहीं। परमात्मा के स्तवनों में उनके प्रति प्रीति की ही बात की गई है।
उन्होंने कहा परमात्मा की भक्ति, पूजा से दो प्रकार के फल मिलते हैं अनन्तर यानी तात्कालिक और परम्पर यानी परम्परा से मिलने वाला फल। भोजन करने से भूख दूर हो जाती है यह अनन्तर फल है। इससे शरीर में बल की वृद्धि होती है वह परम्पर फल है। इसी तरह परमात्मा की भक्ति से चित्त की जो प्रसन्नता मिलती है वह अनन्तर फल है। मोक्ष मिलना परम्पर फल है। यदि चित्त में प्रसन्नता मिलती है तो समझना आपकी भक्ति सही है अन्यथा भक्ति में कुछ कमी है। हकीकत में हमें परमात्मा को प्रीतम बनाना है क्योंकि परमात्मा वीतरागी है। उनको हमसे कोई अपेक्षा नहीं है। उन्होंने कहा जहां स्वार्थ नहीं है उन्हें ही मित्र बनाना चाहिए। परमात्मा से प्रीति बनाएंगे तो संसार से प्रीति स्वतः टूट जाएगी। जम्बू स्वामी के जीवन चारित्र में उन्होंने बताया कि जम्बू कुमार के विवाह में प्रभव चोर को जब यह पता चला कि 99 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं जम्बु कुमार के घर आई है, वह अपने साथियों के साथ धन लूटने के इरादे से जम्बू कुमार के घर पहुंच गया। उसने अपनी विद्या से सबको नींद में सुला दिया लेकिन जम्बू कुमार के पास स्तम्भिनि व मोक्षिनि विद्या होने के कारण उन पर विद्या का कोई असर नहीं हुआ। प्रभव चोर ने सोचा जम्बू कुमार कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है और उसने विद्या के आदान प्रदान की पेशकश की। आचार्य ने कहा जिसका मनोबल दृढ है या जिनके पुण्य प्रबल है, कोई विद्या, शक्ति उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। जम्बू कुमार ने कह दिया मुझे कोई विद्या की आवश्यकता नहीं है, मैं तो संसार का ही त्याग करने वाला हूं। यह संसार आत्मा के लिए एक बंधन है। यह सुनकर प्रभव को घोर आश्चर्य हुआ।
स्वार्थ से ही संबंध टिके हैं : आचार्य
स्वार्थ से ही संबंध टिके हैं : आचार्य