बेंगलूरु/दक्षिण भारत। भारतीय वायुसेना की शान ऐतिहासिक ‘डकोटा’ विमान अपना दमखम दिखाने के लिए तैयार है। आज़ादी के बाद साल 1947 में कश्मीर हथियाने के लिए जब पाकिस्तान ने हमला बोला तो हमारे सुरक्षाबलों के लिए डकोटा एक ऐसा दिव्यास्त्र बनकर आया जिसने दुश्मन के इरादों को विफल करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। समय के साथ इस विमान की तकनीक पुरानी होती गई, लेकिन इससे जुड़े इतिहास को देखते हुए इस विमान का पुनर्निर्माण किया गया।
20 फरवरी को शुरू होने वाले एयरो शो में देशवासी एक बार फिर डकोटा के शौर्य और वीरतापूर्ण इतिहास से रूबरू होंगे। अब यह नए स्वरूप और नए नाम ‘परशुराम’ के तौर पर यहां शान से खड़ा होगा और उड़ान भरेगा। शुक्रवार को ही यह एयरफोर्स स्टेशन ओझर में उतरा था। डकोटा के लिए जहां युवा पीढ़ी में उत्सुकता है, वहीं इसके किस्सों से परिचित लोगों में इसे करीब से देखने की ख्वाहिश है। कई सैन्य अभियानों में डकोटा की उड़ान ने लड़ाई का नक्शा बदल दिया।
12वीं स्क्वाड्रॉन का हिस्सा रहे इस विमान ने जब 27 अक्टूबर, 1947 को श्रीनगर के सफदरजंग एयरफील्ड के आकाश पर उड़ान भरी तो उसने हालात का पासा ही पलट दिया। इसी विमान ने सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन को श्रीनगर पहुंचाया था, जिन्होंने कश्मीर घाटी को पाक के चंगुल में जाने से बचाया। तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर इसे बमवर्षक के तौर पर इस्तेमाल करने सहित कई परिवर्तन किए गए। इसमें एयर कॉमोडोर मेहर सिंह का नाम उल्लेखनीय है।
लेह अभियान में भी इसका इस्तेमाल किया गया। अप्रेल 1948 में वहां बनी हवाईपट्टी डकोटा जैसे विमान के लिए ज्यादा सुरक्षित नहीं थी। उस समय सेना के पास बर्फरोधी प्रणाली और नक्शे तक मौजूद नहीं थे, लेकिन एयर कॉमोडोर ने तमाम चुनौतियों के बावजूद 30 मई, 1948 को विमान को वहां उतारने में कामयाबी हासिल की। कुछ ही दूरी पर पाकिस्तान की फौज थी। इसी प्रकार 1971 के युद्ध में भी डकोटा ने देश की धाक बढ़ाई और ढाका में पाकिस्तानी फौज घुटने टेकने को मजबूर हुई।
डकोटा विमान पिछले साल राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर द्वारा नए कलेवर के साथ भारतीय वायुसेना को तोहफे में दिया गया। इसके नए नामकरण ‘परशुराम’ के साथ ही इसकी यादों को संजोया गया है। इसका नंबर वीपी905 ही रहेगा। उन्होंने सेना का आभार प्रकट करते हुए कहा कि डकोटा मेरे बचपन की यादों का हिस्सा है। मेरे पिताजी ने इसके संग अनेक उड़ानों के अनुभव हासिल किए। यह विमान वायुसेना को सौंपते हुए उनका ख्वाब पूरा किया है। इसे मौजूदा स्थिति में लाने के लिए हमने सात साल काम किया। इसके बाद इंग्लैंड से भारत आने में इसे नौ दिन लगे। यह हम सबके लिए एक गर्व का क्षण है। राजीव चंद्रशेखर ने ‘परशुराम’ वीपी905 और सभी लोगों का एयरो इंडिया 2019 में स्वागत किया है।
बता दें कि राजीव चंद्रशेखर के पिता एयर कॉमोडोर एमके चंद्रशेखर डकोटा के पायलट थे। इस विमान का इंग्लैंड में पुनर्निर्माण हुआ। पिछले साल 13 फरवरी को वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने एक समारोह में सांसद राजीव चंद्रशेखर द्वारा इस विमान को स्वीकार किया।