बेंगलूरु/दक्षिण भारत। कर्नाटक की कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन सरकार लगातार चुनौतियों से घिरती जा रही है। बागी विधायकों ने सरकार की राह मुश्किल कर दी है, वहीं विपक्ष के नेता बीएस येड्डियुरप्पा भी मोर्चा संभाले हुए हैं। वे विभिन्न मुद्दों से सरकार को घेरते रहते हैं।
मौजूदा सियासी हालात को देखकर सोशल मीडिया पर तो यह भी चर्चा है कि यदि बागी विधायकों के कारण कांग्रेस-जद (एस) सरकार गिरती है तो येड्डियुरप्पा एक बार फिर से राज्य में सत्ता की बागडोर संभालने के लिए आगे आ सकते हैं।
दो निर्दलीय विधायकों ने भाजपा को समर्थन देने की बात कही है। दो और विधायकों ने त्यागपत्र दे दिया है। वे जब विधानसभाध्यक्ष को इस्तीफा देकर लौटे तो कांग्रेसियों ने उन्हें घेर लिया और धक्का-मुक्की की। इससे पहले 12 विधायकों ने शनिवार को अपने इस्तीफे सौंपे थे। यदि उनके इस्तीफे स्वीकार कर लिए जाते हैं तो कर्नाटक की 224 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की संख्या 211 हो जाएगी।
ऐसी स्थिति में सरकार बनाने के लिए एक पार्टी या गठबंधन को 106 सीटों की आवश्यकता होगी। कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन 104 पर आ जाएगा, जबकि जबकि भाजपा को 105 सदस्यों का समर्थन होगा। भाजपा को दो निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन की संभावना है।
उक्त मामले पर टिप्पणी करते हुए भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘इस तरह की कोई रुकावट नहीं है जो उन्हें (येड्डियुरप्पा) मुख्यमंत्री बनने से रोकती है।’ येड्डियुरप्पा के बारे में भाजपा के एक अन्य नेता ने कहा, उनका तत्काल कोई विकल्प नहीं है। वे कर्नाटक में पार्टी का लोकप्रिय चेहरा बने हुए हैं, लगभग हर क्षेत्र में।
हालांकि प्रदेश भाजपा में ऐसे कई चेहरे हैं जो लोगों के बीच लोकप्रिय हैं, लेकिन वे भी येड्डियुरप्पा के प्रभाव को चुनौती देते नजर नहीं आते। भाजपा के एक नेता कहते हैं, ‘येड्डियुरप्पा अभी भी लिंगायत समुदाय और इसके संतों के बीच पसंदीदा नेता हैं।’
बता दें कि लिंगायत कर्नाटक की आबादी का 16 प्रतिशत हैं और समुदाय से बड़ी तादाद में लोग भाजपा से जुड़े रहे हैं। भाजपा को 2013 के विधानसभा चुनाव में मतों का खासा नुकसान उठाना पड़ा था तब येड्डियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पक्ष की ओर से चुनाव लड़ा था।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि येड्डियुरप्पा की राह भी आसान नहीं होगी। वहीं, कर्नाटक में अभी कोई पार्टी चुनाव का सामना नहीं करना चाहती।