कांचीपुरम (तमिलनाडु)/भाषा। इस सप्ताह होने वाली भारत-चीन शिखरवार्ता से पहले मामल्लापुरम के अति प्राचीन स्मारकों को सजाया-संवारा जा रहा है। ये स्मारक पल्लवकालीन शिल्पकारों की बेजोड़ स्थापत्य-कला का नमूना दर्शाते हैं जिन्होंने घड़ी के अविष्कार से अरसा पहले ही दिन के समय आदि विचारों के साथ पत्थरों पर अपनी सृजन प्रतिभा को उकेरा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग 1,000 साल से ज्यादा पुराने इन स्मारकों का दौरा कर सकते हैं। इन स्मारकों की भव्य मूर्तियों को बारीकी से देखा जाए तो इनके सृजनकर्ताओं के हुनर को समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी के आमंत्रण पर चीन के राष्ट्रपति चिनफिंग अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए 11 -12 अक्टूबर, 2019 को चेन्नई में होंगे। शिखर वार्ता चेन्नई के समीप प्राचीन तटीय शहर मामल्लापुरम में होगी।
मामल्लापुरम के स्मारकों पर जानेमाने पुरातत्वविद टी सत्यमूर्ति ने कहा, पल्लवकालीन इन शिल्पकारों ने अन्यत्र कहीं भी काम कर रहे कारीगरों को उत्कृष्टता के मामले में बहुत पीछे छोड़ दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अधीक्षक पुरातत्वविद और जानेमाने विद्वान सत्यमूर्ति ने इन स्मारकों के पीछे पुराणों में अर्जुन द्वारा भगवान शिव से ‘पाशुपत अस्त्र’ प्राप्त करने के लिए की गई तपस्या का जिक्र किया।
सत्यमूर्ति ने एक साक्षात्कार में कहा, यहां एक फ्रेम में 64 गण, एक मंदिर, 13 मनुष्य, 10 हाथी, 16 शेर, नौ हिरन, दो भेड़, दो कछुए, एक खरगोश, एक जंगली सूअर, एक बिल्ली, 13 चूहे, सात पक्षी, चार बंदर, दो जीभ वाली एक छिपकली और आठ पेड़ हैं।
इसमें भगवान शिव के खड़े हुए स्वरूप की प्रतिमा है जिनकी चार भुजाएं हैं और उनका निचला हाथ ‘वरद मुद्रा’ दर्शाता है जिसमें वह अर्जुन को वरदान दे रहे हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जटा-मुकुट धारी भगवान शिव अपने गण के साथ अर्जुन को वरदान देने आते हैं और इस पूरे चित्रण को पत्थरों पर बड़ी खूबसूरती से तराशा गया है। उन्होंने कहा, इन प्रतिमाओं के लिए पत्थर के चयन समेत सभी कुछ मुझे अद्वितीय लगता है।
यहां देवताओं और देवियों तथा अन्य प्राकृतिक रमणीक दृश्यों को दो बड़े आकार के पत्थरों पर दर्शाया गया है जिनके बीच बारीक-सा विभाजन है। यह विभाजन नदी का स्वरूप दर्शाता है। इस अंतराल में ही नाग और नागिनों की आकृतियां उकेरी गई हैं।
ये सारे दृश्य नदी किनारे भगवान शिव द्वारा अर्जुन को वरदान देने के उस पौराणिक महात्म्य वाले कथानक को जीवंत करते से दिखते हैं। स्मारक के समीप भगवान विष्णु का मंदिर है। सत्यमूर्ति ने कहा कि इन क्षेत्रों में निर्माण के लिए दिशानिर्देश देने का श्रेय कांची के दिवंगत महास्वामी, चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती (1894 से 1994) को जाता है।