आसान नहीं टुमकूरु में देवेगौड़ा की राह

आसान नहीं टुमकूरु में देवेगौड़ा की राह

टुमकूरु में एक चुनावी बैठक के दौरान एचडी देवेगौड़ा, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दरामैया एवं जीटी देवेगौड़ा।

टुमकूरु/दक्षिण भारत। पूर्व प्रधान मंत्री और जनता दल (एस) सुप्रीमो एचडी देवेगौड़ा के लिए टुमकूरु से चुनावी जीत दर्ज करना एक क़डी चुनौती होगीं वह अपने पोते प्रज्ज्वल रेवन्ना के लिए अपनी परंपरागत हासन लोकसभा सीट छो़डने के बाद टुमकूरु से अपनी राजनीतिक किस्मत आजमा रहे हैं। अतीत में यह सीट जीतने में जनता दल (एस) कभी कामयाब नहीं रहा।

हालांकि कांग्रेस ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन है जो राज्य सरकार में गठबंधन सहयोगी है लेकिन देवेगौड़ा के सामने भाजपा के उम्मीदवार जीएस बसवराजू से बेहद ठोस चुनौती दे रहे हैं। बसवराजू विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस और जनता दल (एस) की असहमतियों का पूरा फायदा उठाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

केपीसीसी अध्यक्ष दिनेश गुंडूराव, सीएलपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दरामैया और अन्य कांग्रेस नेताओं ने दावा किया है कि टुमकूरु सीट से कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने के बाद बगावत पर उतारू मुद्दू हनुमेगौड़ा ने देवेगौ़डा के खिलाफ अपने समर्थकों के साथ चुनाव मैदान में उतरने की चेतावनी दी थी लेकिन बाद में चलकर उन्होंने भी देवेगौड़ा के समर्थन में प्रचार करने की सहमति जताई थी।

इसके बावजूद कांग्रेस के कैडर और स्थानीय नेताओं में असंतोष है। देवेगौ़डा कर्नाटक को विपक्षी एकता या गठबंधन के लिए एक मंच बनाकर राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख राजनीतिक भूमिका निभाने का सपना देखते रहे हैं। स्वतंत्र विचारों वाले राजनेता देवेगौड़ा ने अपनी क्षेत्रीय पार्टी जनता दल (एस) को ब़ढत दिलाने के इरादे से भाजपा के खिलाफ कांग्रेस से हाथ मिलाया। वह ८६ वर्ष के हो चुके हैं। उन्होंने घोषणा की है कि यह उनका आखिरी चुनाव है और अगले चुनाव में वह नहीं लड़ेंगे।

उन्होंने अपने दो पोते राजनीति में पेश किए मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल को मंड्या में, अपने बड़े बेटे व लोकनिर्माण मंत्री एचडी रेवन्ना के बेटे प्रज्ज्वल रेवन्ना को हासन से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा। वह हासन सीट से छह बार लोकसभा चुनाव जीते थे और प्रधानमंत्री भी बने थे। बहरहाल, अपने परिवार के सदस्यों को बढ़ावा देने के उनके कदम से वोक्कालिगा बहुल पार्टी में कई लोग काफी नाराज बताए जाते हैं और पुराने मैसूरु क्षेत्र में उनकी पार्टी को विद्रोह के हालात का सामना करना पड़ सकता है।

टुमकूरु में भाजपा के प्रत्याशी जीएस बसवराज ने कांग्रेस के टिकट पर और एक बार भाजपा के टिकट पर यह सीट जीती थी। बसवराज एक लिंगायत हैं और दो प्रमुख समुदायों वोक्कालिगा और लिंगायत के प्रत्याशी यहां अपनाअपना जोर आजमा रहे हैं। देवेगौड़ा आखिरी क्षण तक कांग्रेस के सांसद मुद्दू हनुमेगौड़ा की बगावत से आशंकित रहे, जिसे गठबंधन धर्म के तहत मनाने के लिए कांग्रेस पर बनाया गया उनका दबाव काम तो आ गया लेकिन यहां नतीजे अब भी अस्पष्ट हैं।

एक अन्य कांग्रेस के बागी के एन राजन्ना को भी देवेगौ़डा के पक्ष में चुनाव से टिकट वापस लेने को मनाना प़डा था। इस लोकसभा क्षेत्र में 6 लाख 83 हजार 193 महिलाओं और 7 लाख 5 हजार 580 पुरुषों सहित 13 लाख 88 हजार 773 मतदाता हैं। वर्ष 2014 के आम चुनाव में मोदी की लहर के बावजूद कांग्रेस के उम्मीदवार मुद्दू हनुमेगौड़ा ने भाजपा प्रतिद्वंद्वी जीएस बसवराज को लगभग 75,000 वोटों से पछाड़कर जीत हासिल की थी। उन्हें इस वर्ष कांग्रेस प्रत्याशी नहीं बनाए जाने पर टुमकूरु के मतदाता देवेगौड़ा, कुमारस्वामी और रेवन्ना के खिलाफ अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि इन तीनों ने हेमावती नदी के पानी का प्रयोग करने से टुमकूरु जिले को यह कहते हुए रोक दिया कि बागुर-नवील नहर में इतना पानी नहीं छो़डा गया है कि इस सूखे का सामना करने वाले इलाके के तालाब और यहां की झीलें भर जाएं। वहीं, स्थानीय कांग्रेस नेताओं का एक वर्ग आशंकित है कि देवेगौ़डा को टुमकूरु से चुनाव लड़ने का मौका देना यहां पर जनता दल (एस) का दावा हमेशा के लिए साबित कर देने के जैसा है।

साथ ही यह जनता दल (एस) के हाथों कांग्रेस का एक मजबूत ग़ढ सौंप देने जैसा मामला भी होगा। कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवार इस निर्वाचन क्षेत्र से क्रमश: दस और चार बार चुनाव जीत चुके हैं। यह वर्ष 1952 से 1989 तक कांग्रेस का गढ़ रहा, जब तक कि भगवा पार्टी ने यहां उसे हरा नहीं दिया।

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