निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी आरक्षण पर विचार करे केंद्र: सिद्दरामैया

निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी आरक्षण पर विचार करे केंद्र: सिद्दरामैया

फोटो स्रोतः सिद्दरामैया का ट्विटर अकाउंट

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। कर्नाटक के विधायकों ने गुरुवार को चिंता जताई कि राष्ट्रीयकृत संपत्तियों के विनिवेश और निजीकरण जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं से अंत में आरक्षण का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा जो कि सामाजिक न्याय प्रदान करना है।

विपक्ष के नेता कि 1.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक के कारोबार वाली राष्ट्रीयकृत संपत्ति पीएसयू, सरकारी उद्यम, होल्डिंग, जैसी संस्थाओं का विनिवेश हो रहा है जो सीधे तौर पर आरक्षण के माध्यम से यहां काम कर रहे लोगों को प्रभावित करेगा।

सिद्दरामैया ने आगे कहा कि भारत सरकार को निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करना चाहिए, विशेषकर तब जब सरकारी सुविधाएं और उपक्रम कॉर्पोरेट्स को दिए जा रहे हैं। यदि नहीं, तो यह प्रवृत्ति आरक्षण और उसके साथ सामाजिक न्याय की अवधारणा को मार डालेगी। बजट पर एन महेश की बहस के दौरान सिद्धारमैया का बयान आया।

महेश ने कहा कि आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है, बल्कि प्रतिनिधित्व का विषय है। महेश को चिंता थी कि राष्ट्रीय संपत्ति के निजीकरण से अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए नौकरियों में आरक्षण प्रभावित होगा।

कांग्रेस विधायक एचके पाटिल ने यह भी कहा कि कर्नाटक में 4 लाख से अधिक सरकारी नौकरियां खाली पड़ी हैं और इनमें से लगभग 80% रिक्त नौकरियों को अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को आरक्षण के तहत भरना चाहिए था।

पाटिल ने आगे कहा कि सामाजिक न्याय कहां है जब सरकार दलितों, एसटी और पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को नौकरी देने से इनकार करती है जो इसके पात्र हैं? इसके बजाय, सरकार निजी कंपनियों को काम आउटसोर्स करने का आदेश दे रही है।

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