बेंगलूरु। बेंगलूरु मेट्रो के पहले चरण के पूर्ण होने के साथ शहर में त्वरित परिवहन साधन के एक नए युग की शुरुआत हो गई है। इस परिवहन साधन के आगमन से शहरी आबादी को एक ब़डी राहत मिली है। इससे मौजूदा समय में स़डक परिवहन से यात्रा करने वाले यात्रियों को राहत मिलेगी। शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचने में लगने वाला समय भी घटेगा। बेंगलूरु में सूचना तकनीक उद्योग के विकास के बाद आबादी में अच्छी खासी बढोत्तरी हुई है और ऐसे में स़डकों पर दो पहिया और चार पहिया वाहनों की संख्या में बढोत्तरी हुई है। मेट्रो के चालन से स़डकों से इन वाहनों का बोझ कम होगा।फ्य्प्श्चज्यद्म·र्ैं झ्यद्यप्ब्द्म द्बष्ठ्र ृझ्द्मह्वप् ·र्ैंर् द्नय्प्द्मय्मेट्रो के आगमन के बाद इस प्रकार की उम्मीद की जा रही है कि लोगों में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के प्रति अपनत्व का भाव पैदा होगा। मौजूदा समय में शहर में सार्वजनिक परिवहन के प्रति नागरिकों में सम्मान नहीं देखा जाता लेकिन मेट्रो के प्रति लोगों में अपनत्व देखा जा रहा है। बेंगलूरु में संचालित होने वाली बेंगलूरु मेट्रो परिवहन निगम (बीएमटीसी) की बसों पर जगह-जगह पर्चे चस्पा हैं और बस स्टैंडों की स्थिति भी दयनीय है लेकिन मेट्रो के साथ ऐसा नहीं है। लोग मेट्रो को साफ सुथरा रखना अपना दायित्व समझ रहे हैं। ऐसा इसलिए भी है कि मेट्रो द्वारा खुद भी अपनी सुविधाओं को बेहतर बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मेट्रो स्टेशनों पर मौजूदा जनसुविधाओं को साफ सुथरा रखने में बेंगलूरु मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन द्वारा जितना ध्यान दिया जा रहा है उतना ही ध्यान नागरिकों द्वारा भी दिया जा रहा है।बेंगलूरु मेट्रो के आगमन के साथ ही शहरवासियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए एक त्वरित परिवहन प्रणाली तो मिली ही है लेकिन यातायात विशेषज्ञों का मानना है कि इसे एक आर्थिक रुप से कमजोर व्यक्तियों के लिए आसान परिवहन साधन के रुप में पेश करने की गलती नहीं की जानी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो इस परिवहन साधन को लाने का मुख्य उद्देश्य सिद्ध नहीं हो पाएगा। दरअसल इस परिवहन साधन के आगमन के साथ स़डकों पर दोपहिया वाहनों की संख्या कम होनी चाहिए क्योंकि यदि ऐसा होता है तो स़डकों पर दोपहिया वाहनों के नहीं उतरने के बाद जो स्थान खाली होगा उन पर अधिक से अधिक बसों का परिचालन किया जा सकेगा और ज्यादा से ज्यादा लोगों को सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का लाभ मिल सकेगा।ृय्स्रट्टह् ·र्ैंह् ·र्ैंद्यद्मय् ब्ह्ख्य् त्र·र्ैंद्मर्·र्ैंह्र फ्ष्ठ ध्स्समौजूदा समय मेंे ऑटो भी शहर के लिए प्रमुख परिवहन आवश्यकता हैं। मेट्रो के आगमन के बाद ऑटो को भी बेहतर तकनीकी संसाधनों से युक्त करने की आवश्यकता होगी अन्यथा ऑटो चालकों की आजीविका पर इसका असर प़ड सकता है। फिलहाल स्थिति यह है कि ऑटो चालकों को अपने किसी यात्री को १० किलोमीटर दूर पहुंचाने के बाद लगभग एक या दो किलोमीटर बिना किसी सवारी के आना होता है और ऐसे में यह जरुरी है कि ऑटो चालकों को कैब एग्रिगेटर कंपनियों की तरह नई प्रणालियों से युक्त किया जाए ताकि वह यात्री को ठीक प्वाइंट-टू-प्वाइंट अपनी सेवाएं दे सकें। यानी की मेट्रो स्टेशनों तक पहुंचने के लिए आखिरी एक दो मील की जो यात्रा है उस पर समुचित संख्या मेंे परिवहन साधन उपलब्ध करवाने की आवश्यकता होगी। चाहे इस दूरी को ऑटो से पाटा जाए या फिर फीडर बसों को संचालित करके।ृय्स्श्रह्यख्·र्ैं ंडट्टष्ठट्टह्र ·र्ैंह् ्यद्बध्ष्ठख्य् ्यप्डत्रय्द्य ·र्ैंय् द्बह्र·र्ैंय्मेट्रो आगमन के साथ ही कुछ औद्योगिक इकाइयों को ब़डा फायदा होने की उम्मीद है। उदाहरण के तौर पर पीनिया औद्योगिक इस्टेट और दाबसपेट के बीच मेट्रो के कारण यात्रा सुलभ होने को उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। इसी प्रकार से अन्य औद्योगिक इस्टेटों में भी वहां स्थानीय औद्योगिक इकाइयों को विस्तार करने का मौका मिलेगा। इसके साथ ही इस परिवहन साधन के बल पर चौबीसों घंटांे काम करने वाले शहर की रुप में बेंगलूरु को ढालने की कोशिश की जा सकती है। यदि बेंगलूरु के नम्मा मेट्रो की कार्यावधि को बढाया जाता है तो मुंबई की तरह बेंगलूरु में भी चौबीसों घंटे काम करने वाले शहर की रुपरेखा तैयार की जा सकती है। हालांकि इसके लिए सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने की जरुरत होगी। मेट्रो के आगमन के साथ ही न सिर्फ देर रात सेवा देने वाले रेस्तराओं को ज्यादा से ज्यादा देर तक खुला रखा जा सकेगा बल्कि नागरिकों के लिए बनाए गए पार्क, सार्वजनिक स्थानों और ऐतिहासिक स्थलों पर भी देर रात तक चहल पहल बरकरार रखी जा सकेगी।
यदि बेंगलूरु के नम्मा मेट्रो की कार्यावधि को बढाया जाता है तो मुंबई की तरह बेंगलूरु में भी चौबीसों घंटे काम करने वाले शहर की रुपरेखा तैयार की जा सकती है। हालांकि इसके लिए सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने की जरुरत होगी।