बेंगलूरु/दक्षिण भारत। बीएस येडियुरप्पा ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनका नाम उन नेताओं में शामिल है जिन्होंने कर्नाटक में भाजपा को मजबूत बनाया और उसे सत्ता तक पहुंचाया। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है। एक गरीब परिवार में जन्मे येडियुरप्पा ने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया था। उन्होंने परिवार की मदद के लिए नींबू भी बेचे थे। इसके अलावा कारखाने में मजदूरी की और चावल मिल में क्लर्क की जिम्मेदारी संभाली।
येडियुरप्पा आठ बार विधायक, एक बार सांसद और विधान परिषद सदस्य रहे हैं। इसें अलावा तीन बार विपक्ष के नेता और चार बार मुख्यमंत्री रहे हैं।
बीएस येडियुरप्पा का जन्म मंड्या जिले में कृष्णाराजपेट तालुक के बूकानाकेरे में रहने वाले किसान सिद्दलिंगप्पा और उनकी पत्नी पुट्टतायम्मा के घर 27 फरवरी, 1943 को दो भाइयों और दो बहनों के परिवार में हुआ। उन्होंने स्नातक डिग्री बेंगलूरु से ली। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आए और केवल 15 वर्ष की आयु में मातृभूमि की सेवा में जुट गए।
साल 1965 में येडियुरप्पा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य के प्रसार के लिए शिवमोग्गा जिले के शिकारीपुरा गए। उन्होंने अपनी सादगी और कार्य के प्रति अदम्य समर्पण के कारण शिकारीपुरा की जनता और लोगों के साथ अच्छा तालमेल विकसित किया।
येडियुरप्पा ने 5 मार्च, 1967 को मैत्रादेवी से शादी की। उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं। उन्होंने 1970-72 के दौरान बतौर संघ कार्यवाह सेवाएं दीं। उन्होंने 1972 में 29 वर्ष की आयु में शिकारीपुरा में जनसंघ के तालुक अध्यक्ष बनकर सार्वजनिक जीवन में पदार्पण किया। उन्होंने 1974 से 1976 तक वीरशैव सहकारी समिति के निदेशक के रूप में कार्य किया और सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा प्रदान की।
येडियुरप्पा 1976 में शिकारीपुरा के नगर पालिका सदस्य चुने गए। वे 1975 में आपातकाल के दौरान शिवमोग्गा और बल्लारी जेलों में 45 दिनों के लिए जेल में रहे। वे 1977 में नगरपालिका प्रमुख बने और लोगों से जुड़े रहने के कारण जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए। उन्हें उसी वर्ष जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया था।
येडियुरप्पा एक जन्मजात नेता हैं। वे किसानों और गरीबों के हितों की बहुत फिक्र करते हैं। उन्होंने 1,700 से अधिक बंधुआ मजदूरों का पता लगाकर उनका नेतृत्व करते हुए शिवमोग्गा उपायुक्त कार्यालय में रिहाई और पुनर्वास की मांग की; उनके प्रयासों के कारण सभी मजदूरों को मुआवजा मिला और वे आजादी की जिंदगी जी रहे हैं।
येडियुरप्पा ने भूमिहीन किसानों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए लड़ाई लड़ी और उन्हें अधिकार दिलाए। अगस्त 1987 के दौरान, उन्होंने सूखे का सर्वेक्षण करने के लिए साइकिल पर शिकारीपुरा तालुक की यात्रा की और सूखे के दुष्प्रभाव का पहला अनुभव करने के लिए सभी गांवों का दौरा किया। परिणामस्वरूप, सरकार ने युद्धस्तर पर सूखा राहत कार्य किया।
उन्होंने 1983 का चुनाव जीतकर कर्नाटक विधानसभा में प्रवेश किया। किसानों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए उनके काम के परिणामस्वरूप वे 1983 से 1994 के बीच चार बार क्रमिक रूप से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए।
यह चुनाव उनके सार्वजनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ और उनके राजनीतिक करियर को आकार दिया। उन्हें 1985 में शिवमोग्गा जिले के भाजपा अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया और पार्टी के प्रसार के लिए काम किया।
वे 1985 के चुनाव में दूसरी बार कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए। उन्होंने 1988 से 1991 तक कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष के रूप में सेवाएं दीं। वे 1989 के चुनावों में तीसरी बार कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए।
तब से, वे पार्टी को मजबूत करने के लिए लगातार काम कर रहे और आज एक उत्कृष्ट नेता के रूप में पहचाने जाते हैं। उन्हें चार बार विधानसभा के लिए और दो बार पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में चुना गया है। उन्होंने कई अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाई है। उन्होंने विधानसभा के अंदर और बाहर भी जनहित से जुड़े मुद्दे उठाए और उनके लिए लगातार सक्रिय रहे हैं। बसवणकल्याण से लेकर बनवासी तक उन्होंने ग्रामीण कर्नाटक में भाजपा की जड़ें जमाने के लिए कई बैठकें कीं।
येडियुरप्पा ने ‘ग्रामराज्य बचाओ’ के लिए आवाज बुलंद की और पंचायत चुनाव कराने के लिए सरकार से आग्रह करने की दिशा में शिवमोग्गा से बेंगलूरु तक पदयात्रा की। उन्होंने सरकार से किसानों के ऋणों की माफी के लिए पूरे राज्य की तीन बार बासवना बागवाड़ी से यात्रा की। इन यात्राओं में, उन्होंने 1,000 से अधिक सार्वजनिक भाषण दिए।
जब वे कर्नाटक विधानसभा में भाजपा के अकेले विधायक थे, तब एससी/एसटी की संपत्तियों की कुर्की के प्रावधान वाले बिल को खत्म करने के लिए सरकार से आग्रह करने के वास्ते विधानसभा में सत्याग्रह किया। उन्होंने समुदाय द्वारा सामना किए जा रहे कष्टों से अवगत कराया और उनके प्रयासों को देखते हुए सरकार ने अनुरोध को स्वीकार कर लिया। यह रिकॉर्ड पर है कि तत्कालीन वन मंत्री श्री रचैया ने उनका समर्थन किया और कहा कि येडियुरप्पा ने उनकी आंखें खोल दीं।
जब यह धारणा थी कि भाजपा शहरी लोगों की पार्टी है, येडियुरप्पा ने किसानों और कृषि श्रमिकों के लिए काम करके ऐसी धारणाओं को गलत साबित किया और भाजपा को किसानों की पार्टी के रूप में पहचान दिलाई।
भाजपा एक समानांतर किसान संगठन के रूप में बढ़ने लगी। इसे स्वीकार करते हुए, किसान संगठनों के कई नेता पार्टी में शामिल हुए जिससे यह किसानों में और लोकप्रिय हो गई। येडियुरप्पा ने भाजपा के लिए किसानों और मजदूरों का समर्थन पाने के लिए बहुत मेहनत की।
येडियुरप्पा पहली बार 1983 में कर्नाटक विधानमंडल के निचले सदन के लिए चुने गए और तब से शिकारीपुरा निर्वाचन क्षेत्र का सात बार प्रतिनिधित्व किया। वे कर्नाटक की छठी, सातवीं, आठवीं, नौवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं विधानसभाओं (निचला सदन) के सदस्य रहे हैं।
वे 1998-99 के दौरान दूसरी बार राज्य भाजपा अध्यक्ष बने। उन्होंने 1992 में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव के तौर पर सेवाएं दीं। वे 1994 के चुनावों में चौथी बार कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए और विपक्ष के नेता के रूप में जनहित के मुद्दों को आवाज दी।
येडियुरप्पा 2000 में कर्नाटक विधान परिषद के लिए चुने गए और 2004 तक एमएलसी सदस्य बने रहे। वे 2004 के चुनावों में पांचवीं बार कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए और जून 2004 से फरवरी 2006 तक विपक्ष के नेता के रूप में सक्रिय रहे।
उन्हें 3 फरवरी, 2006 को जद (एस) और भाजपा गठबंधन सरकार में कर्नाटक का उपमुख्यमंत्री बनाया गया। उन्होंने 12 नवंबर, 2007 को कर्नाटक के 25वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। उन्होंने बतौर उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री, सफलतापूर्वक विकास और जनकल्याण पर जोर देने के साथ दो बजट पेश किए।
येडियुरप्पा ने साल 2008 के विधानसभा चुनावों में शिकारीपुरा से चुनाव लड़ा और 45,000 से अधिक मतों के अंतर से जीता। उन्होंने 30 मई, 2008 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वे दक्षिण भारतीय राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले भाजपा के पहले नेता हैं, साथ ही अलग कृषि बजट पेश करने वाले पहले मुख्यमंत्री।
साल 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा 104 सीटों (बहुमत से 8 कम) के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। राज्यपाल वजुभाई वाला ने येडियुरप्पा को 17 मई, 2018 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। इस तरह वे तीसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने। हालांकि उन्होंने पद संभालने के ढाई दिन बाद ही यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि पार्टी के पास पर्याप्त बहुमत नहीं है।
बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच उन्हें राज्यपाल ने 26 जुलाई, 2019 को फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई और विधिवत बहुमत साबित किया।